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Showing posts from 2023

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

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रविवार के दिन भी कोटा का कोचिंग सेंटर खुला हुआ था।  महाराष्ट्र के लातूर का रहने वाला अविष्कार बेमन से कोचिंग में टेस्ट पेपर देने पहुंचा। उसने पेपर तो दिया पर इसबार भी पेपर अच्छा नहीं हुआ, वह उठा और बिल्डिंग की छठी मंजिल पर पहुंच कर वहां से नीचे कूद गया। डॉक्टर बनने का ख्वाबों एवं मां -बाप के उम्मीदों का बोझ शायद ज्यादा भारी निकला। हालांकि आविष्कार अकेला नहीं था, उसके साथ उसके नाना - नानी रहते थे। रुटीन टेस्ट  में लगातार आ रहे कम नंबर से परेशान था और डिप्रेशन में था। आदर्श के भी नंबर कम आये थे, वह भी डिप्रेशन में था और अपने कमरे में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली। यह दो आत्महत्याएं तो सिर्फ़ सैंपल हैं। इस वर्ष जनवरी से लेकर अबतक कोटा में सुसाइड के 24 केस सामने आ चुके हैं। सिर्फ अगस्त महीने में ही 6 स्टूडेंट की जान गई है। इन 24 में से सात बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें कोचिंग में दाखिला लिए छह महीने भी पूरे नहीं हुए थे। कोटा में औसतन हर महीने तीन छात्र खुदकुशी करते हैं। साल 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या की थी। आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि यहां 2015 से 2019 के बीच 80 स्टूडेंट्स ने

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल

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15 जून को उत्तर प्रदेश में सरकारी गेंहू की खरीद बंद हो गई। इस वर्ष भी बहुत कम मात्रा में लगभग 2.19 लाख मीट्रिक टन गेंहू खरीद हो पाई। जाहिर है किसानों को बाजार में सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से ज्यादा मूल्य प्राप्त हो रहा है तो भला वो सरकारी केंद्रों पर अपना गेंहू बेचने क्यों लायेंगे। हालांकि भारत सरकार के  उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की सूचना के अनुसार देश में 30 मई 2023 तक गेहूं की 2.62 करोड़ टन खरीद हुई है, जो  पिछले साल के 1.88 करोड़ टन से काफी अधिक है। इसमें ज्यादातर खरीद पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश में हुई है। हालांकि इसके बावजूद संभवतः वर्ष 2007 के बाद सबसे कम सरकारी खरीद इसबार देश में हुई है। उत्तरप्रदेश में  पिछले साल की खराब मानसून और फिर बिन मौसम बरसात से बरबाद हुई फसलों के चलते अन्न उत्पादन खासकर गेहूं के उत्पादन में गिरावट आई है। गेंहूं के दाने सिकुड़े हुए थे और पूर्वांचल और बुंदेलखंड में फसल तैयार होने से पूर्व तेजी से बढ़ी गर्मी और धूप ने प्रति हेक्टेयर उत्पादन को कम कर दिया।                  वर्ष 2020-21 और 2021-22 में कोर

चरण स्पर्श पर विमर्श

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अहमदाबाद के दर्शकों से खचाखच भरे नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम में आइपीएल फाइनल मैच के बाद क्रिकेटर रविन्द्र जडेजा की विधायक पत्नी रिबावा जडेजा ने भरे मैदान में उपस्थित हजारों और करोड़ों लाइव दर्शकों के बीच अपने पति का चरण स्पर्श क्या कर लिया, मानो पूरे देश में एक बहस सी छिड़ गई। बहस के बीच कई बातें निकल कर सामने आयी है जिसमें सबके अपने अपने पक्ष हैं। कोई इसे भारतीय परंपरा और संस्कृति का प्रतीक मानते हैं तो कोई स्त्री समानता के विरुद्ध। कोई इसे पितृसत्तात्मक परंपरा का नाम दे रहे हैं तो कोई इसे राजनीतिक दिखावे के तौर पर देख रहा है।                 वस्तुत: पैर छूना, जिसे कुछ संस्कृतियों में "चरण स्पर्श" के रूप में जाना जाता है, पारंपरिक रूप से सम्मान और विनम्रता का प्रदर्शन माना जाता है। जब हम किसी का सम्मान करते हैं तो उनके पैर छूते हैं। इसे संस्कारों से जोड़ कर देखा जाता है, इसलिए छोटे अपने बड़ों के पैर छूते हैं। भारतीय परंपरा में बड़ों का पैर छूकर छोटे आशीर्वाद लेते हैं। अब इसमें स्त्री पुरुष के लिए मायने अलग हो जाते हैं जैसे हम अपने माता-पिता का या बेटियां भी मम्म

