कश्मीरी पंडितों का सवाल
कश्मीर से धारा 370 के हटने के बाद बदले माहौल मे कश्मीरी पंडितों मे अपने वतन वापसी की आस पुनः जागृत हुई है। इतना ही नही कश्मीर मे बसने की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए सबके लिए वहाँ जमीन खरीदने की सहूलियत दे दी गई है परंतु पंडितों के विस्थापन की समस्या यथावत जीवित है। यूं तो जन समूह का विस्थापन एक सतत प्रक्रिया है ,जो मानवीय इतिहास मे होता ही रहा है। सबसे बड़े मानव समूह का स्थायी विस्थापन तो देश विभाजन के समय हुआ था। वस्तुतः कश्मीरी पंडितों का विस्थापन इसी देश विभाजन की उपज है । देश मे ही एक राज्य से दूसरे राज्य मे धर्म के आधार पर विस्थापन की यह अनूठी घटना है।हाल ही मे लेखक अशोक कुमार पांडेय की कश्मीर पर बैक टू बैक दो किताबें आयी है। पहली कश्मीर नामा और दूसरी "कश्मीर और कश्मीरी पंडित"! लेखक ने अपनी पुस्तक कश्मीर और कश्मीरी पंडित मे कश्मीरी पंडितों के इतिहास को समेटते हुए समग्र रुप मे इसे देखने और दिखाने का प्रयास किया है। वस्तुतः लेखक कश्मीरी पंडित विस्थापन के उस विमर्श को तोड़ने का प्रयास किया है जिसके अनुसार मुस्लिमों ने पंडितों(हिंदुओं) को उनके अपने घर से निकाल दिया कि जाओ