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Showing posts from November, 2017

साहब ड्यूटी कटवा दो

अभी हाल मे " न्यूटन" फिल्म को चुनाव कराने मे पोलिंग पार्टी के समक्ष आने वाली समस्याओं को उठाने के लिए काफी सराहा गया है। साहब! किसी तरह ड्यूटी कटवा दो! यह फेमस लाइन होता है सबकी जुबान पर ! पर क्यों न हो भला जब इतनी जटिल और रिस्की प्रक्रिया हो चुनाव करवाने की। पहले तो पार्टी जाते ही गांव के सम्मानित लोग आवभगत मे लग जाते थे।" अतिथि देवो भवः " के साथ साथ चुनावी लाभ के लिए मेल मिलाप भी जरूरी था। पर अब आयोग ने गांव का पानी पीना भी निषिद्ध कर दिया है।चुनाव चाहे वो नगरीय हो या ग्रामीण ,अभीतक पंचायती चुनाव बैलेट पेपरों के माध्यम से संपन्न हो रहे हैं। बड़े बड़े बक्सो को लादकर ले जाना और उसमे वोटिंग कराकर फिर लादकर लाना एक जटिल कार्य है।  चुनावों मे एक दिन किसी अनजान जगह पर अनजान लोगों की बनी पोलिंग पार्टी के साथ बिताना किसी के लिए एक रोमांच का काम हो सकता है पर ज्यादातर लोग यही चाहते हैं कि उनकी ड्यूटी न लगे और लग भी गई है तो अंतिम समय तक वो तमाम जुगाड़ का उपयोग कर ड्यूटी कटवाने का प्रयास करते रहते हैं।ऐन चुनाव मे पोलिंग पार्टी रवाना होने के दिन सैकड़ो के उल्टी दस्त बुखार सब च

बाघ का नैचुरल हैबिटेट

बाघ अपने नैचुरल हैबिटेट मे भटक रहा है जिस पर इंसानों ने कब्जा कर लिया है। यह संघर्ष है जानवर और इंसान के मध्य जमीन पर कब्जा करने के लिए। अपना हक जमाने के लिए है।एक ओर इंसान अपनी शारीरिक और दीमागी शक्ति का प्रयोग करते हुए लगातार जंगलों मे हस्तक्षेप करता जा रहा है। जंगल ,नदियां, पोखरे ,तालाब पाटता हुआ उसे अपने उपयोग लायक बनाता जा रहा है। जंगली जीवों का घर द्वार सिमटता जा रहा है तो वो गांवो और खेतों की ओर निकल आता है। वन विभाग कहता है कि जंगल से सटे क्षेत्र मे गन्ने की खेती न किया जाय क्योंकि जब जानवर जंगल से निकलकर खेतों की ओर बढता है तो गन्ने के खेत उनके छुपने और निवास करने के लिए सबसे मुफीद जगह बन जाते हैं। अब जब यहाँ आसानी से इंसान, बकरी, भैंस ,गाय आदि उसे खाने को मिल जाय तो भला वो वापस जंगल मे क्यों जाय? वैसे भी कहा जाता है कि जब बाघिन बच्चों को जन्म देती है तो उनकी जान बचाने के लिए जंगल से दूर निकल आती है। नदी किनारों की झाड़ियां उनके लिए सुरक्षित स्थान हैं। जिन क्षेत्रों मे आजकल बाघ टहलते दिखाई पड़ रहे हैं वो क्षेत्र आज से सौ डेढ सौ साल पहले जंगल हुआ करते थे अर्थात बाघों के पूर्वजों

भंसाली का जौहर प्रेम

" खामोशी " से देवदास बनाने वाले भंसाली श्री " हम दिल दे चुके सनम " जैसी प्रेम कहानी बनाये तो तो कभी "गोलियों की रासलीला" करते करते अब इतिहास मे " ई एच कार" की तरह यूं घुस गये हैं कि कभी मराठों से खेलते हैं तो कभी राजपूताने से! फिल्में बनाना तो कोई इनसे सीखे! " द ग्रेट शोमैन" बनने के चक्कर मे  सेट और गेटै पर इतना पैसा लुटा देते हैं कि स्क्रिप्ट, कहानी, गीत ,संगीत सभी अपने से करते हैं। स्वाभाविक है बजट बड़ा होने पर भी "प्रोमोशन"  के लिए पैसा कम पड़ जाता होगा, तो ये शगल सबसे आसान है कि " कोई नाम न हुआ जबतक बदनाम न हुए "! फिल्में विवादित कराना करोड़ों की डीलिंग है। फिलिम बनाने से पहले स्क्रिप्ट राइटर से बजाब्ते इस बात पर प्लानिंग की जाती है कि फिल्म के किस हिस्से मे विवादित दृश्य, कथ्य आ डायलॉग रखे जायें।  धर्म, जाति, संप्रदाय , क्षेत्रीयता आजकल हिट है , इस पर चोट पहुंचा कर विवाद उत्पन्न किया जा सकता है, यदि कोई संस्था या समाज इंट्रेस्ट नही ले रहा हो तो पत्रकारों , मीडिया और अपने एन जी ओ के माध्यम से इसे उछलवाया जाता है।