सीता जन्म वियोगे गेल, दुख छोड़ि सुख कहियो नै भेल

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इंसान हो या ईश्वर , पत्नी के बिना पूर्णता प्राप्त नहीं करता है, क्योंकि पत्नी को अर्धांगिनी माना गया है। क्या कभी आपने  सीता के बिना राम की कल्पना भी की है। यहाँ तक कि सीता वनवास के बाद जब राजा रामचंद्र अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे ,तब उन्होंने सीता की अनुपस्थिति मे यज्ञपीठ पर सीता की मूर्ति स्थापित किया था। यहां आप यह कल्पना कीजिए कि सरयू तट पर भगवान राम की विशाल मूर्ति, सीता के बिना कैसी होगी? सरयू नदी की लहरों को अठखेलियाँ करते देखते भगवान राम ! मानो सीता वनवास से कभी लौटी ही नही। हां! सत्य है कि सीता को कभी वनवास से लौटने ही नही दिया गया। ससुराल मे बहुओं और पत्नियों के साथ अन्याय की शुरुआत राजा राम के काल से ही माना जाता है। खासकर के हम मिथिलावासी तो इसे मानते ही हैं। यद्यपि भगवान राम को सीता प्यारी थी और अपना ससुराल भी। कहा जाता है कि रामायण में राम केवल तीन मौकों पर ही रोये हैं । पहली बार जब उनको पता चलता है रावण ने  सीता का अपहरण कर लिया है,दूसरी बार  जब उन्होंने अनुज लक्ष्मण को सीता को जंगल में छोड़ आने के लिए कहा था और तीसरी बार  जब सीता क्षोभ मे रोती हुई धरती में समा जाती हैं। स्पष

कहां जा रहे हैं हम

अभी कुछ दिनों पहले अखबार में यह खबर पढ़ी कि बेटों और बहुओं की प्रताड़ना से आहत एक बुजुर्ग दंपती ने जहर खाकर अपनी जान दे दी। यह अत्यंत ही हृदयविदारक घटना है। उनके द्वारा लिखा गया सुसाइड नोट अंतर्मन को  झकझोरने वाला है। बुजुर्ग दंपती ने लिखा कि उसके बेटों के पास तीस  करोड़ की संपत्ति है, लेकिन हम खिलाने के लिए उनके पास दो रोटी तक मयस्सर नहीं हैं। बुजुर्ग सेना से रिटायर थे और  अपने बेटे के साथ रहते थे। उनका पोता हरियाणा कैडर के आईएएस अफसर हैं। स्वाभाविक रूप से पढ़ा लिखा और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार है परंतु निश्चित रूप से संस्कारों की कमी है। अपने बहु द्वारा घर से निकाले जाने के बाद दो साल तक वे एक वृद्धाश्रम में रहे। बाद में उन्हें लगा कि हो सकता है कि परिवार का दिल बदल गया है तो  जब  वे लौटे तो फिर से उन्हें बाहर निकालकर घर में ताला लगा दिया। इसी बीच पत्नी के लकवाग्रस्त होने के बाद वे अपने दूसरे बेटे विरेंद्र के पास रहने लगे। यहां भी रुखी सूखी  बासी रोटी मिलती।  अच्छे खाने के लिए तरसते दंपति के अन्य आवश्यकताओं के बारे में तो कोई पूछता भी नहीं था। आखिरकार जब दर्द हद से बाहर हो गई तब उन

