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Showing posts from July, 2016

कश्मीरी अवाम का दर्द

"जबरा मारे रोवन न दे" किससे कहें, कैसे कहें अपनी दास्तान ! सलीम ने जब अपनी भीगीं पलको को पोछते हुए जब ये बातें कही तो चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था! साहब  ! इस जन्नत की किसकी नजर लग गई , बद् दुआ लग गई " । धीरे धीरे सब कुछ खत्म हो रहा है। जो शिकारे कभी खाली नही रहते थे , अब यहां फांके पड़े रहते हैं। वो कहते है किराये पर दोगे तो जबरदस्ती दस हजार हरेक महीना जमा करना होगा वरना वो जो रहने आयेगा, उसे मार देंगे।कोई टूरिस्ट.अब यहां नही रहने आना चाहता। कौन मरना चाहेगा। कई सालो बाद तो जन्नत मे बहार आयी थी, फिर पहले जैसा होने लगा है।।  आप कहते हो, कश्मीरी लुटेरे है, चोर है, । नही साहब ! हमारी मजबूरी को समझो!जो आता है उससे हमे मजबूरन दुगूना तिगूना पैसा लेना पढता है,नही तो उन दहशतगर्दो को कहां से पैसा देंगे?  सुना है कश्मीरी बच्चो का अपहरण कर सीमा पार ले जाते है, अल्लाह  जाने क्या गुनाह किया है, हमने । हमको मारने के लिए हमारे बच्चो को ही हथियार थमा देते है।सबको क्या जाने दिमाग  मे भर दे रहे हैं कि जेहाद है, मरोगे तो जन्नत मिलेगा! कमीने है साले! कीड़े पड़ेंगे! क्या बताऊं साहब! अभी कुछ दिन

सरकारी नौकरी मे वर्ग संघर्ष

 आपने कभी अमीरो एवम सम्पन्नो को आपस मे लडते-झगडते देखा है?? उनका हित हमेशा से सधता आया है! वे चुपके से अपना काम under the table काम कराते रहते है और जाहिराना तौर पर आम जनता की भलाई का दिखावा करते है! ये गंवई भाषा मे "भाग्य के सांढ " होते है!अभावग्रस्त एवम गरीब लोगो मे हमेशा कुछ पाने की जद्दोजहद,संघर्ष तथा लडाई होती रहती है! सम्पन्न लोग हमेशा इनको  आपस मे उलझाये रखकर अपना उल्लू सीधा करते है! क्या कभी आजतक इन दोनो वर्गो का मेल (सम्विलियन) हो पाया है? ये इनके लिए लौलीपाप तथा फंतासी ही बना रहेगा! इनका वर्ग संघर्ष जारी है और रहेगा! विभागीय सशक्त और सम्पन्न लोगो का काम केवल निम्न तबको का शोषण करना है! ये ऐसा माहौल पैदा कर देते है कि दबे कुचले  लोग मुख्यालय की गणेश परिक्रमा से लेकर  सचिवालय का चक्कर प्रारम्भ कर देते है!अधिकारियो  और  समर्थ  लोगो ने  अपना नया-नया झोला सिलवाया  लिया  है जो वो हरेक बरसात सीजन अर्थात ट्रांसफर सीजन मे सिलवाते है क्योंकि इस समय बाहर पानी और अंदर धन बरसता है!  बरसात का सीजन  आ गया है,ना जाने कितना बरस जाये? इसका इस्टीमेट लगाना जरा मुश्किल है ।ये तो डिमां

लंगोटिया यार

बचपन मे उसका दो लंगोटिया यार था एक हरदेव पासवान और दूसरा मोहम्मद अकरम। अब लंगोट तो वे लोग बांधते नही थे, हां सरकारी कोटे के दुकान पर डोरिया वाला कपड़ा आता था,उस समय उसी का सब अंडरपैंट और आऊटर पैंट दोनो पहना जाता था। कभी कभी उसका पाजामा भी सिल दिया जाता था। नया पैजामा और बूशर्ट तो होली दिवाली मे ही पूरे घर का बनता था, सूलेमान टेलर के यहां। हां तो मै लंगोटिया यार के बारे मे कह रहा था, मतलब स्कूल मे साथे बैठने से लेकर, टिफिन के समय दूकान पर मूढी-घुघनी और कचरी खाने के साथ साथ छुट्टी के समय तक एक साथ रहना,खाना पीना, गप सडाका करना और फिर पैदल बस्ता उठाकर सरपट घर की ओर दौडना, सभै साथे था। घर पहुंचता तो शिकायत पहले ही पहूंची रहती कि फलांना का बेटा जाति धरम सभे भ्रष्ट कर लिया है। एके साथ प्लेट मूढी घुघनी खाते देखा है, पंडित का नाक कटा दिया।  वो क्या करता,एक कान से सुना दूसरे से निकाल देता,। अरे! दोस्त दोस्त होता है उसमे जाति धरम क्या होता है? क्या अंतर है उसमे और मुझमे, नाक कान मूंह हाथ पैर सभे तो एके समान है ,तो फिर काहे का भेद? हां इतना अंतर है कि हमारा पक्का का घर है और उसका झोंपडी या खपरैल।म

मार्केट मे नया है..

