जंग रहेगी जारी....!

 "गद्दार कहीं के! जितना मिला था ,उससे पेट नही भर रहा था, क्या इतना बड़ा पेट हो गया कि अपने भाई के हिस्से को भी हड़पने का षडयंत्र कर बैठे!" सुरेश के होंठ फड़क रहे थे और उसमे से अंगारे बरस रहे थे। " पीठ  पर छुरा भोंका है तुमने! उपर से भैया भैया और नीचे से जड़ ही काटने की कोशिश कर रहे थे ! धिक्कार है तुम पर और पिताजी पर! क्या हम उनके बेटे नही है! क्या एकबार भी उन्होने नही सोचा कि सुरेश का क्या होगा? पक्षपात की इतनी ही ललक और तुमसे मिल रहे लाभों के प्रति  इतना ही लालच  था तो बटबारा कर दिये होते! न मै तुम्हारे घर मे देखता और न तुम हमारे घर मे!"सुरेश मानो आपा खोकर चिल्ला रहा था। असल मे उसके बाप ने उसके हिस्से के सारे जमीन और मकान रमेश के नाम लिख दिया था। रमेश बड़ा ही घुईयां टाइप का व्यक्ति था, अंदर ही अंदर षडयंत्र करता और अंडर द टेबल सेटलमेंट कराकर अपने काम निकालता था। पिताजी को भी उसने देश विदेश घुमाने का लालच दिया और मुहमांगी चीज दे देता था। इतना ही नही रमेश ने गांव के सरपंच ,मुखिया और कर्मचारी को भी घूस खिलाकर चुप करा दिया था। वो तो सुरेश को पता भी नही चलता यदि दाखिल खारिज कराने की नोटिस गांव मे न आती।अभी कल ही कि बात है जब वह रोड पर चाय पी रहा था तो नोटिस के बारे मे किसी ने बताया। उसके तो होश ही उड़ गये। काटो तो खून नही! सहसा विश्वास ही नही हुआ कि कोई घर का मुखिया अपने संतान के प्रति ऐसा द्वेषपूर्ण कार्य कर सकता है। रमेश की आदत पहले से ही ऐसी रही थी। बचपन से ही उसने हमेशा सुरेश के प्रति अन्याय करवाया और ,जो भी सुरेश का अधिकार होता उसमे काट छांट कराकर अपनी गोटी लाल कर  लेता। मां पिताजी तो जैसे सुरेश को अपना बेटा मानते ही नही थे, हरदम सौतेला व्यवहार करते थे। दोनो के नेचर मे अंतर था ,जहां सुरेश मेहनती और शारीरिक श्रम करने मे रुचि रखता था, इसकारण वह मां पिताजी के पास हमेशा रहकर लल्लो चप्पो नही कर पाता था, मेहनत भले ही ज्यादा करता था, परंतु अर्निंग कम थी ,इसलिए उन्हे ना तो घूमा फिरा पाता था और न ही अच्छा कपड़ा लत्ता खरीद कर दे पाता था, लेकिन वह इसी मे संतुष्ट था । उसे कभी भी रमेश को मिल रहे प्यार, दुलार से जलन नही हुई, ,! जबकि रमेश का कागजी काम था, दिनभर लफासोटिंग मे लगा रहता था, समय ही समय था, मैनेजमेंट के लिए। कभी प्रधान जी तो कभी सरपंच तो कभी कर्मचारी के यहां बैठकी जमाता, खूब खर्चा करता तथा उन्हे पोटे रहता था। मां बाप भी खुश रहते थे कि बड़ा काबिल, तेज तर्रार, और जुगाड़ू सपूत है। लेकिन सबके पीछे रमेश की  गंदीनजर और चाल थी। उसकी नजर हमेशा सुरेश के हिस्से पर रहती थी। शुरु मे जब कुछ जमीन पिताजी ने रमेश के नाम लिखी तो सुरेश पिताजी के धाख मे कुछ नही बोला, और उस समय उसकी आमदनी थोड़ी ठीक थी तो ज्यादा महसूस नही हुआ। चलो