मल्टीवर्स- सृष्टि में कई ब्रह्मांड हैं

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                        इंग्लैंड की एक कथा है जिसमें काफी दिनों पहले  इंग्लैंड में खेत में काम कर रहे किसानों ने खेत में घूमते दो बच्चों को देखा ,जिनके त्वचा का रंग हरा था। किसानों को देखकर बच्चे भागने लगे। किसानों ने  उन्हें पकड़कर उनका पता और परिचय पूछा तो बच्चों ने बताया कि वे भाई बहन हैं और दूसरी दुनिया के हैं। वे  गलती से यहां फंस गए हैं और उन्होंने वापस लौटने के अनेकों प्रयास किए परंतु वे वापस जाने में असफल रहे तो थक कर खेतों में बैठ गए। उन्होंने बताया कि एक दिन वे दोनों एक मैदान में भेड़ चरा रहे थे कि अचानक पास की एक गुफा से मधुर गीत की ध्वनि सुनाई दी। उस ध्वनि का पीछा करते करते उस गुफा में चले गए और यहां पहुंच गए । बाद में अथक प्रयास के बावजूद उन्हें उस गुफा का सिरा नहीं मिला। वे दोनों उसी गांव में रहने लगे और धीरे- धीरे उनका रंग भी इंसानों जैसा हो गया।  कुछ सालों बाद वह लड़का बीमार हो गया और इलाज के दौरान उसकी मृत्यु हो गई और उस लड़की का विवाह इंग्लैंड के ही एक सम्राट से हो गया। ये कहानी मल्टीवर्स या अनेक ब्रह्मांड या अनेक दुनिया की अवधारणा की ओर इशारा करती है।                

सिनेमा के स्वर्णिम काल की दास्तान - जुबली सीरीज

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"फिल्म बनाने के लिए किसी न किसी के साथ तो सोना ही होता है, किसी के साथ जिस्म से तो किसी के साथ ईमान से।"  बेव सीरीज" जुबली " में जब अदाकारा नीलोफर अपने को एक्टर से यह बात कहती हैं तो वो फिल्म इंडस्ट्री का एक कड़वा सच बयां कर जाती है।  हाल ही में चालीस के दशक की फिल्म इंडस्ट्री पर बनी फिल्म "कला" ने ढेर सारी प्रशंसा बटोरी है। अब उसी पीरियड के  फिल्म इंडस्ट्री की जादुई दुनिया को पेश करती  सीरीज पेश की है विक्रमादित्य मोटवानी ने  प्राइम वीडियो पर। उड़ान , लूटेरा , ट्रैप्ड और भावेश जोशी सुपरहीरो  जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले विक्रमादित्य मोटवानी ने ओटीटी की सबसे पहली मशहूर वेब सीरीज सेक्रेड गेम्स  का निर्देशन किया था। उनकी नयी सीरीज 'जुबली' की कहानी हिंदी सिनेमा के गोल्डन एरा के साथ-साथ देश के बंटवारे का  मंजर भी बयां करती है। कहानी है इंडस्ट्री में टॉकीज के उस दौर की, जब एक्टर्स वेतन पर रखे जाते थे और टाकिजों अर्थात प्रोड्यूसर्स से बंधे रहते थे। श्रीकांत रॉय और सुमित्रा कुमारी अपनी " रॉय टॉकीज "को बचाने के लिए एक नए चेहरे म

