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Showing posts from June, 2017

गरीबी का मजाक

हाल मे मीडिया मे मध्य प्रदेश मे लाभार्थियों के घरों पर " मै गरीब हूँ और मै सरकारी योजना का राशन लेता हूँ"! के लिखे होने पर बवाल मचा हुआ है कि यह गरीबी का अपमान और मजाक उड़ाया जा रहा है। सरकार की आलोचना करने का मौका तलाश रही मीडिया के हाथ मसाला लगा है पर शायद उसे यह पता नहीं कि यह तो हमेशा से होता रहा है। इसमें मजाक उड़ाने की बात कहाँ से आ गयी? यह तो सरकारी तंत्र की पारदर्शिता है। " अच्छा अच्छा गप गप और  कड़वा थू थू..।" यदि हमें सरकारी सहायता लेने मे हिचकिचाहट नही होती तो इसे खुलेआम स्वीकार करने मे शर्म क्यों हो रही है? क्या अंत्योदय और बीपीएल श्रेणी के लाभार्थियों की सूची ग्राम सभा  के पंचायत भवनों और सार्वजनिक स्थलों पर पहले से नही लगाई जाती रही है ।यदि किसी के घर पर लिखाया गया तो हर्ज क्या है? लाभार्थी सूची मे जिस तरह से अपात्रो की भरमार है और बड़े बड़े घर वाले जिस तरह अपना नाम शामिल कराने को जुगाड़ लगाते हैं उसको हटाने के लिए आवश्यक है कि समाज के सब लोग उनका नाम जाने। लाभार्थियों का चयन भी ग्राम की खुली सभा मे करने का नियम है। हाल ही मे एक गांव मे जब राशन कार्ड सत्यापन

छद्म किसान

जो किसानों की मौत पर भोकासी फाड़ के रो रहे हैं, टेसुआ बहा रहे है, उनमे सबसे ज्यादा स्युडो किसान है, छद्म किसान! किसान की सरकारी परिभाषा  मे तो आते हैं पर खेती किसानी से उनका दूर दूर तक नाता नही हैं। इनमें से ज्यादातर तो गूगल और सोशल मीडिया से इतर खेत के बारे मे जानते ही नही। किसानों के सबसे बड़े हमदर्द वो हैं जो कभी नंगे पांव आरी डरेर पर चले नही, कभी खेत की मिट्टी सूंघी नही बल्कि जब गलती से कभी मिट्टी या पांव लग भी गया तो बोलते हैं" ओ शिट्ट"! हम जैसे छद्म किसानों को एक्चुअल किसानों की परेशानी से क्या वास्ता? हम तो सिर्फ जाते हैं अपना हिस्सा बटोरते हैं, सरकारी क्रय केंद्रों या बनियो के आढत पर बेच देते हैं और अपनी जमीन को खेत बनाये रखते हैं। वो जो उस मे बिया लगाते हैं, ट्रैक्टर या हल चलाते हैं, कटनी कराते हैं, वो क्या हैं? सरकारी परिभाषा मे वो किसान ही नही, वो अपनी उपज सरकारी क्रय केंद्रों पर बेच भी नही सकते!वो कृषक बीमा के हकदार नही, वो किसान क्रेडिट कार्ड के हकदार नही, वो किसान के रुप मे किसी भी सरकारी सुविधा के हकदार नही। सूखा राहत मिलेगा तो छद्म किसानों को जो शायद कहीं नौकरी

कांफिडेंस लेवल की बात है....

" तो दसमी बाद वह जिद पर अड़ गया कि साइंस नही पढेगा। ऐसा नही था कि उसे कम नंबर आया था या वह किसी साइंस विषय  मे कमजोर था या शहर के सबसे अच्छे  कालेज मे एडमिशन नही होता!सिर्फ कुछ  अलग  करने  की  चाहत थी !लीक  से  हटकर  चलना  उसकी  फितरत ! "घर मे सब  साइंस लेकर पढे है तो क्या सब डाक्टर इंजीनियर ही बनेगा? मै तो कामर्स ही पढूंगा।  विपुल ने पापा को समझाया" उसका मैथ बहुत अच्छा नही था और अलजेबरा, त्रिकोणमिति तो समझ ही  नही पाता था, रट्टा मारकर या गेस पेपर पढकर नंबर आ गये थे। " "हालांकि केमिस्ट्री मे नाइंटी सिक्स परसेंट मार्क्स था पर खास इंट्रेस्ट उसमे नही है। बाइलोजी गुरुजी कभी क्लास मे ठीक से पढाये ही नही। जब रिप्रोडक्शन का चैप्टर आता तो बोलते" अपने पढ लेना। लड़कियाँ भी थी क्लास मे ! भला उसके सामने कैसे प्रजनन के बारे मे समझाते? सर जी शर्माते रहे और बच्चे छुपकर और अधिक इंट्रेस्ट लेकर् पढते रहे।                                                        खैर! भैया ने कहा " कामर्स का स्कोप नही है, इससे अच्छा है कि आर्ट्स लेकर पढो़।बनिया परिवार मे थोडे ही प