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Showing posts from February, 2020

नरक यात्रा

कहते हैं भोगा हुआ यथार्थ जब लेखनी के माध्यम से कथाओं मे उतरता है तो वह बहुत ही मारक होता है। डा. ज्ञान चतुर्वेदी जी का उपन्यास" नरक यात्रा" सरकारी हस्पतालों का कठोर यथार्थ है, जहाँ हस्पतालों और डाक्टरों का काला पक्ष खुलकर सामने आ जाता है। उपन्यास मे लेखक ने मुर्दाघर, आपरेशन थियेटर से लेकर, ओपीडी और रसोईघर तक, नर्स, वार्डव्याय, एंबुलेंस चालक, जूनियर डाक्टर से लेकर सर्जन तक के चरित्र, कुटिलता, मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की प्रवृत्ति को निर्ममता पूर्वक उकेरा है। उसपर से हस्पताल की अंदरुनी राजनीति, लूटखसोट, भ्रष्टाचार, नर्सों के यौन शोषण इत्यादि के बारे मे भी जमकर लिखा है। लेखक चुंकि स्वयं एक डाक्टर हैं ,इसलिए उन्होंने अनेक जगहों पर डाक्टरों के मध्य बहस मे मेडिकल टर्म्स का प्रचुरता से उपयोग किया है, जो उपन्यास के प्रवाह को धीमा करता है।उन्होंने यह भी दिखाया है कि ये बड़े बड़े जो सेमीनार होते हैं, बस खानापूर्ति किए जाते हैं। मरीजों को दिए जानेवाले खाने की बनने, बांटने और मरीजों द्वारा उसको भी किसी भी तरह पा लेने की होड़, यह दर्शाती है कि नरक मे भी ठेलमठेल है। उपन्यास का सबसे महत

पटना ब्लूज... समीक्षा

लेखक अब्दुल्लाह खान का उपन्यास " पटना ब्लूज" एक मुस्लिम लड़के के अधूरे ख्वाबों की दास्तान है, जिससे समाज, परिस्थितियों और संबंधित व्यक्तियों के प्रति मंद मंद विषादपूर्ण संगीत प्रवाहित होता है। "ब्लूज" का शाब्दिक अर्थ होता है एक प्रकार का मंद विषादपूर्ण संगीत, जो नाम को कैची बनाता है लेकिन कथानक का कंटेंट तो मायने रखता ही है।ऐसे समय मे जब एक बार फिर से हिंदू -मुस्लिम विमर्श अपने चरम पर है, "पटना ब्लूज" एक मुस्लिम नौजवान की विवाहित हिन्दू महिला से प्रेम की दास्तान सुनाती है। वास्तव मे यह अस्सी और नब्बे के दशक के देश के महत्त्वपूर्ण घटनाओं को मुस्लिम नजरिए से देखने का प्रयास भर है। इंदिरा गांधी की हत्या, बाबरी मस्जिद प्रकरण, मुंबई बमकांड, भाजपा का उदय, मंडल कमीशन आरक्षण विवाद मे मुस्लिम समाज का पक्ष है। नायक और नायक परिवार एक लिबरल मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखता है परंतु समाज का मुस्लिमों के प्रति अविश्वास, नौकरी और अन्य जगहों पर अपने को मुस्लिम होनेके कारण दोयम समझे जाने की मानसिकता को इसमे बखूबी दर्शाया गया है। एक किशोरावस्था से युवा बन रहे लड़के की अपोजिट सेक्