जेनरेशन गैप

इसे आप जेनरेशन गैप कहें या समय का फर्क । शायद प्रत्येक युग मे ऐसा होता आया हो कि  हमे उपर की पीढी और नीचे की पीढी  के सोच व्यवहार और करनी मे फर्क नजर आता है। दो पीढ़ी के मध्य अमूमन 20-25 साल का फर्क होता है जिसमे प्रगति और विकास का अंतर दिख जाता है। सुमन जो महसूस कर रहे है शायद सुमन के बाबूजी ने भी महसूस किया हो और आगे चलकर उसका बेटा भी महसूस करेगा, क्योंकि जब वह उसके रोल मे आयेगा तबतक सुमन बाबूजी के रोल मे जा चुका होऐगा। शायद यही प्रकृति का नियम है। पर जो कैरेक्टर मे होता है उसे लगता है कि यह सिर्फ उसी के साथ हो रहा है जबकि वह पहले भी हो चुका होता है। श्री मद्भागवत गीता मे श्रीकृष्ण ने भी तो यही कहा है तो सुमन यहां अपनी पीढी के अनुभवो को शेयर करते हुए कहना चाहता है कि हमे आधुनिक संसाधनों से कोई गिला शिकवा नही, बल्कि हम इसे इंजाय करते है, लेकिन  हम भाग्यशाली रहे कि हमें कभी भी आज की तरह जानवरों की भांति किताबों को बोझ की तरह ढो कर स्कूल नही ले जाना पड़ा ।बस एक झोला या बस्ता उठाया जिसमे सभी विषय की एक कापी और कुछ किताबें होती थी और चल दिये स्कूल। शुरु मे करेरा के कलम से इंक मे डुबा डुबाकर अक्षर बनाते थे। नींब वाली पेन से लिखते थे। डाट पेन जो लीड वाला कहलाता था से मास्टर साहब लिखने से रोकते थे, कि हैंड राईटिंग खराब हो जाएगी।।हमारें माता- पिता को हमारी पढाई को लेकर कभी अपने कार्यक्रम को आगे पीछे नही करने पड़ते थे। मां घर पर ही रहती थी, आज के जमाने की तरह वर्किंग वुमेन नही थी, जिनके बच्चे आया के पास या क्रैच मे पलते हैं।स्कूल दस से पांच होता था, दिनभर स्कूल मे। गर्मी मे मार्निंग स्कूल होता था। स्कूल के बाद हम देर सूरज डूबने तक खेलते थे ।हम अपने दोस्तों के साथ खेलते थे,नेट फ्रेंड्स के साथ नही। , जब भी हम प्यासे होते थे तो नल से पानी पीना सुरक्षित होता था, चापाकल का पानी ईतना ठंढा और मीठा कि क्या कहना! उसी के डंडे पर वो झूल झूल कर पानी निकालना, आज के बच्चे क्या जाने! और हमने कभी मिनरल बाटल  को नही ढूँढा या आर ओ का पानी नही पिया कि कभी संयोगवश बाहर का पानी पीना पड़ जाये तो पेट मे इंफेक्शन हो जाय।हम कभी भी चार लोग गन्ने का रस एक गिलास से ही पी करके या कच्ची गुड़ की भेली खाकर भी बीमार नही पड़े ।हम रसगुल्ला, काला जामून और बादशाही मिठाई और  भर थाल चावल रोज़ खाकर भी मोटे नही हुए । गांव मे डायबीटिज या ब्लडप्रेशर क्या होता है, किसी को पता ही नही था! आधी बिमारी तो जानने से होती है। न जानो तो कोई बिमारी नही।। नंगे पैर घूमने के बाद भी हमारे पैरों को कुछ नही होता था । हमें स्वस्थ रहने  के लिए  विटामिन, टानिक या सप्लीमेंट की जरुरत नही पड़ी, चार बार खाना जमकर खाओ, दूध पियो, खेलो कूदो और मस्त रहो। ।