पिंक रिवोल्युशन






स्त्री स्वतंत्र्ता का विमर्श काफी पुराना है! सामाजिक विकास के तीन स्तरो गांव,छोटे और मध्यवर्गीय शहर तथा मेट्रो शहर मे तीन अलग अलग समाज और स्त्रियो की स्थिति दिखलाई पडती है! मेट्रो मे पिंक रिवोल्युशन है तो गांवो मे खाप पंचायत है !पढे लिखे और खुले विचारो के बावजुद समाज की विडम्बना है कि जितनी स्त्रियो को हम उनपर हुए जुल्मो के खिलाफ आवाज़ उठाते हुए देखते हैं ,उस से अधिक महिलाओ की चीखे दम तोड़ देती हैं।उनमे से कितनी महिलाये अपनी सुरक्षा के लिए पुलिस के पास जा पाती हैं और कितनी बिना अपने को बेइज्ज्त कराये वहाँ से सहायता पा लेती हैं ? स्त्री मन कुछ नही होता वह समाज के लिये सिर्फ देह है,, जिसका हरेक स्तर पर सिर्फ भोग किया जाता है! स्त्री के खुलेपन का सीधा सम्बंध उसके : इजली एवलेवल" होने से लिया जाता है पर मर्दो को "लाइसेंस रिन्युवल:" की आवश्यकता नही !फिल्म "पिंक" माडर्न सोसायटी की कहानी है फिर भी उसमे स्त्रियो के प्रति पुरुष मानसिकता का दिवालियापन दिखता है! हाल मे दिल्ली के सेक्स सी डी कांड मे सोशल मीडीया पर स्त्रियोको मटर पनीर से ज्यादा लजीज चीज कहकर चटखारे लिये गये और लौकी भी कहा गया! . कितनी घटिया बात है कि रंग-रूप के आधार पर औरतों को मटर-पनीर और लौकी में बांटना और पुरुष को एक भोगी और भक्षण कर्ता मानना!. एक शिकारी, जो औरत का सिर्फ शिकार करेगा."", मैं तो तंदूरी मुर्गी हूं यार, गटका ले सैयां अल्कोहल से.""! हाल मे ब्रिटेन मे नूर नामक एक महिला को मात्र इसलिये जान से मारने की धमकी दी गयी कि उसने जींस पहना था!" ‘अपनी जीन्स उतारो, काफिर. वरना नरक की आग में जलोगी."!’एक जैन मुनि कहते है कि जींस पहनने से गुप्तांग मे घर्षण होता है और मनोविकार आता है! पर समय और मानासिकता बदल रही है" पिंक रेवोल्युशन" और "रेड मंथएंड" को बेबाकी से शेयर किया जा रहा है! ये हमारा देह है और मै इसका जैसे उपयोग करु ,मेरी मर्जी, हिट है! लिव इन रिलेशनशिप और बिन ब्याही मा आजकल फैशन मे है !यह स्त्री स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है!यहाँतक कि स्त्रियो ने आपस मे भी शादी करना शुरु कर दिया है!!स्त्री-मुक्ति आन्दोलन यदि इसी रूप में आगे बढ़ता तो किसी सार्थक मुकाम पर अवश्य पहुँचता परंतु विदेशी नारी मुक्ति आन्दोलन की तरह शारीरिक सुख, यौन स्वतन्त्रता के चलते वह भी विकृत हो गया!. फलस्वरुप अधिकारों, दायित्वों, कार्यों की माँग करने वाली महिलायें यौन स्वतन्त्रता की बात करने लगीं.! उनका लक्ष्य नारी देह की स्वतन्त्रता हो गया, यौन स्वतन्त्रता हो गया!. इसे नारी सशक्तीकरण की बिडम्बना ही कही जायेगी कि नारी सशक्तीकरण की समर्थक स्त्री नारी सशक्तीकरण की सफलता इस बात से तय करती है कि कब पुरुष वेश्यालय बनेंगे? जिगोलो को हायर करना फैशन और "स्त्रीयापा" दिखाने का प्रतीक बन गया! मर्दानगी को चेलेंज करने मे मजा आरहा है! मां बनना केवल स्त्रियों का एकाधिकार है !