साइलेंसर का कैरेक्टर..

"बुरा जो देखन मै चला बुरा न मिलया कोय
जो दिल खोजा आपना मुझसा बुरा न कोय।"
जब हम अपने को सर्वश्रेष्ठ मानकर दूसरे को अहमियत नही देते तो ,इसकि मतलब यह नही होता कि वो कुछ नही है, बल्कि जब उसकी असलियत सामने आती है तो हमे झेंपने के अलावा और कुछ नही सुझता।फिल्म'
थ्री इडियट' मे साइलेंसर को फूंगसू वांग्ड़ू की तलाश मे दर दर भटकते देख लगता है" कस्तुरी कुंडली बसे मृग ढूंढे वन माही"।.!रैंचो की तलाश मे निकले साइलेंसर को उसका देवता मिल जाता है, जिसको वो अपनी सफलता दिखाकर उसकी औकात दिखाना चाहता था, उसे देखकर स्वयं उसे अपनी औकात पता चल गयी। यहां साइलेंसर उस कैरेक्टर का प्रतिनिधित्व करता है जो जीवन मे रट्टामार कर अच्छे अंक लाना, येन केन प्रकारेण टाप करना,और किसी भी तरह सफलता प्राप्त करना अपना उद्देश्य मानता है।जो लाइफ को इंजाय करने के बजाय रट्टा मारने की वस्तु समझते हैं तो साइलेंसर के"चमत्कार के बदले बलात्कार " वाले प्रकरण से समझ सकते हैं।यहां एक कहानी  साइलेंसर को केन्द्र मे रखकर बनाया गया है जिसमे साइलेंसर एकबार पेरिस घूमने जाता है, पेरिस हवाई अड्डे से होटल की दूरी लगभग पांच मील थी। साइलेंसर को बोर होता हुआ देख टैक्सी ड्राइवर बोला : "आपको होटल तक पहुंचने में करीब आधा घंटा लगेगा, तब तक समय काटने के लिए आपसे एक सिम्पल सवाल पूछता हूं।साइलेंसर बोला"पूछो—पूछो! मुझे सब आता है।टैक्सी ड्राइवर बोला :"मेरे मां—बाप की एक ही संतान है, जो न मेरा भाई और न मेरी बहन है; बताइए वह कौन है?"साइलेंसर अब फंसा।उसने बहुत सिर मारा, लेकिन समझ ही न आए कि ऐसा हो ही कैसे सकता है! मां—बाप की संतान या तो भाई होगा या बहन होगी। अंततः सोचते—सोचते समय बीत गया, होटल आ गया।ड्राइवर ने व्यंग्य से पूछा : "कहिए, महाशय जी! मैंने पहले ही कहा था न, सवाल बड़ा सिम्पल है, पर बड़े बड़ो के पसीने छुट जाते हैं। अच्छे—अच्छों को जवाब नहीं सूझता!"बेचारे साइलेंसर  ने हार मान ली। ड्राइवर ने बताया, "अरे, सीधी—सी बात है, मैं खुद अपने मां—बाप की संतान हूं, एकमात्र, मगर न मैं खुद का भाई हूं, न खुद की बहन हूं।"जब साइलेंसर भारत वापस आया तो उसके मित्रों ने वापस लौटने की खुशी में एक पार्टी दी।वहां उस ने दोस्तों से पूछा : "यारो, एक प्रश्न पूछता हूं। मेरे मां—बाप की एक औलाद है, जो न रिश्ते में मेरा भाई लगता है और न बहन लगती है, तो बताओ वह कौन है?"इस प्रश्न को सुनकर किशनजी ने दांतों तले अंगुली दबा ली।राजू हंसने लगा,सैन्टी बगले झांकने लगा । वो बोला जानता था कोई नही बता पायेगा क्यों रैंचो? रैंचो ने हंसते हुए कहा" अरे बेवकूफ! तुम!  साइलेंसर ने कहा " बस तुम्हारी इतनी ही आई क्यु है! मुझे पता था तुम नही बता पाओगे! "अरे, वही पेरिस की टैक्सी का ड्राइवर!" सब हंस पड़े।इससे क्या पता चलता है कि बिना दिमाग लगाये या समझ पैदा किए कोई ज्ञान निर्रथक है। प्रतिभा  उधार  नही ली जा सकती। रट्टा मारकर याद तो कर सकते हैं पर समझ पैदा नही की जा सकती।साइलेंसर प्रतीक है ,आज के नासमझ एजुकेशन शैली का जो हमे भेड़चाल की ओर धकेल रहा है।जीवन की किसी भी विधा या क्षेत्र  मे समझदारी आवश्यक है। की लोग पुलिस या सेना की ट्रेनिंग प्रणाली को भी रट्टामार शैली सद्श मात्र फिजिकल ट्रेनिंग मानते है।एक पुलिस इंस्पेक्टर मित्र, जो उस समय ट्रेनिंग पर थे, उनसे मुलाकात के दौरान उन्होने कहा" अरे! साले लोग इतनी मेहनत करवा रहे हैं कि दिमाग खिसक कर घुटने मे आ गया है। सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो चुकी है, सिर्फ आर्डर सुनाई पड़ता है।लिखित परीक्षा होती है पर सब पास कर दिए जाते है, किसी को फेल नही किया जाता। " हो सकता है ये कठोर फिजिकल ट्रेनिंग उन जवानो के लिए आवश्यक हो, जिन्हे सिर्फ आर्डर फालो करना हो। "गोली दागो तो दाग दिया" ,ये नही देखा किसपर। वह अर्जुन की तरह कृष्ण से सवाल नही पूछेगा कि अपने सामने हों तो गोली कैसे चलाये? लेकिन ये अंग्रेजो के जमाने की प्रणाली थी। लेकिन आजकल महाभारत काल की तरह सुरक्षाबलो को अपनो से सामना करना पड़ता है। किरण बेदी जब महानिदेशक " दिल्ली पुलिस ट्रेनिंग अकादमी" थी तब उन्होने इसके महत्व को समझा। पुलिस विभाग के स्ट्रेस, भागमदौड़, परेशानी तथा आम जनता से लगातार डील करने के मद्देनजर "योग, विपश्यना, मेंटल एक्सरसाइज,," पर जोर दिया।उनको समझ, व्यवहार कुशलता, बात करने का तरीका सिखाया जाने लगा। आज कश्मीर मे पत्थरबाजो और आतंकवादियो से सेना लगातार जुझ रही है, उनमे,अच्छे बुरे की समझ पैदा की जाने लगी है।पब्लिक डीलिंग वाले प्रत्येक अधिकारी, कर्मचारी की इसप्रकार की ट्रेनिंग जरुरी है, अन्यथा उन्हे परेशानी होगी ही।साइलेंसर तरह के लोग समाज मे बहुधा मे पाये जाते हैं जो किसी भी प्रकार से प्राप्त सफलता को सर्वोपरि मानते हैं, इनके लिए एथिक्स ,गया तेल लेने!पर ये माने जायेंगे हमेशा बेवकूफ ही!

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