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Showing posts from June, 2016

छिद्रान्वेषण

जनता है न, जिसने उसे प्रचंड बहुमत से जिताया है या यह भी कोई फर्जीवाडा है? चाहो तो जन सूचना अधिकार से मांग लो! तो उसे करने दो न अपने तरीके से काम! क्यों हरेक काम मे अडंगा लगाये फिर रहे हो! कुछ सोच कर ही जनता ने उसके हाथो मे सता सौंपी है, तो उसे अपने हिसाब से चलाने दो,जिसको रखना चाहे, जिससे काम कराना चाहे, कराने दो! यह भी तुमसे पूछ कर करेगा?अच्छा काम नही करेगा, जनता लात मार कर भगा देगी, जैसा सबको भगाती रही है! बमचक मचाने से क्या?यदि तुम्हारा काम इतना ही अच्छा होता तो तुम न आज, उस कुर्सी पर बैठे होते? जब अपना राज आये, तो अपनी चलाना, बस अब अपनी थोपो मत! बेकार की चकल्लस !अपने कुछ करेंगे नहीं और कोई कुछ करना चाह रहा तो चिल्लम पों मचाये रहेंगे! अरे! सार्थक मुद्दों पर विरोध करो, लोकतंत्र के महापर्व का इंतजार कर अपनी जमीन तैयार करो, ताकि जनता तुमको भी मौका दे !हड़बोंग मचाने से क्या होगा, सरकार तुम्हारी हो जायेगी?right to recall भी तो नही है यहाँ?और क्या पता बहुमत को उसका कामकाज पसंद आ रहा हो,तुम क्या जानो! कहावत है"सूप दूसलन चलनी के, जिसमें खुद बहतर छेद" अपनी गिरेबान देखो तब हल्ला मच

शख्सियत

किसी की आलोचना करने या व्यक्तित्व की समीक्षा का अधिकार या क्षमता उसी मे है जो स्वयं पाक-साफ हो।कहते हैं" शीशे के घरों मे रहने वालों को दूसरे के घरों पर पत्थर नही फेंकना चाहिए"।दुनिया मे परफेक्ट कोई नहीं होता और आदर्श पुरूष श्री राम के बाद कोई आदर्श पुरूष हुआ भी नहीं। कुछ लोग तो उनमें भी कमी खंगाल डालते  है।ऐसे मे किसी के व्यक्तित्व की आलोचना नहीं करना चाहिए, फिर भी दिल है कि मानता नही, समालोचना तो कर ही सकते हैं, खासकर तब जब वो आपकी जिन्दगी को प्रभावित कर रहा हो।। बातें तो उसकी अच्छी है ,दमदार है,सुधार परक है,परंतु समझाने का तरीका थोड़ा जुदा-जुदा सा है। तमाम लोगों को इससे पूर्व भी इसी कार्यशैली का देखा है हमने पर वो असफल और अलोकप्रिय ही रहे है हमेशा।शायद उनकी समझ है कि मानसिक प्रताडना और पब्लिकली बेईज्जती के डर से लोग उनकी बातों को follow करेगा ।जर्मनी के गोयबल्स कहते थे कि किसी बात को इतनी बार दुहराओ कि वो झूठी बात भी सही लगने लगे,हालाँकि उसकी बातें झूठी नहीं है पर दुहराता उसी स्टाइल मे है।।हालांकि उसे गोयबल्स या उसके शासक हिटलर नहीं कहा जा सकता, परंतु अनुशासन प्रियता उसी के

साहब का दौरा

"चिडियन के जान जाए और लइकन के खिलौना" यही हाल है आजकल हम जैसो का। सरकार आने वाले हैं, सुनते ही रग रग मे बिजली दौड़ जाती है और मीटिंगो को पंख। दे दनादन दे दनादन प्लानिंग का दौर प्रारंभ हो जाता है।लूट मच जाती है यदि इन आधुनिक जागीरदारो का दौरा जो लग गया।राजा महाराजा तो प्रिवी पर्चस के साथ स्वर्ग सिधारे,पर अपनी संतानो को छोड गए। ये राजा महराजा नही हैं तो और क्या हैं जिनके आने भर की सुचना से उनकी रियासत के छोटे बडे सारे कारिन्दे हलकान हो जाते हैं।फिर मचती है धमाचौकडी, उनके दरबारियों ,सैनिको,गुप्तचरो, भाटों-कवियों की और फिर जमघट लगता है,सुर्खूरु बनने वाले हुक्मरानो और चमचो का।सारी रियासत और रियाया आवभगत मे लग जाती है।सरकारी सेवकों को सभी चाक चौबन्द व्यवस्था के हुक्म सुना दिया जाता है,कहीं कोई कोर कसर न रहनी चाहिए, लेकिन सारी व्यवस्था वह स्वयं अपने संसाधनों से करे, कोई अतिरिक्त बजट नही है , चाहे जहाँ से करें।वह भी क्या करेगा ,अपना घर लुटा कर तो दूगा नहीं, व्यवस्था कैसे बनाई जाती है, उसे मालूम है! उल्टे कमाने का मौका मिल जाता है, तीन खर्च तेरह वसूली !सब कुछ रियाया के मत्थे जाता है।आख

