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Showing posts from December, 2020

कश्मीरी पंडितों का सवाल

कश्मीर से धारा 370 के हटने के बाद बदले माहौल मे कश्मीरी पंडितों मे अपने वतन वापसी की आस पुनः जागृत हुई है। इतना ही नही कश्मीर मे बसने की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए सबके लिए वहाँ जमीन खरीदने की सहूलियत दे दी गई है परंतु पंडितों के विस्थापन की समस्या यथावत जीवित है। यूं तो जन समूह का विस्थापन एक सतत प्रक्रिया है ,जो मानवीय इतिहास मे होता ही रहा है। सबसे बड़े मानव समूह का स्थायी विस्थापन तो  देश विभाजन के समय हुआ था। वस्तुतः कश्मीरी पंडितों का विस्थापन इसी देश विभाजन की उपज है । देश मे ही एक राज्य से दूसरे राज्य मे धर्म के आधार पर विस्थापन की यह अनूठी घटना है।हाल ही मे  लेखक अशोक कुमार पांडेय की कश्मीर पर  बैक टू बैक दो किताबें आयी है। पहली कश्मीर नामा और दूसरी "कश्मीर और कश्मीरी पंडित"! लेखक ने अपनी पुस्तक कश्मीर और कश्मीरी पंडित  मे कश्मीरी पंडितों के इतिहास को समेटते हुए समग्र रुप मे इसे देखने और दिखाने का प्रयास किया है। वस्तुतः लेखक कश्मीरी पंडित विस्थापन के उस विमर्श को तोड़ने का प्रयास किया है जिसके अनुसार मुस्लिमों ने पंडितों(हिंदुओं) को उनके अपने घर से निकाल दिया कि जाओ

न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बवाल

अपनी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तो किसानों का अधिकार है, उसे मिलना ही चाहिए। उसने जो खेती मे लागत लगाई है जैसे बीज, खाद, पेस्टीसाइड, श्रम,खेत तो उसकी मूल पूंजी है चाहे अपनी है या किराये की है, उसका उसे प्रतिफल तो  मिलना ही  चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि खेती को जबतक मात्र आजीविका का साधन बनाये रखा जाएगा, तबतक उसे लोग दिल से नही अपनायेंगे। ये अलग बात है कि  खेती कभी व्हाइट कालर जाब तो नही बन सकता परंतु इसे व्यवसाय के रुप मे परिवर्तित कराना ही  होगा। यदि सभी किसान सिर्फ अपने खाने के लिए खेतों से  पैदा करने लगेगा तो बाकी तीस -चालीस प्रतिशत जनसंख्या क्या खाएगी? अब प्रश्न यह है कि जब खेती किसानी इतना महत्वपूर्ण है तो सरकार एमएसपी को कानूनी अधिकार का दर्जा क्यों नही देती अर्थात जो कोई भी एमएसपी से कम मूल्य पर किसानों की उपज  खरीदेगा ,उसके विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जाएगी। वस्तुतः आप जब राज्य सरकारों द्वारा निर्गत धान या गेंहूँ क्रय नीति का अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि ये तो पहले से ही यहाँ दर्ज है। यहाँ स्पष्ट लिखा  है कि किसानों द्वारा लाये गये गेंहूँ या धान की मंडियों मे बोली लगाई