हम कभी कभी अपने खिलोने खुद बना कर भी खेलते थे । वो पचीसी, कैरम, गुल्ली डंडा, पिट्टो,छुपाछुपी, आज के बच्चे क्या जाने!क्रिकेट खेलते तो बढई से लकड़ी का बैट बनवाते और स्पंज का खरीदते या कपड़े का  गेंद बनाते।कपड़े के गेंद पर पालीथीन का मुलम्मा चढा़ते थे जिससे नालियों मे जाकर वह भींग न जाय। हम ज्यादातर अपने मम्मी पापा और दादा दादी के साथ  के पास ही रहे है,ईसलिए बड़ो का सम्मान हमने सीखा है।आजकल बच्चों ने तो जैसे बड़ो का पांव छुना ही छोड़ दिया है, कुछ दिखावा करते हैं तो घुटना छू लेते हैं।।हम भाई बहन एक जैसे कपड़े पहनना शान समझते थे।कपड़े बदल बदल कर पहनने से वैरायटी हो जाती थी। उस समय दूरदर्शन पर गुलदस्ता नामक सीरियल आता था जिसमे भी सभी पारिवारिक सदस्य एक समान कपड़े पहनता था जैसे कि आज के " सब टीवी" पर आनेवाला सीरियल " बड़ी दूर से आये है"! फर्क है कि इसमे सब एलियन है। सचमुच मे हम जो उस समय करते थे, आज उसे एलियन  ही कहा जाएगा। बीमार होने पर घर पर कंपोडर साहब आते थे,  गांव मे वही एकमात्र डागदर साहब हुआ करते थे। हम डॉक्टर के पास नहीं जाते थे, पर डॉक्टर हमारे पास आते थे हमारे ज़्यादा बीमार होने पर । आज तो छींक भी आ जाय तो चलो हास्पीटल। बच्चो के प्रति ज्यादा पजेसिव और सेंसिटिव हो गये हैं हम। उन्हे प्रकृति से संघर्ष कर उनमे इम्युनिटी पावर विकसित नही होने देना चाहते है, हम।।हमारे पास मनोरंजन के लिए रेडियो या टेपरिकार्डर हुआ करता था , नंदन, बालकथा, पराग , अमर चित्र कथा ,मोटू पतलू कार्टून और   कार्टून कोना ढब्बूजी मजे से पढा करते थे। बरसात के मौसम मे कचरी खाने का अलग आनंद था। हम सच्चे दोस्तो से मिलकर बातें करते थे न कि आजकल के जैसै मोबाइल,डीवीडी, प्ले स्टेशन, इंटरनेट, चैटिंग नही थे, हम दोस्तों के घर बिना बताये जाकर मजे करते थे और उनके साथ खाने के मजे लेते थे।दोस्तो के घर जाना प्रचलन मे था और सभी इसे पसंद करते थे, आज यह खत्म हो रहा है और इसीलिए सब एकाकी हो रहे हैं। दोस्तो से कभी उन्हें कॉल करके समय नही लेना पड़ा । वास्तव मे हम  सब एक अदभुत और सबसे समझदार पीढ़ी है , ऐसा हमलोग मानते है, हो सकता है उपर और नीचे वाली पीढी इसे न मानती हो,। हम अंतिम पीढ़ी हैं, जो की अपने माता पिता की सुनते है और साथ ही पहली पीढ़ी जो की अपने बच्चों की भी सुनते हैं ।यह हम लोगो की सोच है। वस्तुत: यह  जेनरेशन गैप  टाइम मशीन के समान है, जिसके दोनो छोर पर दो युग है और यह युग वर्तमान पीढी से होकर गुजरती है। सुमन के बाबूजी को अपना बचपन अपने पोते मे दिख जाएगा तो उसके बेटे को उसका भविष्य सुमन मे या बाबूजी मे। सब समझ का फेर है। गूढ बातें है, मेरी भी समझ मे नही आ रही है, सुम ने  कंफ्युज कर दिया है।उसका कंफ्यूजन दूर होने तक शब्बा खैर।

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