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Showing posts from 2016

बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है..

" जैसी करनी वैसी भरनी" फिल्म और "अवतार" फिल्में हमें याद हैं। ये समाज को आईना दिखाती है कि किस तरह आज हमारे मां बाप अकेलेपन के अंधेरो मे खो रहे है और उनके दर्द का अहसास हमें तब होता है जब हम स्वयं उस अवस्था मे पहुंते हैं। जीवन के इस चक्र मे सभी का रोल बदलता रहता है! " सास भी कभी बहू थी!" पर हमें सास के दर्द और परेशानी का अहसास तब तक नही होती जबतक वो स्वयं सास नही बन जाती और तब उसे लगता है कि उसने भी अपनी सास के साथ अच्छा नही किया था। पर तब क्या "गुजरा हुआ जमाना आता नही दुबारा"! बेटा बहु को भी तब कष्टों का अहसास होता है जब वो खुद मां बाप के रोल मे वृद्ध हो जाता है। तब पछताये का होत है जब चिड़िया चुग गई खेत!" आश्चर्य तो तब होता है जब वो अपने बच्चों के सामने अपने मा बाप के साथ दुर्व्यवहार करता है और इस कांफिडेंस के साथ कि उसका बच्चा उसके साथ वैसा ही नही करेगा!"आदमी इतना व्यक्तिवादी और स्वकेंद्रित हो गया है कि उसे अपने परिवार मतलब पति,पत्नी और अपने बच्चों को छोडकर कुछ भी नही दिखता। बेचारा मां बाप अपने पोते पोतियों को देखने तक के लिए तरस जाता

क्या परफार्मेंस आधारित वेतनवृद्धि से भ्रष्टाचार बढेगा?

ज्यादातर कर्मठ और ईमानदार सरकारी नौकरों को इसका  मलाल रहा है कि उन्हें उनकी मेहनत और ईमानदारी का फल निजी कंपनियों की भांति नही मिलता क्योंकि यहाँ " सभे धान साढे बाइस पसेरी" अर्थात सबको एक ही लाठी से हांका जाता है। यहाँ इनको और " बने रहो पगला काम करेगा अगला" नीति पर चलने वाले और मुर्ख लोगों को भी एक तराजू पर तौला जाता हैं क्योंकि यहाँ पर प्रमोशन, इंक्रीमेंट या बोनस योग्यता के आधार पर नही बल्कि समयावधि के अनुसार सीनियरिटी के आधार पर दी जाती है।इसी को ध्यान मे रखते हुए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों मे एक महत्वपूर्ण सिफारिश है परफार्मेंस के आधार पर प्रमोशन, एसी पी और इंक्रीमेंट का मिलना। प्रमोशन और एसीपी तो पहले भी इस पर सीमित तौर पर आधारित था लेकिन सामान्य तौर पर प्रतिकूल प्रविष्टि न हो तो प्रमोशन और ए सी पी मिल जाता था। प्रमोशन भी कई तरहों से होता था परंतु ए सी पी के लिए सिर्फ संतोषजनक सेवाओं का होना ही आवश्यक था!यदि नियत समय पर प्रमोशन या ए सी पी नही मिल पाती है तो इंक्रीमेंट रुक जाएगी, यह सबसे बड़ी समस्या है। इसका मतलब है कि प्रतिवर्ष मिलने वाली वार्षिक परफार्मेंस रि

नंगा नहायेगा क्या निचोड़ेगा क्या

जब आप कहते हैं कि हमें कैशलेस या लेश कैश सोसायटी बनानी है तो हमें हंसी आती कि कैश है किसके पास जो आप उसे लेस करना चाहते हैं।दो तिहाई कैस तो तिजोरियों, लाकरों, बेड के नीचे, बक्सों मे और कमरों के फाल्स सीलिंग मे दबा पड़ा है तो मार्केट मे कैश है कहाँ? एक भाई साहब तो शौचालय के दीवार मे तहखाना बनाकर कैश रखे थे, उन्हें शर्म भी नही आयी कि इक तरफ रोजाना लक्ष्मी जी की पूजा करते हो कि हमारे पास और आये और दूसरी तरफ सबसे गंदे और अशुद्ध जगह पर उसे छिपाते हो। तो मैं यह कह रहा था कि देश की नब्बे प्रतिशत जनता के पास मात्र दस प्रतिशत रुपया है। " नंगा नहायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या!" सरकार ने " जैम" योजना अर्थात जन धन, आधार और मोबाइल ,वस्तुत भारत को कैशलेश सोसायटी बनाने के लिए ही चलाया है और !हाल मे हजार और पांच सौ के नोटो को बंद करना भी उसी का हिस्सा प्रतीत होता है। छोटे कारोबारियों, मजदूरों और आम लोगों से भी मोबाइल बैंकिंग अपनाने का आह्वान किया गया है। सरकार इसे और सरल बनाने के लिए बैंकों के साथ मिलकर काम कर रही है।पर आप इसे क्रियान्वित कैसे करेंगे? क्या कोई रोडमैप बना है या फिर

