दक्षिणपंथी सोच के भी कुछ मायने है...
बज्जिका मे एक कहावत है" कहबऊ त लगतऊ भक द,कोरो मे कपार लगतऊ ठक द।सत्य कडवा होता है! बाते बर्दाश्त नही होती,हम तिलमिला जाते हैं।बिलबिला कर इधर- उधर उठा-पटक करने लगते हैं,पर इससे सत्य समाप्त थोडे ना हो जाता है।होता तो एक ही है पर हम अपने अपने पंथो के चश्मे से उसे देखते है!वास्तव मे.ये वामपंथी विचारधारा के अस्तित्व की लडाई है! दक्षिणपंथ तथा वामपंथ के मध्य विचारो की लडाई पुरानी है और इन दोनो की लडाई के मध्य कांग्रेस का लगातार सता पर हावी रही! वामपंथ लगातार इतिहासकारो व विचारको के रुप मे देशवासियो की मनोदशा गढते रहे है!हमने जो अपने विचार और मनोमस्तिष्क बनाये है और इतिहास पढा है, वह अधिकांश् वामपंथी या कोलोनियल इतिहासकारो द्वारा रचित है ! जाहिर है ये उंनकी सोच को प्रतिबिम्बित करता है! दक्षिणपंथी सोच भी एक विचारधारा है!उससे प्रेरित इतिहास की पुनर्रचना का प्रयास किया जा रहा है तो ये उन्हे भला .कैसे बरदाश्त हो सकता है ? कांग्रेस ने हमेशा दलितो ,अगडो और मुसल्मानो की राज्नीति की, जो उसकी हाथो से निकल कर क्षेत्रीय दलो और भाजपा के हाथो मे जा चुकी है! भारतीय राजनीति मे वामपंथी हमेशा से महत्वहीन रहे, बस बडे बडे विश्वविद्यालयो तथा काफी हाउसो मे सिमटे रहे! उनके गढ बंगाल और केरला मे दरक रहे है! हिंदु और हिंदुस्तानी मुलत:काफी सहिष्णु होते है, तभी तो यहाँ सर्वधर्म समभाव और धर्मनिरपेक्ष सम्विधान है! परंतु आज जब हिंदुवादी सोच अपना अस्तित्व ग्रहण कर रही है,अपने मुर्त स्वरुप को पा रही है तथा उसी सोच से इतिहास और राजनीति को देखने का प्रयास कर रही है तो इनके अस्तित्व पर खतरा महसुस हो रहा है! सरकार को विकासवादी सोच से भटकाने का प्रयास है जिसे स्वय सरकार के कुछ पक्षधर अपने बयानो से भडका कर हवा दे रहे है! सरकार मे बैठे कुछ मुर्खाधिराज , गदर्भ राग रेंक रहे है!संघ शुरु से देश मे हिंदुवादी सोच को बढावा देता रहा है! आज जब उसके प्रयासो से उसके मनमाफिक सरकार केंद्र मे है तो ,उसे टांग खिचने और विघ्नबाधा उतपन्न करने के बजाय उसके लिये माहौल बनाना चाहिये! उसके हितराग और सरकारी प्रवक्ताओ की बयानबाजी एकतरह से विपक्षियो का हित साधन कर रही! विकास की बात से माहौल शुरु हुआ था,पर अतिउत्साह ने उसे करते करते 'दक्षिणपंथी सोच से इतिहास की पुनर्रचना 'और' हिंदुत्ववादी सोच का अस्तित्व ग्रहण करने ' तक ला दिया है तो शोर मचना स्वाभाविक एवं आवश्यक भी है । वस्तुत:ये समानांतर प्रक्रिया है जिसमे जो हावी होता है अपनी चलाता है!" जिसकी लाठी उसकी भैंस"! लेकिन यन्हा यह भी गौर करने वाली बात है कि क्या कोई दूसरी विचारधारा में सत्यता नहीं हो सकती ? क्यों सिर्फ जो वामपंथी सोचते है , वही सिर्फ सही है? क्या दक्षिणपंथी सोच या विचारधारा के साथ् लिखे गये इतिहास को जानने का हक़ किसी को नही है ?