प्रेगनेंसी को ‘वुमन पावर’ से जोड़ा जाता है, ये तो एक औरत की शक्ति है, जो बच्चे पैदा कर सकती है. पुरुषों के पास इतनी शक्ति कहां. ये वरदान है मातृत्व का, जो केवल औरतों को मिला है.,पर इसकी भी मांग होने लगी है कि औरतों को अपनी प्रेगनेंसी ख़त्म या बच्चा पैदा करने के लिए किसी की इजाजत नहीं होनी चाहिए!. बच्चा पैदा करना उनका अपना फैसला है. ये उसका फ़र्ज़ नहीं है! अब साइंस बहुत आगे निकल चुकी है!. कई ट्रांसजेंडर जो अपने आपको पुरुष मानते हैं, उनको भी पीरियड होते हैं!. बल्कि एक ट्रांसजेंडर हाल-फ़िलहाल मां भी बना है! हो सकता है भविष्य मे पुरुष भी मा बनने लगे! अभी हाल मे " सरोगेट मदर " का प्रचलन तेजी से बढा है! भारत सरकार ने इस सम्बंध मे कानून भी बनाये है! महिलाये " लेबर पेन " से बचना चाहती है! यन्हा पुरुषो से समानता आडे आ रही है! क्यो मै ही लेबर पेन सहु ! पर सिर्फ बडे शहरो मे, जहाँ माडर्नाइज्ड सोसाइटी है!
सुदुर गांवो मे अभी भी वही स्थिति है जो आज से सौ साल पहले थी! हालांकि टीवी, मोबाइल और इंटरनेट ने उन्हे भी " ग्लोबल विलेज" के रुप मे जोड कर जागरुक कर दिया है! लेखिका और फिल्‍म निर्मात्री उमा वासुदेव के अनुसार स्‍त्री की परवरिश इसके लिये जिम्‍मेदार हैं। '' जब तक उसकी परवरिश से भेदभाव की भावना खत्‍म नहीं की जाएगी तब तक वह अपने आप को हीन मान कर, अपनी क्षमता व स्थिति से अनजान ही बनी रहेगी व उसे स्‍वतंत्रता के लिए अपनी योग्‍यता सिद्ध करनी ही होगी। गांवो मे उसी परवरिश की आवश्यक्ता है! पर सामंतवादी सोच वाला यह समाज इस कदर खुलने को तैयार नही है! आनर किलिंग' सबजगह है, कही खुलता है कही कब्र मे दफन हो जाता है!''कहीं लड़कियों को उनके घरवाले मौत के घाट उतार रहे हैं तो कहीं जहाँ वो नौकरी करती हैं वहां उनका शारीरिक और आत्मिक शोषण हो रहा है,!"गांवो मे भी "गुलाबी सेना ' बन रहे है जो इनके अधिकारो के लिये हथियार उठा लेते है! फिर भी यदि कोई महिला अकेले इसके विरुद्ध खड़ी हो जाती है तो यह समाज उसे मृत्युदंड दे देता है! खाप पंचायतो ने तो तालिबानी परम्परा को जीवित रखा ही है! आज भी कन्या जन्म पाप के समान होता है,! सौ प्रतिशत शिशु भ्रूण हत्या में निन्यानवे प्रतिशत कन्या भ्रूण होते है. ! गांवो या मेट्रो कही भी, जो शोषित है ,पीडित है उनके लिये आज भी वो गाती रहती है " अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो " गांवो को मेट्रो बनने मे अभी समय लगेगा !आयेगा यहाँ भी पर जरा देर लगेगी , " पिंक रिवोल्युशन"को !

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