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Showing posts from February, 2024

सौर ऊर्जा से बुंदेलखंड में विकास की संभावनाएं

जहां एक ओर शुष्क और गर्म जलवायु , पानी की कमी और पठारी क्षेत्र होने के कारण बुंदेलखंड खेती, उद्योग और विकास की दृष्टि से पिछड़े होने का दंश झेल रहा है , वहीं दूसरी ओर यही कमी इसको नवीकरणीय सौर उर्जा के बेहतर उत्पादन को लिए अनुकूल माहौल भी प्रदान करता है। यही कारण है कि बुंदेलखंड में खाली जमीन की उपलब्धता और मौसम के साफ रहने के कारण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध सौर ऊर्जा से यहां पर सोलर प्लांट लगाने को निजी कंपनियां आकर्ष‍ित हुई हैं। उपयुक्त जलवायु के चलते बुंदेलखंड में सौर ऊर्जा प्लांटों की स्थापना काफी  पहले प्रारंभ हो गई थी। वर्ष 2016 में पनवाड़ी ,महोबा और हमीरपुर में लगाए गए निजी सौर ऊर्जा प्लांटों से लगभग 200 मेगावॉट बिजली की आपूर्ति की जा रही है। बांदा जिले में चहितारा गांव में 20 मेगावॉट का सौर ऊर्जा प्लांट भी वर्ष 2016 से ही चल रहा है। इसके पुर्व ललितपुर में वर्ष 2013 में 70 मेगावाट का सौर ऊर्जा प्लांट शुरू किया गया था। अडानी सोलर एनर्जी लिमिटेड ने चित्रकूट  के छीबों गांव में 25 मेगावॉट का सौर ऊर्जा यंत्र चालू कर दिया है। यहीं  50 मेगावॉट क्षमता का एक और सौर ऊर्जा प्लांट भी लगाया गय

चावल मूल्य वृद्धि के मायने

कुछ महीनों  से देशी- विदेशी बाजारों में चावल के मूल्यों में जबरदस्त तेजी देखने को मिल रही है। आजकल चावल का भाव लगभग पंद्रह साल के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुका है। पारंपरिक बासमती धान की कीमतें 6 हजार रुपये प्रति क्विंटल से अधिक हैं, जबक‍ि पूसा 1121 और 1718 जैसी अन्य प्रीमियम किस्म के धान का रेट 45 सौ रुपये प्रति क्विंटल  हैं। सोनम चावल भी लगभग  25 सौ रुपए प्रति कुंतल के आसपास बिक रहा है। 23 अक्टूबर 2023 को लंबे दाने वाले बासमती चावल के लिए न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 1,200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 950 डॉलर प्रति टन करने के केंद्र सरकार के निर्णय के बाद उत्तर भारतीय राज्यों के अनाज बाजारों में बासमती धान की कीमतों में अचानक उछाल आ गया। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO ) का कुल चावल प्राइस इंडेक्स जुलाई 2023  में एक महीने की तुलना में 2.8 फीसदी बढ़कर औसतन 129.7 अंक हो गया। यह पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत अधिक है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पत्रिका ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार थाईलैंड व्हाइट राइस ( 5% ब्रोकन) में पिछले दो हफ्ते में 57 डॉलर की तेजी आई

बदल रही है भारतीय खेती

भारतीय खेती के पिछड़ेपन का मुख्य  कारण भूमि सुधार संस्थागत सुधार और तकनीकी सुधारों में  पिछड़ापन तो रहा ही ,साथ में कभी उसको एक व्यवसाय के रुप में न देखकर मात्र आजीविका के रूप में देखने की सोच भी रही है। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान कृषि का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश साम्राज्य के आर्थिक हितों की पूर्ति करना था। हालांकि स्वतंत्रता पश्चात भारत ने कई कृषि सुधारों को लागू किया है। पचास और साठ के दशक के सुधार  कृषि उत्पादकता और आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर केंद्रित थी। हरित क्रांति का उद्देश्य उच्च उपज वाली फसल किस्मों,आधुनिक कृषि तकनीकों और सिंचाई सुविधाओं की शुरूआत के माध्यम से कृषि उत्पादकता को बढ़ाना था। यह भारत को खाद्य अल्पता की स्थिति से  आत्मनिर्भर राष्ट्र में बदलने में सफल रहा। सरकार ने भूमि हदबंदी कानूनों के माध्यम से भूमि के पुनर्वितरण के प्रयास किए ,जिसका उद्देश्य सामंती भूमि स्वामित्व प्रणाली को तोड़ना था। हालांकि उद्देश्य अच्छा था परन्तु कार्यान्वयन ख़राब होने  के कारण विभिन्न राज्यों में इसका प्रभाव अलग-अलग रहा। 1990 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और बढ़त निजीकरण के चलते

