दलित लोकदेवता सलहेस
भारत ग्रामों का देश है और हरेक ग्राम मे ग्राम देवता और लोक देवता हैं। जातियों - पंथों के अपने अपने देवता और नायक हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री " एम एन श्रीनिवासन " ने समाज के संस्कृतिकरण मे इस पर विस्तृत रूप से लिखा है कि किस तरह समाज के निम्न तबके की जातियां अपने उत्थान के लिए उच्च जातियों की संस्कृति अपना लेती है। वस्तुतः निम्न जातियों के लोकदेवता कभी भी मुख्य धारा के सांस्कृतिक इतिहास के पात्र नही रहे। ये तो सबलटर्न इतिहास लेखन ने उन्हें स्थान दिया है। इन लोक देवताओं और नायकों ने हमेशा उच्च जातीय सत्ता को चुनौती दी है। ऐसे ही लोकनायक या लोकदेवता हैं राजा सलहेस। इनकी कथा का मुख्य स्रोत दलित लोक गायन परंपरा है। उत्तर बिहार और नेपाल की तराई के इलाक़े में दुसाध जाति सलहेस देवता की पूजा करती है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि सलहेस दरअसल शैलेश का अपभ्रंश है, जिसका सम्प्रदाय पांचवीं-छठी सदी में भी मौजूद था।इन्हें श्रद्धा और आदर से "राजा जी "भी कहा जाता है। गांव एवं छोटे शहर में बट अथवा पीपल के वृक्ष तले इनका स्थल गहबर (पूजा स्थल) या गुहार लगाने का स