बूमरैंग को जब हम फेंकते है तो घूम फिरकर वापस आ जाती है ,पर इससे यह पता नही चलता कि दुनिया गोल है ।प्रयोग के तौर पर सोशल मीडिया पर आप कोई मैसेज डाल दो,इस टैग के साथ कि मार्केट मे नया है ,जल्दी फारवर्ड करो" ।अगले दस पंद्रह दिनो मे पुन: वह घुम फिरकर आपके पास आ जाएगी कि " मार्केट मे नया है ,जल्दी फारवर्ड करें"।असल हम कुछ पढते है या जानते है या सोचते है तो हमे लगता है कि यह मौलिक है और और पहली बार हमही को पता चल रहा है परंतु वो पहले से ही विद्यमान रहता है।हम मौलिक या अपनी खोज समझ कर जल्दी से मार्केट मे फेंकते है पर वो बूमरैंग या echo effect की तरह वापस आ जाता है।आध्यात्म भी यही कहता है कि हम जो करते है ,कहते है घुम फिरकर हमारे पास वापस आता है क्योकि दुनिया मे कोई भी चीज ना तो बनती है और ना खत्म होती है, सिर्फ अपना स्वरुप बदलती है।प्रत्येक अणु या उर्जा अक्षुण्ण है, जो हम तरंगे छोड चुके है वो हमेशा विद्यमान रहती है। यदि कोई मशीन हो जोइन्हे पकड सके तो आदिकाल मे क्या हुआ था, पता चल जाये हम सोचते है कि हमने ये तीर मारा, वो तीर मारा, फलानां ढेंकाना, सब व्यर्थ! मूर्ख है हम जो ऐसा स

तबादला उद्योग

सरकारी विभाग मे यूँ तो तबादला एक सामान्य प्रक्रिया है पर यह कई कर्मचारियों के लिए हादसे से कम नही है।नौकरी ज्वाइन करते समय तो सब तैयार रहते हैं कि कहीं भी नौकरी करा लो परंतु जैसे ही स्थायीकरण होता है ,अपने घर के आसपास नौकरी करने की कवायद प्रारंभ हो जाती है, चाहे इसके लिए जो भी करना पडे। तबादले किस तरह किये जातें हैं और क्यों किए जाते हैं,ये किसी से छुपा नहीं है ।कोई कोई सरकार इस तबादला उद्योग से स्वयं को अलग रखते हुए  स्थानांतरण सत्र शून्य कर देती है, परंतु इससे उनके मंत्री और पार्टी लाभान्वित नही हो पाते और यह उनमें असंतोष उत्पन्न करता है।।मजबूरन तबादलो के माध्यम से मालदार पोस्ट और जगह पर अपने नजदीकियो को लाभान्वित कराया जाता है।इस कारण बहुत से अधिकारी / कर्मचारी स्थान विशेषज्ञ या मठाधीश बन गये हैं, इसके लिए शीर्ष नेतृत्व बहुत हद तक जिम्मेदार होता हैं , जो धनपशु, बाहूबली, व् राजनैतिक पहुँच वाले अधिकारियों और कर्मचारियों के सम्मुख नतमस्तक होता रहता है और उनके लिए स्थानांतरण नीति को ताक पर रखा जाता  है।अपने लोगों के लिए 10 साल, 6 साल या 3 साल का प्रतिबंध कोई मायने नही रहता, कई तो पूरी ज