पुस्तक समीक्षा - आहिल

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बाल मनोविज्ञान पर अनेक कहानियां लिखी गई जिसमें मन्नू भंडारी की " आपका बंटी" सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुआ। बच्चों को लेकर भगवंत अनमोल ने भी उपन्यास " बाली उमर" लिखी है। मेरे कथा संग्रह "बटेसर ओझा" में भी दादी और पोते के संबंध पर  भी एक कहानी कही गई है।  लेखक राहगीर का पहला उपन्यास "आहिल" एक पांच बरस के  ऐसे बच्चे की कहानी है, जिसकी हंसती- खेलती जिंदगी में एक पीर बाबा ने आग लगा दी, जिसने उसके अब्बा को यह समझा दिया कि  कुरान में लिखा है कि अच्छे और सम्मानजनक कार्य दांये तरफ होते हैं और बुरे और घृणित काम बांये तरफ। आहिल का दुर्भाग्य था कि वह वामहस्ती या बांये हाथ से काम करनेवाला था। बस क्या था उसके अब्बा ने अपने घर में होनेवाले हरेक दुर्घटना, ग़लत काम या बुरे काम के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। रोजाना मार पीट ,जलालत, तिरस्कार ने उसे अंदर से क्रूर और दृढनिश्चयी बना दिया।  आहिल राजस्थान के एक छोटे-से गाँव के एक छोटे से घर में जन्मा, पला-बढ़ा लेकिन उसकी दुनिया बहुत अलग थी।  "गुज़रा कल किसी पागल सांड को छेड़ने में गुज़र गया, आने वाला कल उसके आगे
कहावत है"अप्पन हारल और बहुअक मारल" कोई किसी नही बताता। " भीतर के मार खायल वो ही जाने जो खाया है!""जा हो बूड़बक मेहरारु से हार गये!"माना जाता है कि महिलाएं शारीरिक बल मे कमजोर होती है पर यह " अर्धसत्य " है, ओमपुरी वाला नही! तस्वीर का दूसरा पहलू भी है जो  " महिला सशक्तिकरण" के "लहालोट " मे गंवई  बिजली के बल्ब की तरह भुकभुका रहा है।सो काल्ड मर्दवादी समाज मे " पत्नी पीड़ित" मुखर और संगठित नही है।है तो ये विमर्श टाइप का विषय पर किसी" सो काल्ड वाद" न जुड़ पाने और किसी "दल "का समर्थन न मिल पाने के कारण " नेपलिया ट्रेन" की भांति धुकधुका कर चल रहा है।काफी पहले से ही कुछेक मर्द अपनी पत्नियों द्वारा प्रताड़ित होते आ रहे हैं। कहने का यह तात्पर्य कदापि नही है कि मर्द स्त्रियों पर जुल्म नही करते! बल्कि  क्विंटल के भाव मे " महिला उत्पीड़न" हो रहा है पर क्या इससे महिलाओं को भी " टिट फार टैट" का लाइसेंस मिल जाता है? बेचारे इन पत्नी पीड़ितों के सूखे और उतरे चेहरों को देखो! क्या तुम्हें इनके

अनारकली --मिथक या हकीकत

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अभी कुछ दिन पहले जी फाइव की बेव सीरिज "ताज- डिवाइडेड बाई ब्लड" देख रहा था। कहानी मुगल बादशाह अकबर और उसके तीनों बेटों की है। जाहिर जब अकबर के बड़े बेटे सलीम का जिक्र आएगा तो अनारकली की भी चर्चा अवश्य होगी। लेकिन आम प्रचलित कथाओं के विपरीत इसमें अनारकली को अकबर की बीबी और बेटे दानियाल की मां के रूप मे दिखाया गया है। सलीम और अनारकली की प्रेम दास्तान में सलीम को यह नहीं मालूम है कि अनारकली उसकी सौतेली मां है और जब यह उसे मालूम होता है तो वह उससे रिश्ता खत्म करने जाता है, उसी समय साजिश का शिकार होकर अकबर द्वारा पकड़ लिया जाता है। अकबर द्वारा चुपके से देश निकाला देने के बाद अनारकली अपने बेटे दानियाल के हाथों मारी जाती है। हालांकि लोगों की नजर में यही है कि अनारकली को दीवार में चुनवा दिया गया था। मुद्दा यह है कि क्या यह इतिहास के साथ छेड़छाड़ है या, वास्तविक इतिहास को सामने लाया गया है। अनारकली कौन थी, वह थी भी या नहीं? अकबर और सलीम से उसका क्या रिश्ता था? यह बहस का मुद्दा हो सकता है। लेकिन अनारकली की ऐतिहासिकता को लेकर यह तथ्य ध्यातव्य है कि समकालीन किसी भी इतिहासकार या लेखक ने उस