फिर बाद मे कमा लेंगे। पर इस बार तो हद ही हो गई। सारी संपत्ति रमेश ने अपने नाम करा ली। अब तो सुरेश उसके रहमोकरम पर हो गया था। पर इसबार उसका खून खौल गया और ,उसने भी सिर पर कफन बांधकर मोर्चा खोल लिया था।!" आप तो पापा के बेटा कभी से थे ही नही तो आपको हिस्सा कैसे मिलता" रमेश धीरे से सिर झूकाये बोला! " क्या बोले! हम पापा के बेटे नही है तो कौन है हम? कहीं मेले से उठाकर लाये थे हमको! यदि बेटा नही थे तो क्यों इतने दिन साथ रखे! पहले ही अलग क्यों नही कर दिया? जो नसीब मे होता देखा जाता!" सूरेश ने आंखे तरेरते हुए एकबार रमेश को देखा फिर सवालिया नजर पिताजी की ओर घुमायी। पिताजी हमको ज्यादा नही चाहिए, सिर्फ रहने को मकान और थोड़ी जमीन दे दीजिए ,बाकी सब आप इसे दे दीजिए ,हमे आपत्ति नही है! पिताजी भी कुटिल मुस्कान से देखते हुए बोले " कमासुत बेटा सबको चाहिए, तुम कितना कमाकर आजतक दिये?जो तुमको हिस्सा चाहिए! रमेश से जब जब हमने चाहा, उतना वो लाकर दिया। तुम तो नक्कारे हो! दिन भर हरवाह, चरवाह,भैंसवाह के साथ रहते रहते तुम्हारी बुद्धि मोटी हो गयी है! दस्तावेज देख लो ! तुम हमारे बेटे नही रहे! मैने वसीयत से भी तुम्हारा नाम हटा दिया है। जिस संपति का उपयोग तुम नही कर रहे थे, उस संपति को तुम्हारे पास रहने से क्या लाभ और तुमको क्यो चाहिये!" सुरेश को पिताजी से ऐसे जबाब की उम्मीद नही थी! उसे लग रहा था कि जो सामने शख्स खड़ा है वो वाकई मे उसका बाप नही , बल्कि उसके भाई का वकील, पैरोकार बोल रहा है। उसके आंखो मे से पानी बहने लगा था पर किसी तरह जब्त करते बोला" लेकिन वह यह अन्याय नही सहेगा! चाहे उसे इसके लिए धरना, भूख हड़ताल, आत्मदाह तक करना पड़े, छोड़ेगा नही। दुनिया की बड़ी से बड़ी अदालत दरवाजा  खटखटाऊंगा पर अपना हक लेकर रहूंगा!"  मै तो चाह रहा था कि पांच गांव हमे दे दीजिए पर आप  अपने दुर्योधन के प्यार मे अंधा हो गये हैं और सुई की नोक के बराबर भी जमीन नही देना चाहते! तो सुनिये पिताजी ! आप धृतराष्ट्र के समान महाभारत का आरंभ करवा रहे है!  मै हकदार हूँ इस अधिकार का! और अब मैं पांच गांव के लिए नही लडूंगा बल्कि अब तो मुझे सारा साम्राज्य चाहिए, बड़े भाई का जेठंसी चाहिए! चाहे इसमे कितने अपने शहीद हों और आप पर भी वार करना पड़े करुंगा ,पर अपना हक लेकर रहूंगा।जंग रहेगी जारी! मरते दम तक! जंग रहेगी जारी " कहकर सुरेश निकल पड़ा अपने हक की लड़ाई लड़ने! उसके पांव मीडिया, टीवी, की ओर मुड़े और उसने सोच लिया कि अब चाहे अनशन करना पड़े या भूख हड़ताल, बाजी तो उसे जीतनी ही है। उसके अस्तित्व का प्रश्न जो था! उसका कोई वजूद है या नही उसे साबित करना था!
""भीख मांग अब जीना नही,ये तो हक की लड़ाई है।  जान जाये ये परवाह नही, उसने कसम ये खाई है।"
"

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