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Showing posts from May, 2020

डरना जरूरी नही है

डरना जरूरी नही है  भाग--3 ----///------- दीप्ति चिल्लाई.." नही छूना उसे, आज ही दुकान से मंगवाया है। बार बार मना किया है कि इसे सैनिटाइज कर बाहर मे धूप मे रखा है। चौबीस घंटे के बाद ही खाना है!" बेचारे शैंकी का मुंह लटक गया। चार पांच दिन रटने के बाद तो आज मम्मा ने  डेरी मिल्क चाकलेट मंगाया था, अब सामने पड़ा देखकर शैंकी के मुंह से लार टपक रही थी। इससे पहले जब भी वह  चाकलेट की मांग करता तो पापा डांट देते तो कभी प्यार से समझाते! " बेटा इस समय बाहर का कोई सामान मंगाना नही चाहिए, कहीं वायरस न साथ मे आ जाये। वो डर जाता बेचारा। पहले कहां सप्ताह मे एकबार अवश्य स्वैगी, जोमैटो या रेस्टोरेंट से आनलाइन कुछ न कुछ अवश्य मंगा लेता पर इधर उस के मुंह  पर भी लाकडाऊन लग गया है जैसे।इटली और अमेरिका के बारे मे कहा भी जाता है कि  वहाँ आनलाइन सामानों से ही वायरस तेजी से फैला है, हालांकि अपने यहाँ सबने अपने मुंह पर मास्क के साथ साथ "जाबी" ( गांवो मे बैल- भैंसो के मुंह पर बांधी जानेवाली बांस के तार से बनाई  गई जाली) भी बांध लिया है, जीभ पर कंट्रोल किया है। हालांकि इससे सबके अंदर हलवाई और

पाजिटिव होने की दहशत भाग एक

एकबार  बस मे किसी यात्री की किसी चोर ने  धारदार ब्लेड से झटके से सोने की अंगूठी सहित अंगुली भी काट लिया और उसे पता भी नही चला क्योंकि वह उधर ध्यान नही दे रहा था। जब पास वाले यात्री ने उसकी अंगुली से बहते खून को देखकर चिल्लाया, तब उसे दर्द का अहसास हुआ और वह भय से बेहोश हो गया। इस घटना  के बारे मे कहीं पढ़ा है। असल मे खतरे के बारे मे अनजान होने से भय उत्पन्न नही होता परंतु यदि उसे बता दिया जाय कि आज यह होनेवाला है, तो वह दहशत मे आ जाता है। इसलिए संभव है यह वायरस भी आप को  छू कर , दस्तक देकर निकल भी गया हो और आपको पता भी नही चला हो, और आप इंतजार ही कर रहे हों। अमूमन सर्दी ,खांसी ,जुकाम तो होते ही रहता है और ऐसे ही ठीक भी हो जाता है।इंसान वैसे ही भय से एक्स्ट्रा प्रिकाशन कर रहा है पर टेस्ट कराने से डरता है कि कहीं पाजीटिव न हो जाय। जैसे कुत्ते के काटने से ज्यादा दहशत पैदा करता है, उससे होनेवाली रेबीज बिमारी और चौदह इंजेक्शन नाभि के चारों ओर लेने का भय(अब कम लेना होता है)। उसी तरह पाजीटिव होनेपर आइसोलेशन का भय मौत से ज्यादा खतरनाक है। यह भी संभव है कि यदि पाजिटिव होने के बाद आप उसे "हो

पाजिटिव होने की दहशत भाग दो

संध्या अपने फैमिली डाक्टर से रेगुलर चैकप कराती रहती है। सप्ताह मे तीन दिन ब्लडप्रेशर और ब्लडशुगर की चेकिंग, तीन महीने मे एकबार ग्लुकोज, महीने मे थायराइड और छ महीने मे एकबार होल बाडी जांच। फिर भी कुछ न कुछ, कही न कहीं  दर्द निकलता ही रहता है। एक दो सप्ताह डाक्टर का चेहरा नही देखा तो दिल धड़कने लगता है और सांसे चढ़ने लगती है, जैसे आज गई तो कल गई। लेकिन इधर दो महीने से पूरी तरह फिट फाट है। सर दर्द और उठती चढ़ती सांसें गायब है।। खुद भी खुश हैं और परिवार भी खुश। डाक्टर भी चैन से अपने घर पड़ा है, भले ही उनकी आय थोड़ी कम अवश्य हो गई है।असल मे बड़े भय की ओट मे सारे छोटे -छोटे भय दब जाते हैं या यूं कहें कि उभरने नही पाते हैं। हम ये नही कहते हैं कि यदि डाक्टर नही होंगे तो लाकडाऊन पीरियड मे भी सभी स्वस्थ रहेंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि आधी से ज्यादा बिमारी मानसिक है या यूं कहें कि बिमारियां दिमाग मे पैदा होती है। आपने देखा होगा जब कोई साइकिल, मोटरसाइकिल आदि से फिसल कर गिरता है तो यदि हाथ पैर न टूटा न हो तो झटपट उठने की कोशिश करता है और चारों ओर देखने लगता है कि कहीं किसी ने देख तो नही। चोट पर बाद मे