क्या गंगा नदी का अस्तित्व खतरे में है

कुछ साल पहले ऑस्ट्रेलियाई एफ एम  रेडियो के आर जे  काइली सेंडीलैंड्स ने गंगा नदी के बढ़ते प्रदूषण की चर्चा के क्रम में इसे कचराघर कहकर भारतीयों को भड़का दिया था। भारतीय आस्था के प्रतीक पावन गंगा के बारे में इस अनुचित टिप्पणी का इतना विरोध हुआ कि उन्हें आखिरकार माफी मांगनी पड़ी। हालांकि काइली द्वारा भारतीय जनमानस को ठेस पहुंचाना गलत था लेकिन दूसरे दृष्टिकोण से सोचें तो जिस संदर्भ में सैंडीलेंड्स ने यह टिप्पणी की थी , क्या वह ग़लत थी ? क्या वाकई में अपने बढ़ते प्रदूषण और सूखते जल के कारण गंगा आज सचमुच नाले में परिवर्तित नहीं हो रही है? आज गंगा गंभीर संकट से गुजर रही है। इसका अस्तित्व खतरे में है। यदि गंगा में प्रदूषण इसी तरह बढ़ता रहा और सरकार इसे संरक्षित करने का कोई कठोर उपाय नहीं करती है, तो संभवतः पचास वर्ष बाद गंगा नदी किताबों के पन्नों में सिमटी नजर आये अर्थात् गंगा नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।  स्थिति यह है कि एक रिपोर्ट के अनुसार  वाराणसी में गंगा नदी घाट से लगभग सात से दस फ़ीट अंदर की ओर खिसक गयी है। दशाश्वमेध घाट से गंगा नौ फीट, राजघाट से सात फ़ीट और अस्सी घाट से पांच फ़

स्त्री स्वतंत्रता

स्त्री स्वतंत्रता का विमर्श काफी पुराना है। स्त्रियां अपने अधिकार और समानता के लिए निरंतर संघर्ष करती रही है और बड़े शहरों में वो सफल भी हुई है। सामाजिक विकास के तीन स्तरो गांव,छोटे और मध्यवर्गीय शहर तथा मेट्रो शहर मे तीन अलग अलग समाज और स्त्रियो की स्थिति दिखलाई पडती है। हरेक स्तर के स्त्रियों की स्थिति, लड़ाई का स्तर, सोच में अंतर है। मेट्रो शहरों मे पिंक रिवोल्युशन है अर्थात् स्त्रियां स्वतंत्र है तो गांवो मे अभी भी खाप पंचायत है। स्त्री स्वतंत्रता की जब हम बात करते हैं तो मध्यमवर्गीय स्त्री की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। मेट्रो शहर की स्त्रियां पुरुषों के समकक्ष या कहीं कहीं उनसे आगे निकल चुकी है और गांवों में उन्होंने अपनी यथास्थितिव स्वीकार कर ली है। आज भी पुराने पितृसत्तात्मक कानूनों की चक्की में पिसते रहने के लिए उन्होंने स्वयं को ढाल लिया है। लेकिन मध्यमवर्गीय स्त्री पेंडुलम बनी बैठी है। तमाम सुविधाएं, कानूनी हक, शिक्षा, नौकरी के बावजूद वो बंधन से निकल नहीं पा रही हैं।स्त्री सुरक्षा के लिए बने तमाम कानूनों का पढ़ी लिखी और समर्थ स्त्रियां लाभ उठा रही है। पढे लिखे और खुले विचारो