तपोभूमि चित्रकूट के राम

गोस्वामी तुलसीदासजी  ने रामचरितमानस में लिखा है  “राम लखन सीता सहित सोहत परन निकेत। जिमि बासव बस अमरपुर सची जयंत समेत।”        अर्थात लक्ष्मणजी और सीताजी सहित श्री रामचन्द्रजी पर्णकुटी में ऐसे सुशोभित हैं, जैसे अमरावती में इन्द्र अपनी पत्नी शची और पुत्र जयंत सहित बसता है। यह पर्णकुटी उस सुंदर चित्रकूट में बनी हुई थी, जहां श्रीराम अपने वनवास काल में सर्वाधिक दिनों तक रहे। वस्तुत : हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का विशेष महत्व है। यदि अयोध्या को राम की जन्म भूमि होने का गौरव मिला है तो चित्रकूट वह स्थान है जहां राम ने अपनी तपस्या के बल पर भगवान राम होने का रास्ता अख्तियार किया । कष्टों में ही तपकर मनुष्य का आत्मबल, चेतना, साहस और अंदरूनी गुणों का निखार आता है। जब प्रयाग में भारद्वाज आश्रम में राम ने महर्षि से पूछा कि वनवास काल व्यतीत करने के लिए उचित स्थान के बारे में बतायें तो महर्षि भारद्वाज ने चित्रकूट कहा क्योंकि यह स्थान हर दृष्टिकोण से शांत, सुरक्षित और प्रकृति सौंदर्य से भरपूर था। ‘दशकोशइतस्तात गिरिर्यस्मिन्निवत्स्यसि, महर्षि सेवित: पुण्य: पर्वत: शुभदर्शन: ।  रामचरितम

पानी की समस्या से जूझता बुंदेलखंड

बुंदेलखंड में एक  कहावत है कि  ‘एक टक सूप - सवा टक मटकी, आग लगे रुखमा ददरी, भौरा तेरा पानी ग़ज़ब करी जाए, गगरी न फूटै, चाहै खसम मर जाय”। अर्थात इस क्षेत्र  में  पानी इतना दुर्लभ या महत्वपूर्ण है कि बड़ी मुश्किल से मीलों पैदल चलकर  पानी  भरी गगरी सिर पर रखकर लाती है। ऐसे में महिलाएं आपस में कहती हैं कि कुछ भी हो जाय लेकिन पानी भरी गगरी ना फूटे, भले ही उसका पति मर जाए परंतु पानी बचा रहे। जाहिर है इस क्षेत्र  में महिलाएं पानी को अपने खसम यानि पति  से भी ज़्यादा मूल्यवान समझती हैं, जो उनके  परिवार का आधार है। यह बुंदेलखंड में जल संकट के संबंध में बड़ी गंभीरता से सोचने को विवश करता है। यहां गर्मियों में कुएं, तालाब, हैण्डपम्प इत्यादि सभी पेयजल स्रोतों का जलस्तर नीचे चला जाता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार  ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक व्यक्ति को एक दिन में 55 लीटर पानी उपलब्ध होना चाहिए, लेकिन एक आंकड़े के अनुसार यहां प्रति व्यक्ति प्रति दिन केवल 29 लीटर पानी ही उपलब्ध हो पाता है, जो अनुशंसित न्यूनतम मात्रा का लगभग आधा है। पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण यहां के ज्यादातर पुरुष दैनिक मजदूरी य