असल मे ये फासीवाद है,कि आप किसी को सोचने पर भी पावंदी लगा देते हो!! हो सकता है उनके दृष्टिकोण में कोई कमी न हो, पर ये जो हो रहा है उसके पीछे अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद ही है। दरअसल वामपंथ और दक्षिणपंथ या, सहिष्णुता_असहिष्णुता केवल मीडिया,राजनीति, काफी हाउसो,विश्वविद्यालयो और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के अलावा और कही है नही, देश जैसा पहले था वैसा ही है, हाँ सत्ता परिवर्तन से कुछ तथाकथित सहिष्णुओ की परेशानी अवश्य बढी !यहाँ मुद्दा इतिहास पुनर्रचना नही है न वामपंथ बनाम दक्षिणपंथ है ये धाराएँ तो हमेशा से रही है ,तो क्या है? वुद्धिजीवियो के अनुसार हमे बोलने की आजादी नही है! सो काल्ड भक्त और सेना हमारे जुबान पर ताला लगा रहे है!सतय है कि,हर प्रश्न उठाने वाले को ,राष्ट्रविरोधी और,पाकिस्तानी बताना ग़लत है! ,लोकतंत्र मे असहमतियोँ ,विरोधों का भी सम्मान करना चाहिए !हमारा सम्विधान हमे इसकी इजाजत देता है तो इन्हे रोकना सम्विधान विरुद्ध है! निश्चित रूप से राष्ट्रविरोधी और पाकिस्तानी बताना गलत है ! ये राजनीति है , यंहां आरोप प्रत्यारोप तो चलेगा ही।यदि आप पक्ष बनेंगे तो विपक्षियो की सुननी पड़ेगी। आजकल भक्त,देशद्रोही आसानी से कह दिया जाता है! वास्तव मे दमनात्मक प्रक्रिया से असंतोष और तीव्रता से भड़कता है।जैसे घर की आग तो आप पानी से बुझा सकते हो परंतु दावानल को नही।भारत धर्मनिरपेक्ष और पंथनिरपेक्ष देश है ! अतिशयवाद यन्हा जल्द स्वीकार्य नही है! इमरजेंसी के विरुद्ध उतपन्न सिचुएशन से सब वाकिफ है! हालांकि वैसे हालात नही है! ये सिर्फ उग्र और आक्रामक मीडिया का कारनामा है! हमेशा से पक्ष और विपक्ष समानांतर बनते रहे हैं और तत्संबंधी विचार हमेशा विद्यमान रहते हैं।विघटनकारी तत्वों ( जिन्हें अब वैचारिक स्वातंत्र्य समर्थक कहा जाता है) के पक्षधर भी बहुत हैं देश मे।छात्र और विश्वविद्यालय इस संबंध मे ज्यादा संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनमें जोश,उतेजना, कुछ नया कर गुजरने का जज्बा होता हैं और उन्हें जल्द भड़काया भी जा सकता है। जेएनयु , हैदराबाद और जम्मु एनआईटी की घटना से पता चलता है कि युवा उग्रपंथ की ओर है! वामपंथ ने उग्रता की हद तक नक्सलवाद को उत्प्रेरित किया है! देश का आधा हिस्सा नक्सलवाद की हिंसा से पीडित है! क्या वामपंथी इससे मुन्ह मोड सकते है! युवाओ को सही दिशा मे ले जाने की जरूरत है।वामपंथी केरल, बंगाल, पूर्वोतर राज्यों मे इन्हें साफ्ट टारगेट बना सकती है। उसी तरह दक्षिणपंथी भी अपनी वाणी पर संयम रखें तो देशहित मे होगा।छात्र देश का भविष्य हैं, इन्हें गलत दिशा या गलत हाथों मे जाने से रोकना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है !पंथ या पंथी कोई भी हो जो मानवतावाद के ज्यादा करीब हो,स्वीकार्य है.।।कानून प्रदत स्वतंत्रता बंदिशो के साथ मिलती है परंतु इसका तात्पर्य उच्छृंखलता नही है।राजनीति को सब जगह मत घुसेड़िये, बस सब ठीक रहे!,सत्य कड़वा होता है ,सबको पसंद नहीं।अभी जैनमुनि तरुणसागर जी ने हरियाणा विधानसभा मे जो कडवी बाते कही , किसी को पचा नही! तो सबकी दुकान चलवाते रहिए,और अपनी रोटी सेंकते रहिए।किसी न किसी का सिक्का तो चल ही जाएगा,चाहे पंथ कोई भी हो..
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