नरक यात्रा
कहते हैं भोगा हुआ यथार्थ जब लेखनी के माध्यम से कथाओं मे उतरता है तो वह बहुत ही मारक होता है। डा. ज्ञान चतुर्वेदी जी का उपन्यास" नरक यात्रा" सरकारी हस्पतालों का कठोर यथार्थ है, जहाँ हस्पतालों और डाक्टरों का काला पक्ष खुलकर सामने आ जाता है। उपन्यास मे लेखक ने मुर्दाघर, आपरेशन थियेटर से लेकर, ओपीडी और रसोईघर तक, नर्स, वार्डव्याय, एंबुलेंस चालक, जूनियर डाक्टर से लेकर सर्जन तक के चरित्र, कुटिलता, मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की प्रवृत्ति को निर्ममता पूर्वक उकेरा है। उसपर से हस्पताल की अंदरुनी राजनीति, लूटखसोट, भ्रष्टाचार, नर्सों के यौन शोषण इत्यादि के बारे मे भी जमकर लिखा है। लेखक चुंकि स्वयं एक डाक्टर हैं ,इसलिए उन्होंने अनेक जगहों पर डाक्टरों के मध्य बहस मे मेडिकल टर्म्स का प्रचुरता से उपयोग किया है, जो उपन्यास के प्रवाह को धीमा करता है।उन्होंने यह भी दिखाया है कि ये बड़े बड़े जो सेमीनार होते हैं, बस खानापूर्ति किए जाते हैं। मरीजों को दिए जानेवाले खाने की बनने, बांटने और मरीजों द्वारा उसको भी किसी भी तरह पा लेने की होड़, यह दर्शाती है कि नरक मे भी ठेलमठेल है। उपन्यास का सबसे महत