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मैथिलों की नजर से अयोध्या

आखिरकार अयोध्या मे भगवान राम जन्मभूमि का चिरप्रतीक्षित मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया है । 5 अगस्त को इसका भूमिपूजन कार्यक्रम भी निर्धारित है। ऐसे अवसर पर जब अपनी जन्मभूमि से विस्थापित भगवान राम को उनका घर वापस मिलने जा रहा है, स्वाभाविक रुप से हम मैथिलों को सबसे ज्यादा खुशी हो रही है, साथ मे सिया सुकुमारी के लिए दर्द भी हो रहा है। सच है कि आदमी हो या ईश्वर ,बिना पत्नी के पूर्ण नही होता, क्योंकि पत्नी को अर्धांगिनी माना जाता है। क्या कभी आपने राम की सीता के बिना कल्पना भी की है ,यहाँ तक कि सीता वनवास के बाद जब राजा राम अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे ,तब उन्होंने सीता की अनुपस्थिति मे यज्ञपीठ पर सीता की मूर्ति स्थापित कर दिया था। आप कल्पना कीजिए कि सरयू तट पर भगवान राम की विशाल मूर्ति, जो सीता के बिना कैसी होगी? सरयू नदी की लहरों को अठखेलियाँ करते देखते भगवान राम ,मानो सीता वनवास से कभी लौटी ही नही। हां! सत्य है कि सीता को कभी वनवास से लौटने ही नही दिया गया। शायद ससुराल मे बहुओं और पत्नियों के साथ अन्याय की शुरुआत रामकाल मे ही प्रारंभ हुआ था।खासकर के हम मिथिलावासी तो ऐसा मानते ही हैं। वैसे भगव