बेईमानी के लिए बस मौके का इंतजार है

एक प्रचलित कहावत है। " फिसल पड़े तो हर हर गंगा"! कहीं कोई जुगाड़ नही है तो कहेंगे ,हम तो कोई प्रयास ही नही किए!जाहिर है इस देश में ईमानदार वही है जिसके टेबल पर पैसा नहीं है अर्थात जहाँ किसी फाइल पर पैसे का स्कोप नही है। जिसके लटकाने से कोई फाइल पर वजन रखने वाला चिरौरी करने नही आएगा तो क्या मतलब! काम हुआ तो अच्छा ,न हुआ तो भी अच्छा! यहाँ जिनके टेबल पर पैसे का कोई स्कोप नही है वो सही टाइम पर ऑफिस छोड़ देते हैं, और जहाँ कुछ स्कोप है तो देर रात फाइल निपटाये जाते हैं और दिखाने के लिए कि हम तो जनहित मे हमेशा तत्पर हैं और देर रात तक या हमेशा उपलब्ध हैं। इतना ही नही कोई विभाग या महकमा तभी तक भ्रष्ट या कामचोर दिखाई देता है जबतक अपने घर का कोई सगा उसमें  भर्ती नही हो जाता। भर्ती होते सारी अच्छाईयां और वहाँ की परेशानियां जगजाहिर करने लगते है। जैसे इस डिपार्टमेंट से ज्यादा काम या समाज सेवा कहीं और होतीं ही नही है।जाहिर है इस देश में पुलिस भ्रष्ट तभी तक लगती है जब तक उनका बेटा दारोगा में भर्ती नही हुअा हो और इस देश मे सरकारी स्कूल का शिक्षक तभी तक कामचोर लगते हैं जब तक उनकी बेटी या बेटा शिक्

बैंक कर्मियों की शामत आ गई है..

नववर्ष बैंक कर्मियों पर भारी पड़ने वाला है। अभी तो उन्हें लंबी कतारों, जनता की झिक झिक,सगे संबंधियों का अनुरोध, नेताओं एवं अधिकारियों का दबाव, माफियाओं की धमकी और व्यापारियों का प्रलोभन के दौर से गुजरना पड़ रहा है। भले उन्होंने इन सबके चलते वैध अवैध तरीके से कालाधन सफेद करने मे हेल्प किया पर अब जांच एजेंसियों के पूछताछ और टार्चर से गुजरना बाकी है। जगह जगह पकड़े जा रहे नये करेंसी नोट, उनके लिए गढ्ढा खोद रहे हैं।प्रधानमंत्री जी कहते हैं हमने आगे ही नही पीछे भी कैमरे लगा रखे हैं। पी एम ओ ने पांच सौ से अधिक बैंको का स्टिंग आपरेशन कराया है। सभी बैंक खातो मे " संदिग्ध ट्रांजेक्शन" वाले खातों का विश्लेषण किया जा रहा है ,उसी आधार पर आयकर विभाग और विजिलेंस विभाग छापेमारी कर रहा है। भले ही बैंकिंग सेक्टर को काफी लाभ होगा पर कर्मियों की जान सांसत मे फंसी है। नोटबंदी को एक महीना से उपर हो गया लेकिन बैंकों और एटीएम के सामने क़तारें बदस्तूर जारी हैं और जहाँ लाइन न दिखे, समझ लीजिए कि वहाँ नक़दी नहीं है! प्रधानमंत्रीजी ने कहा" हमे पचास दिन दो मै तुम्हें आर्थिक आजादी दूंगा। लेकिन हालात इस

कालाधन कैसे बना सफेद ?

आर बी आई की रिपोर्ट के अनुसार 1000 एवं500 रुपये के कुल निर्गत 14.50 लाख करोड़ रुपये मे से लगभग 11.50 लाख करोड़ रुपये वापस बैंक मे जमा हो गये हैं। इसका मतलब यह भी निकलता है कि अगले 22 दिनों मे बाकी के रुपये भी आ सकते हैं, इसका मतलब यह निकलता है कि भारत मे काला धन कैश के रुप मे था ही नही। माना भी जाता है कि कालाधन का एक बहुत ही छोटा हिस्सा कैश के रुप मे होता है।अब दूसरी तरफ देखें कि चेन्नई के एक ज्वैलर्स के यहाँ छापे मे 90 करोड़ कैश मिले जिसमे से 70 करोड़ नये रूपये थे। कई जगहों से बड़ी मात्रा मे नये कैश पकड़े जा रहे हैं। इसका क्या मतलब निकलता है? क्या ये सब एक ही दिशा की ओर इशारा नही कर रहे हैं कि बड़े पैमाने पर कालाधन बैंकों मे जमा कराया गया या बैंको की मिली भगत से रुपये बदलवाये गये। अभी कल ही  न्यूज आई कि फैक्ट्री मालिक ने अपने कर्मचारियों के सैलरी अकाउंट मे एडवांस 6 महीनो का वेतन जमा करवाया है और उनके घरों के आसपास अपने गुर्गे बिठा रखे हैं कि वह भाग न सके। एक महिला ने शिकायत की कि उसके चाचा ने उसके अकाउंट मे एक लाख जमा करवा दिया और अब जब वह निकल नही पा रहा है तो उस पर अपने गहने जेवर देने का