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Showing posts from August, 2017

टिफिन का खाना

जब जब घर से बाहर रहकर कंपटीशन देनेवाले वीरों की वीरगाथा लिखी जाएगी तो उसमे " टिफिन" के धंधे को चार चांद लगाने वाले बाहुबलियों का नाम स्वर्णाक्षरों मे लिखा जाएगा।धन्य हैं वो वीर जिसने सुबह शाम नियत समय पर आनेवाली छोटी सी टिफिन के सहारे अपना विद्यार्थी जीवन बिता दिया। हालाँकि इसे " सिंगल हड्डी" और " स्लिम फिट " नौजवानों का क्षेत्र माना जाता है।पर कई जीव तो टिफिन पर ही पल जाते हैं भले पीठ और पेट एक समान भये और बिना " वर्क आऊट" के करीना के जीरो फीगर को प्राप्त होते हैं। उपर से हमेशा " Liv  52 का सेवन वरना पेट कब उपर - नीचे दोनों चलने लगे क्या पता? ऐसे मे भी जीवट के लोग हैं भाई हाथ नही हिलायेंगे। खाना तो रेडीमेड ही मिलना चाहिए। बरतन बासन कौन करेगा? इसी उद्वेग का लाभ उठाने को सोचे बटुक नाथ जी! गये कलेक्टरी की पढाई करने पर कोई भी कोचिंग इनको केले के झाड़ पर चढा न सका! कितना मगजमारी किये, दो तीन बार धौलपुर हाऊस भी बाहर से देख आये पर "टोटमा" काम न आया। गुरू जी रगड़ मारे पर पीटी का " अरना महीस" ऐसा थम देके बैठा कि ऊठबे न किया। अब व

पाखंड

"मन न रंगाये जोगी, रंगाये जोगी कपड़ा दढ़िया बढाके जोगी बन गई ले बकरा "! बिहारी काका आज अंदर से काफी उद्वेलित दिख रहे थे! " काका! कल वाली घटना से परेशान हैं?'   मैने पूछा! " मारो ...... को! नाम न लो उस पापी का"! मै तो इसीलिए पहले से ही इन ढोंगी बाबाओं को गलियाता रहता हूँ"! " लेकिन प्रवचन तो आप भी सुनते रहते हैं"! रोज सबेरे ".फूं - फां.. भी करते रहते हैं!" " अरे बबुआ! किसी अच्छे भाषण, प्रवचन, भजन गायन का सुनना, धार्मिक किताबों का पढना अलग बात है पर मै कभी इनके किसी शिविर मे नही गया"! " काका! लेकिन इन आश्रमों मे तो " भेड़िया धसान" भीड़ लगी रहती है! जैसे " स्वर्ग की सीढ़ी डायरेक्ट इनके आश्रमों मे ही लैंड करती है"! मै बोला। मुझे तो कई लोगों ने कहा" अभी तक किसी को गुरु नही बनाए! जन्म मरण के बंधन से मुक्ति नही मिलेगी"! तो मैने कहा चाहता कौन है मुक्त होना"! जो देखा नही उसके बारे मे क्यों परेशान रहूँ। और इन गुरुओं को कबसे " मोक्ष" दिलाने का ठेका मिल गया!" "लेकिन काका!

पत्नी पीड़ित की व्यथा

कहावत है"अप्पन हारल और बहुअक मारल" कोई किसी नही बताता। " भीतर के मार खायल वो ही जाने जो खाया है!""जा हो बूड़बक मेहरारु से हार गये!"माना जाता है कि महिलाएं शारीरिक बल मे कमजोर होती है पर यह " अर्धसत्य " है, ओमपुरी वाला नही! तस्वीर का दूसरा पहलू भी है जो  " महिला सशक्तिकरण" के "लहालोट " मे गंवई  बिजली के बल्ब की तरह भुकभुका रहा है।सो काल्ड मर्दवादी समाज मे " पत्नी पीड़ित" मुखर और संगठित नही है।है तो ये विमर्श टाइप का विषय पर किसी" सो काल्ड वाद" न जुड़ पाने और किसी "दल "का समर्थन न मिल पाने के कारण " नेपलिया ट्रेन" की भांति धुकधुका कर चल रहा है।काफी पहले से ही कुछेक मर्द अपनी पत्नियों द्वारा प्रताड़ित होते आ रहे हैं। कहने का यह तात्पर्य कदापि नही है कि मर्द स्त्रियों पर जुल्म नही करते! बल्कि  क्विंटल के भाव मे " महिला उत्पीड़न" हो रहा है पर क्या इससे महिलाओं को भी " टिट फार टैट" का लाइसेंस मिल जाता है? बेचारे इन पत्नी पीड़ितों के सूखे और उतरे चेहरों को देखो! क्या तुम्हें इनक

आंदोलन का सच

डोंट वरी दयाल"राजनीति बड़ी कुत्ती चीज है! कब ,कहाँ ,कौन पलटी मार जाये कह नही सकते! प्रत्येक लीडर का अपना उद्देश्य होता है जिसे स्वार्थ भी कह सकते हो और उसको पूरा करने के लिए वह किसी भी हदतक जा सकता है। सीधी भाषा मे कहूँ तो गिर सकता है!"  संजना लाल- पीले बर्फ के गोले चूसती हुई बोली। " लेकिन संजना, उसे तो कम से कम हमारे साथ ऐसा नही करना चाहिए था! उसे पता था कि यह हमारे भविष्य का सवाल है! हमने उस पर कितना फेथ किया था! लेकिन वो भी औरों के समान ही निकला, उसने हमारा युज किया! ,हमारी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया!" दयाल के होंठ गुस्से से फड़फड़ा रहे थे। क्या क्या बनने के अरमान लेकर वो शहर के बड़े कालेज मे आया था। यहाँ आकर अधिकार, स्वतंत्रता, समाजवाद, मार्क्स, चे ग्वेरा और बस्तर आदि बड़े बड़े वजनी शब्दों और वादों के जाल मे उलझ गया। शेखर , कालेज का युनियन लीडर ,बहुत ही अच्छा वक्ता ,जो अपने शब्दों से, नारों से कैंपस मे क्रांति ले आता था। एक अदृश्य क्रांति की रसधार दयाल को अपनी ओर खींच रही थी  और ऐसे मे संजना के बाजू और कंधो ने उसे साथ मे नैया खेने के सपने भी दिखाये थे। पृष्ठभूमि त