भूई फोड़ देवता

बचपन मे कहानी सुनने का बड़ा शौक था। उपिन्दर कक्का खूब कहानी सुनाते थे जिसमे फतांसी और मनगढंत कथानक हुआ करता था  पर कभी कभी उनकी कहानियां व्यंगपरक और शिक्षाप्रद भी होती थी । ऐसे ही  एक दिन जब उन्होने सुनाना शुरू किया तो हमलोगो पेट हंसते हंसते फूल जा रहा था। वे कहने लगे"  एक आदमी  एक दिन सुबह सुबह स्नान ध्यान करके धोती गंजी पहने,एक डलिया फूल और एक लोटा अछिंजल लिए मंदिर जा रहा था । मंदिर थोड़ा दूर था । चलते चलते उसे अचानक  तेज लैट्रिन लग गयी। कहीं आसपास शौचालय या उपयुक्त स्थान नही था ,जहां वह निवृत हो लेता। थोड़ी दूर तक तो पेट दबाकर, कछमछाकर पाखाना दबाया पर जब लगा कि अब धोती मे ही हो जाएगा तो बीच सड़क पर ही बैठ गया। लैट्रिन कर तो दिया पर जब उद्वेग शांत हुआ तो चारो तृफ आदमी चलते फिरते दिखाई दिए। अब क्या करे ,तो धीरे से उठते हुए उस पाखाने पर डलिया मे से कुछ फूल डालकर उसे ढंक दिया और धीरे से वहां से खिसक लिया।सड़क काफी चालू था और मंदिर के रास्ते मे पड़ता था। धीरे धीरे जो भी श्रद्धालू उधर से गुजरते ,रास्ते मे पड़े उस फूल पर कुछ बुदबूदाते और फूल डाल देते। शने: शनै: फूलो का ढेर बढ़ता गया।

