आर्नामेंटल बाबा

अंग्रेज लोग इस देश को संपेरो, भुत- प्रेत, साधूओं और बाबाओं का देश मानते थे, और ये रहा भी है। हिमालय के कंदराओं मे एक से एक जोगी, ज्ञानी, संत हुए हैं पर आजकल इनका अभाव है बल्कि इनके नाजायज संतानो का बोलबाला है। जो धर्म के ठेकेदार बने फिरते है पर अपने कुकर्मो के बदौलत अंत समय कृष्ण जी की जन्मस्थली(जेल) मे बिताते हैं।  भक्ति संगीत का ऐसा मिसयुज किया है अपने फीमेल बनकर नाचे और फीमेल को पुरा का पुरा एक्स्प्लायट कर  लिया! महराज अब जेले मे रास रचा रहे है! एक बाबा अपने किला या राजमहल कहिये ,उसमे  सभी कुकर्मो का सामान इकठ्ठा करे है तो एक "ओ माई गाड" के अर्द्ध्नानारीश्वर के तरह बीच वाले हो गये लगते है! ये बाबा लोग हिन्दू धरम का सफा रेंड़ मारकर ही छोड़ेंगे क्या?आर्नामेंटल बाबाओ ने भगवा चोला का युज सिर्फ जनता को बेबकूफ बनाने मे किया है।!" मन न रंगाये जोगी  रंगाये जोगी कपड़ा!"बाबा शब्द का सिर्फ आभूषण की तरह उपयोग किया। पूरा  का पूरा बनियागिरी पर ही उतर आये हैं ! योग बेचते बेचते तेल साबुन बेचने लगे!  देखो अब रिटेल स्टोर खोल रहे हैं, और सहारा, रिलांयस और बिग बाजार, स्पेंसर से टक्कर लेने का सोच रहे हैं, और वह भी स्वदेशी के नाम पर। देशभक्ति का सौदा करने मे कोई गुरेज नही।जींस  बेचने पर तो आ गये, अब क्या अंडर गारमेंट बेचने का भी प्लान है का? ब्रह्मचारी लोगो का ब्रह्मचर्य इसमे बाधक नही है ना।बेटा पैदा करने वाला दवाई तो दे ही रहे थे, जनसंख्या कंट्रोल पर भी कौनो रिसर्च छोटे  वाले कृष्ण जी का जारी ही होगा! आयुर्वेदिक गर्भनिरोधक भी लांच करने का प्लान दिमाग मे चल रहा ही होगा। इ बाबा लोग तो सब डुबाइये के छोड़ेंगे! बख्श दो महाराज! धर्म,योग, आयुर्वेद,और देशभक्ति को और अब मत बेचो। लगता है कोनो लंबा गेम प्लान से सरकार बनाने का कसम खाया था। चाणक्य की तरह शिखा नही बाधूंगा जबतक नंदवंश को मगध से उखाड़ नही फेकूंगा, रातोरात राज्धानी से भाग लिये कि अब गद्दी मिलने पर ही वापस आउंगा! और सलवार  कुरती पहिन के तो नही  तो वही रासलीला जमाने का प्रोग्राम हो जाता!और नही चंद्रगुप्त का इतना फायदा उठाया जितना इ महराज उठा रहे हैं, वो तो !अर्थशास्त्र भी शार्मा जायेगा! अरे पंतजलि महाराज को मोडीफाई कराके योगा बनाना और उसको नये कलेवर के साथ बेचना तो समझ मे आता है कि इससे शरीरवा तंदुरुस्त हो जाता है पर इ तेल ,साबुन, शैम्पू, आटा, मसाला, काहे के लिए। कम से कम अपनी इज्जत का ख्याल करते। कहां इटरनेशनल योगा गुरु और बन गये परचून की दुकान खोलकर बैठ गये पंसारी वाले।  पहले स्वास्थय ठीक कराया, फिर खान पान और अब पहनावा बदलेंगे और अपनी जेब भरेंगे।कुछ दूसरों के लिए भी छोड़ दीजिए महाराज!                                                                                                                                                                                                                                                        








  ऐसे बाबाओं की लिस्ट बड़ी लंबी है, जो सता की नजदीकी होने  का लाभ ऊठाकर अपना उल्लू सीधा किये हैं।पूरा का पूरा सोशल मीडिया इनको धो डाला है पर इनको तो जैसे कोई असर ही नही है।रोज सुबह सबेरे जो टीवी पर दांत ,बाल, चेहरा चमकाने का विज्ञापन शुरु करते हैं तो रात तक थकते नही।अनवरत डटे रहते हैं।योगा गुरु से व्यवसायिक गुरु बनने का यह सफर राज्य सभा मे खत्म होता है या राजभवन मे! बाबा जाने! तबतक धोते रहिए और पहनने की तैयारी करिए। और क्या... जीन्स! आप क्या समझे थे....?इनके व्यवसायिक साम्राज्य को धर्म रुपी किला प्रोटेक्शन दे रहा है! यदि नेताओ की तरह इनके भी 500 प्रतिशत के विकास दर की जांच  करा दी जाये तो स्विस बैंक के खातो मे पडे ब्लैक मनी की जरुरत नही पडेगी!पर हाथ कौन डाले? धर्म संकट मे आ जायेगा! सभी धर्मो का यही हाल है!इसे आर्नामेंटल बाबाओ का धार्मिक साम्राज्यवाद कहा जा सकता है! जय हो!

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