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Showing posts from July, 2017

स्क्रीनिंग

"कोई आया है क्या?" राजिन्दर ने मेन गेट से घुसते हुए कहा" दरवाजे पर किसकी कार खड़ी है? " बिहारी काका आये है! कल रात मे आये! छुटकी के मधुश्रावणी मे नही आ पाये थे! ओझाजी से मिलना था!" मै बोला। " लेकिन ये तो बिहारी काका की गाड़ी तो है नहीं! न नीली बत्ती लगी है और न नंबर प्लेट पर " प्रदेश सरकार" लिखा है! इसीलिए दाऊट हुआ कि बिहारी काका आये हैं!" राजिन्दर ने कुर्सी पर बैठते कहा! तबतक अंदर से बिहारी काका भी अंगैईठी करते निकले और पीछे से रामपुरवाली  चाची चाय लेकर  आ गई।  राजिन्दर भी चाय सुड़ुकने लगा। " हौ राजिंदर! का कहें, लगता है अबतो सरकारी नौकरी का कोनों चार्म ही नही रह गया। पहले नीली बत्ती हट गयी। उसी का पब्लिक ,गांव समाज मे भौकाल बनता था। कहीं गये तो साहब साहब कहके लोग सम्मान देते थे पर अब तो जाके बताना पड़ता है कि हम साहब हैं। बताओ ईहो कोई इज्जत है?" काका का दर्द निकल पड़ा था। मै बोला" चाचाजी! सरकार तो वीआईपी कल्चर खत्म करना चाहती है। समाजवाद लाना चाहता है। ऐसे सारे प्रतीक जिससे कोई खास बन जाता है उसे समाप्त करना चाहती है।"

टीस तो रहेगी

कालेज मे था जब अचानक सुनने को मिला, अब हम सबको सरकारी नौकरी नही मिल पाएगी। पहले तो समझ मे नही आया !" क्यों भाई ? कौन सा अपराध किया है? बताया गया तुम्हारे पुरुखों ने किया है, अब तुम लोग झेलो!"  यह तो वज्रपात था उस समाज के लिए । मध्यवर्गीय बिहारी समाज मे सरकारी सर्विस की अहमियत युपी - बिहार के लोग आसानी से समझ सकते हैं।खेती कर नही सकते थे, जातीय बाध्यता और  सामाजिक प्रतिष्ठा आड़े आ रही थी। अब जिसने भी कहा हो, कहते थे" ब्राह्मण जब हल की मूठ पकड़ता है तो अकाल पड़ जाता है"! जरूर किसी चालाक ब्राह्मण ने शारीरिक मेहनत से अपने को बचाने के लिए हल्ला उड़ाया होगा!" उद्योग धंधा भी नही था न,दस से पांच वाले सरकारी स्कूलों से पढे थे ,जहाँ छठी क्लास से अंग्रेजी का ए बी सी डी पढाना प्रारंभ होता था तो मल्टीनेशनल  या प्राइवेट कंपनियों मे घुसने मे दिक्कत थी, जहाँ फर्राटेदार इंग्लिश स्पीकिंग को जाब मिलती थी हालांकि उस समय मल्टीनेशनल कंपनियों ने आना ही शुरू किया था तो ऐसे मे नौकरियों मे स्कोप कम होने से जैसे वज्रपात हुआ। संपूर्ण देश जल उठा था और हमलोग भी उसमे आंदोलित थे, अपनी अपनी क्षमता

किशना की अम्मा

" भागो ! अम्मा भागो" किशना जोर से चिल्लाया। खेत मे धान के बेहन लगा रहा था । अचानक नजर उठी तो  उसे लगा कोई जानवर घात लगाये झाड़ियों के पीछे दुबका है। उसकी अम्मा उसके लिए " पनपिआई" लेकर आई थी, मेड़ पर बैठकर सुस्ता रही थी और  उन सबको देख रही थी। "किशना भी अपने बाबा की तरह दिखता है ना! उसे वो पुराने दिन याद आ रहे थे जब उनकी नयी नयी शादी हुई थी और पहली बार वह घूंघट काढे किशना के बाबा के लिए पनपिआई लेकर यहाँ आई थी। आसपास के खेतों मे काम करनेवालों मे खुसूर फुसूर होने लगी थी। महिलाएं मुंह ढंक कर हंसने लगी थी।किशना के बाबा ने एक कौर अपने हाथों से तोड़कर उसके मुंह मे रख दिया था। सबको ठिठियाते देख दोनों शरमा भी गये थे। ख्यालों मे खोई अम्मा ने शोर सुनकर पलटकर देखा तबतक देर हो चुकी थी। आदमखोर ने झपट्टा मारकर पीछे से उसकी गर्दन दबोची और घसीटकर झाड़ियों की ओर ले जाने लगा। किशना के शोर को सुनकर आसपास के खेत मे कामकरने वाले कुदाल, खूरपी, बाल्टी, जिसको जो हाथ लगा ,लेकर दौड़े। संजीवन तो ट्रैक्टर दौड़ाते उसके पीछे दौड़ा। बाघ  काफी तेजी से उसे घसीटते ले जा रहा था। अम्मा के प्राण तो