इलेक्शन

ई चिरकुटई की हद है, कोई इस तरह भी कर सकता है, अभी तो सोचकर भी कुवाथे कपार फटने लगता है। अगर उसको जाना ही था तो धीरे बता देता कि 'हो दादा ! गलती हो गई, कान पकडकर माफी मांगते हैं, तो  क्या हम उसको खा जाते, टंगडी पकड के बांध लेते , फांसी चढा देते! सारा किए धरा पर पानी फेर दिया ई ससुरा!  सब मेहनत पर पानी फेर दिया!अब मेहरारु को क्या मुंह दिखाये जाके? ऊ त पहिलै से ही कहती रही ,के तुम्हरा भाउ ,तोके  एक दिन धोखा देगा, तुम आगे पीछे करते रहो,एक दिन चुपके से ठेंगा दिखा के नौ दो ग्यारह हो जाएगा। हमही निरा बामड, उसकी चिकनी चुपडी बातों मे आ गया वरना उ ऐसे थोडे न जाने पाता। हम भी सेठ भानूमल मारवाडी हाईस्कुल के नाइंथ फेल पास आउट ऐसे ही नही है।बडन बडन के हमने पानी पिलाया है और आज भी बिकऊआ के घर मे जो भी चिठ्ठी पतरी आती है, हमही को पढने के लिए बुलाया जाता है।साला! मेरा अक्ल ही घास चरने चला गया था। तब ही तो जब  मुखिया सीट पहले ही आरक्षण मे आ गया था तो मेहरारू के लिए टिकट मांगने की जरूरत ही क्या थी? उ तो बाद मे ब्लॉक वाले हाकिम ने बताया कि 'पंचायत चुनाव पार्टी आधार पर नही लडी जाती, और किसी को किस

ग्रामीण समाज मे बदलाव

।आज से बीस साल पहले हमारे गांव में जो धनाढ्य हुआ करते थे,आज उनका गांव मे कहीं स्थान नहीं है। उनके दरवाजे पर दिखने वाली बडी बडी बखारी,कोठी,पुआल के टाल खत्म हो चुके हैं! नव धनाढ्यो ने बहुमंजिला मकानों तथा बडी गाड़ियों से उनको काफी नीचे ढकेल दिया है।वास्तव में इन्होंने अपने आप को समय के साथ बदल दिया और जमीन -जायदाद को छोड़ कर नौकरी -व्यवसाय को वरीयता दी। पुराने लोग अपनी आन बान शान के चक्कर मे मुंछो को सम्भालते रहे! हालांकि विकास की अंधी दौड़ ने परंपरा,संस्कार,रीति रिवाज,तथा सामाजिक भाईचारे को कहीं पीछे छोड़ दिया ।पुरानी हवेली वाले अभी भी शाम के समय जाडे मे घुर(अलाव)के चारो ओर बैठे  बच्चो को  पुराने किस्से सुनाते मिल जायेंगे! लेकिन गांवो  का जो अंधाधुंध शहरीकरण हो रहा है,वो भी अधकचरा, जिसमें गांवों की मिट्टी की वो भीनी खुशबू कहीं खो सी गई है।फिर भी गांवों में जो अपनापन,पहचान और प्यार मिलता है वो शहरों में कहाँ? सभी यहाँ आपको आपके नाम,बाप दादा  के नाम से जानते हैं लेकिन  शहरो मे आपकी आजीविका और व्यवसाय से!!गावो में अभी भी प्रोफेशनलिज्म ने डेरा कम जमाया है।  यहाँ दिमाग की जगह लोगबाग दिल का

टापर स्कैण्डल

कुछ तो गड़बड है! जिस बिहारी प्रतिभा का आजकल मीडिया और सोशल मीडिया मे सरेआम मजाक बनाया जा रहा है, क्या सही मे उसने top किया है या बिहार को बदनाम करने की साजिश है? सी आई डी के ए सीपी प्रद्युम्न को लगाना पडेगा??बिहारी प्रतिभा के भुक्तभोगी आसपास के राज्य के छात्र और विदेशी भी रहे है जहाँ वो हक से अपने आप को स्थापित किए हुए हैं।कोई भी हिन्दी भाषी राज्य की प्रतियोगिता परीक्षा या राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता परीक्षा हो ,बिना बिहारी प्रतिभा को शामिल किए पूर्ण नहीं होतीं।किसी  को बिहारियो की योग्यता पर शक नही होगा ,परंतु ये लल्लू-पंजू  बिहार का नाम पूरा का पूरा मिट्टी मे मिलाय दे रहे हैं.. आक्क थू..।बिहार बोर्ड की परीक्षा भी इतनी आसान नही है तथा वहाँ भी सी बी एस ई पैटर्न पर परीक्षा हो रही है तब ये ढक्कन टाइप मुर्खाधिराज टाप कैसे कर गए?बिहारियो से जलने वालों को तो अच्छा मौका मिल गया, उनपर हंसने का! खूब हंसो बाबू! पर इतने भी गए-गुजरे नही है ये लोग।कंपटीशन वाला बिहारी तो ताल ठोक कर तैयारी कर ही रहा है महेन्द्रू घाट और मुखर्जी नगर,नेहरू विहार मे।वहाँ पर इन टापर वापर का जोड नही न चलता है । कितना भी