 दोपहर तक अफवाह उड़ गयी की सड़क के बीचोंबीच एक नये देवता ने जन्म ले लिया है। एक पंडित ने वहां आसनी जमाकर पूजा करवाना भी प्रारंभ कर दिया। दूसरा आया तो उससे झगड़ पड़े कि पहले मैने देखा तो इस देवता पर मेरा अधिकार है और इस पर चढने वाले सभी चढौना मेरा है ।अंत मे फिफ्टी फिफ्टी पर मांडवली हुई। रास्ते आते जाते सभी उस " भुईफोड़" देवता को नमन करने, पैसा चढाने और माउथ पब्लिसिटी से प्रसिद्ध करने मे अपने को धन्य समझने लगे। शाम होते होते उस रुट की ट्रैफिक व्यवस्था ठप्प हो गयी। पूरा प्रशासन परेशान था कि कल रात तक तो यहां कुछ नही था, आज अचानक" भूईफोड़' देवता कैसे जमीन फाड़कर पैदा हो गये?ट्रैफिक पुलिस जब जब पंडित जी को रास्ते से हटाने का प्रयास करती वो श्राप देनेपर उतारु हो जाता। कुछ युवा उत्साही ध्रम संरक्षको को उस पूजारी ने बुलवा लिया, जो डंडा लेकर पूजन कार्य और उस नवोत्पन्न देवता की रक्षा करने लगे। पुलिस हटाने के लिए क्रेन ले आयी तो दंगा फसाद भड़कने की स्थिति उत्पन्न हो गयी।  अचानक एक ब्रिलीयेंट ट्रैक रिकार्ड वाले पूलिस ने चौक के सामने लगे सीसीटीवी कैमरे को देखने की बात कही। जब सबने उसके रिकार्ड को देखे तो अपना सिर पीट लिए। पूजारी ने देखा तो पहले अपनी आजीविका छिनते देख पूलिस प्रशासन और दूसरे धर्मालंबियों पर षडयंत्र करने का आरोप लगाया पर थोड़ी देर मे स्थिति विपरीत  देख चुपके से खिसक लिया। डंडाधारी भी निकल लिये।क्या हम इतने  अंधविश्वासी, भेड़चाल वाले नासमझ हैं जो बिना सोच समझ के कुछ भी कर डालते हैं। अंतत: जब क्रेन लाकर उस फूलों के अंबार को हटाया गया तो सच्चाई सामने आयी। जिसे लोग "भूईफोड़" देवता समझ कर सबेरे से पूजा किये जा रहे थे ,वह किसी का पाखाना था। जाहिर है धर्म के नाम पर व आस्था के नाम पर हम अपना दिमाग बंद कर लेते हैं। कोई लाजिक ही नही लगाते कि कहीं देवता इस तरह सड़क के बीचोंबीच अचानक कैसे पैदा हो जायेगा,? यहांतक कि हम उनके लिए मारपीट, दंगा फसाद सब करने पर  आमादा हो जाते हैं।कक्का मूलत: धार्मिक थे परंतु उनके मुंह से ऐसी आंख खोलने वाली कहानी सूनकर हमलोग खुश हो गये थे। बहुत सारे  लोग हमारी भेड़चाल को अच्छी तरह से समझते भी हैं। जैसे हमारे गांव मे एक लालजी सिंह थे, वे कहते थे कि तुम फालतू और व्यर्थ बातो पर भी यहां भीड़ जुटा सकते हो और उनको बेवकूफ बना सकते हो। देखो मै कैसे यह करके दिखाता हूं। वह अचानक उठा और रोड़ किनारे एक दुकान के सामने जाकर जोर से खखार कर कफ युक्त थूक फेंक दिया और वहीं बैठ गया और उसको बड़े गौर से देखने लगा। थोड़ी देर बाद उधर जो गुजरता तो उससे पूछता" का हो, लालजी भाई, का देख रहे हो?" वह कभी चुप रहता, गंभीर बना रहता और कभी कहता" देखो न क्या है, अजीब सा दिख रहा है" धीरे धीरे जिज्ञासु लोगो की भीड़ जमा होने लगी। कोई समझ नही पाता कि क्या है, लेकिन देखे जरुर जा रहे थे। जब अच्छी खासी बेकार और फालतू लोगों की भीड़  जब जमा हो गयी तो लालजी सिंह अचानक उठा और कहा कि यह तो मेरा खखार है। सब उसे गरियाने लगे ,पर वह हंसता हुआ मेरी तरफ देखने लगा। लालजी ननमैट्रिक है अर्थात ज्यादा पढ़ा लिखा नही है  तबभी वह भारतीयो की मानसिकता,मनोवृतिऔर चाल को इतनी गहराई से रीड कर लिया है तो बड़े बड़े विद्वान, शातिर, धुरंधर, बुद्धिजीवियो के लिए इनको चराना कौन सी बड़ी बात है?नेताओ द्वारा कहीं भी मोबलाइज कर भीड़ जुटा लिया जाता है। कश्मीर मे हुरियत और हाफिज भी तो इसी का लाभ उठाकर पत्थरबाजी करा रहा है। कहा जाता ढेर काबिल लोग तीन जगह माखते हैं। जब वह कभी उसके पांव मे पाखाना लग जाता है तो वह सीधे नही समझता बल्कि पहले अंगुलि से उसे छुएगा, फिर नाक मे लगाऐगा तब जाके डिक्लीयर करेगा कि अरे! इ तो लैट्रिन लगता है' फिर भी संदेहात्मक शब्द ही प्रयुक्त करेगा। यही हम भारतीयो की ढेर काबिलगीरी है कि बिना माखे बात समझते ही नही बस गलती पर गलती किये जायेंगे।कश्मीर और आतंकवाद के मामले मे भारतीय नेतृत्व भी माख ही रहा है।माखने के बाद सारी कबिलैती  निकल रही है, जिसको उपिन्दर कक्का और लालजी सिंह जान रहे थे , वो क्यों नही जान रहे हैं या मामला " समझ समझ के समझ को समझे, मेरी नजर मे वो समझ मे वो नासमझ है" वाला है क्या?

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