पट्टीदारी का डाह

" का हो लाल भैया ! काहे सबेरे सबेरे मुंह लटकाये आ रहे हो? कोनो से झगड़ा मारपीट हो गया, कि भौजी से कहा सुनी हो गया! अरे! नही रे बटेसर! उ जो बगल वाली पोखरी मे मछली पालन होता है न! उसमें हरेक साल बरसात के महीने मे मछली मारा जाता है और बंटबारे मे हमेशा से प्रमुख जी का सबसे बडा हिस्सा जाता रहा है, कबहूं कोनों विवाद न हुआ। परंतु इ जो नयका नयका प्रधान सब हुए है न, वो सब अब कह रहे हैं कि जुग बदल गया है, अब प्रमुखी का उतना महत ना रहा, अब परधान सबसे ज्यादा महत वाला पोस्ट हो गया है इसलिए वो प्रमुख वाला हिस्सा और काम उसे चाहिए। अब बताओ इ नया नया लौंडा लोग, भले ही प्रधान हो जाय, कल तक साथे साथे चौक चौराहा घुमा फिरा करता था, सब सुकरम आ कुकरम साथे किया और आज बडका हाकिम हो गया है।उनको पावर चाहिए, बडका हिस्सा चाहिए, कुच्छो ना लेने देंगे, चाहे कुछ हो जाय । एतना ही नही गांव मे पंचायत शिक्षक, रोजगार सेवक,सफाई कर्मी ,सभे के नियुक्ति, और दंड देने का अधिकार भी चाहिए महाराज को! इ मुंह और मसूर की दाल !जानते हो" नया मुल्ला प्याऊज प्याऊज ज्यादा चिल्लाता है।बटेश्वरनाथ कान्वेंट प्रोडक्ट है और शहर मे स्कूल

पोस्टिंग

नरेश ने चैन की सांस ली ,चलो अच्छा है वो विभाग से चले गए।नये साहब तो उसके एरिया के है और पुरानी जान पहचान भी है,अब तो मजे ही मजे है।अब तो उसे मनचाही पोस्टिंग मिल जाएगी, काफी दिन से उस ब्लॉक मे जाने की उसकी दिली ख्वाहिश थी।पहले वाले ने तो तीन पेटी का डिमांड किया था, ये तो जान पहचान वाले हैं, थोडा किसी नेता से कहलवा देंगे तो काम आसानी से हो जाएगा! अगले दिन सुबह ही सुबह वह मिठाई का डब्बा लिए दरबार मे हाजिर हो गया। पर यह क्या? यहाँ तो दरबारियो की लाईन लगी हुई  है! अर्दली को एक हरा पता थमाया तो जल्दी साहब से मुखातिब होने का मौका मिल गया! साहब से घर परिवार, गांव समाज आदि की बात करते करते दिली ख्वाहिश पे आया तो साहब बोले" देखो उसका काफी डिमांड है, लेकिन मै भी चाहता हूँ कि कोई अपना आदमी वहाँ आये! अब रेट तो वहाँ का पांच पेटी है, लेकिन तुम अपना आदमी हो तो चार कर देना! वैसे घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या?   और हमें भी तो उपर करना पडता है।ये तो तुम जानते हो कि बिना दिए कोई यहाँ आता नहीं और हरेक साल ट्रांसफर से बचने के लिए एन डी ए (नान डिस्टर्बेंस एलाउंस) उपर देना पडता है।वो कहाँ से आएग

जीवन के रंग

धन एवं भौतिक सुखो की चाह मनुष्य को क्या से क्या बना देती है! अपने पराये, अच्छे बूरे, सच झूठ की पहचान समाप्त हो जाती है।कहा जाता है आंखों पर पर्दा पर जाता है और वह सिर्फ सामने वाले को धन उगाहने वाली मशीन समझ लेता है और मानवीय संवेदनाये समाप्त हो जाती हैं।कहते है कि डायन भी चार घर छोड़ कर अपना काला जादू दिखाती है पर इनपर कोई असर नही होता। "मुठ्ठी बांधे आया तु बंदे ,हाथ पसारे जाएगा, नंगा आया,कुछ भी कमाया, नंगा ही तू जाएगा।" तुम्हारे महल चौबारे, यहीं रह जायेंगे सारे, अकड किस बात की प्यारे, कहीं तो सर झुकाना है" ये धन दौलत तुम्हारे किस काम के, क्या कोई इसे साथ ले जा पाया है! फिर भी हाय हाय! जानते सभी है परंतु फिर भी सभी रमे है इसी मे, यही माया है, ठगिनी हमेशा छलती रहती है! सब छलावा है फिर भी मारकाट, लूटपाट, भ्रष्टाचार, अपहरण, बलात्कार, धोखा ,फरेब, जारी है। दुनिया मे सबकुछ चलायमान है, कोई रुकता नही।रोकती है तो सिर्फ मौत! वो भी क्षणभर के लिए।पात्र बदल जाते है पर जिन्दगी का रंगमंच सजा रहता है।"बाबू मोशाय" से सबको "आनंद" एक जिंदादिल इंसान याद आ गया होगा , जो मौ