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Showing posts from October, 2016

हाय !क्या करुं राम मुझे चायनीज मिल गया...

जैकी को पता नही था कि ऐसे दिन भी  देखने पड़ेंगे! जबसे हल्ला उठा कि चायनीज सामन का बहिष्कार करो! उसकी तो गृहस्थी तबाह हो गई। अरे भाई! उसने विदेशी बहू के चक्कर मे चायनीज लड़की से शादी कर ली थी। सोचा था, अम्मा को विदेशी बहू मिल जाएगी और गांव जवार मे गोरी चिट्टी फारेन बीबीधारी का नाम हो जाएगा और ये भी सोचा था कि चायनीज सामान की गारंटी नही होती तो जल्दी ही ये भी निपट लेगी। फिर लगे हाथ दूसरी मेहरारु ले आएगा। एक बार उसने एक मोबाइल खरीदा था, जो छ: महीने मे ही एक दिन चलते चलते टें बोल गया। दुकानदार बोला" चायनीज सामान का रिप्लेसमेंट नही होता, यह लिखो -फेको टाइप के पेन की तरह है, युज एंड थ्रो! लेकिन बीबी तो युज एंड थ्रो हो नही सकती। तो शादी फैटेंसी मे करनी पड़ी और उसे इंपोर्ट भी करना पड़ा। ची मिंग को ताजमहल देखना था, गरीब गुरबा देखना था, गांव मे गोबर से गोड़हा और चीपड़ी बनाते देखना था,वैसे इंपोर्ट तो वो की गई देश की जनसंख्या बढाने के लिए और मेक इन इंडिया को बढावा देने के लिए,पर ची मिंग का  प्लान  आमिर खान के "अतिथि देवो भव:" से प्रभावित था। जैकी की प्लानिंग तो  बड़ी लंबी थी, पर इस पाक चीन

युनिवर्सल बेसिक इनकम और भारत

रवीश कुमार जब प्राइम टाइम मे गैर पालिटिकल और गैर धार्मिक टापिक पर चर्चा करते हैं तो अच्छा करते है और उस समय वायस्ड भी कम होते हैं या होने का स्कोप कम होता है।आज उन्होंने एक नये विषय वस्तु को उठाया ,जो भविष्य मे देश मे विमर्श का विषय बन सकता है" युनिवर्सल बेसिक इनकम"!भारत के लिए यह नया हो सकता है पर विदेशों मे काफी पहले से इस पर चर्चा चल रही थी। इस युबीआई का तात्पर्य है सभी लोगों को एक समान रुप से आय सुनिश्चित करना। कल्याणकारी देश की परिकल्पना है की सभी के लिए सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित किया जाय। आज भी देश मे तमाम तरह के कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही है जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना, वृद्धावस्था पेन्शन योजना, विधवा पेंशन,आवास योजना, मध्यान्ह भोजन योजना, बाल पोषाहार सहित शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला, अंत्योदय, गरीबी रेखा से नीचे की योजनाओं जैसी सब्सिडी योजना चालू है। आज जितनी भी योजनाएं चल रही है वो टारगेटेड लाभार्थी परक योजनाएं है अर्थात इसमे लाभार्थी एक निश्चित पात्रता सूची से होते है और उस सूची का निर्माण अधिकारियों /कर्मचारियों द्वारा बनाया जाता है जिसमें पक्षपात

लूट सके सो लूट..

बहुत पहले की बात है, एक स्मगलर विदेशी कपड़ों से भरे जीप के साथ रात मे भागते हुए एक पुल पर एक्सीडेंट कर गया और मर गया। सुबह होते ही उस गांव मे उस विदेशी कपड़े की लूट मच गई ,जबतक पुलिस आती तबक सारे कपड़े वहाँ से गायब हो गये ,यहाँ तक कि उस स्मगलर की घड़ी, बटुआ आदि भी। पुलिस जब तलाशी लेने लगी तो किसी किसी घर मे जमीन के नीचे वो कपड़े गड़े मिले ,जिसके उपर गोसांई, भगवती स्थापित कर पूजा की जाने लगी थी।ये है हमारी मानसिकता ,जिसमे हम  सड़क पर पड़े सामान की लूट मचाने लगते हैं।  क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी आंदोलन, प्रदर्शन, धरना, हड़ताल मे हम सभी सरकारी संपत्तियों  की तोड़फोड़, आगजनी, लूटपाट तथा नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं? बसों और ट्रेनो मे लिखा होता है " सरकारी संपत्ति आपकी संपत्ति है और आप स्वयं इसकी सुरक्षा करें"। हम दूसरी लाइन नही पढते और उसे अपनी संपत्ति समझकर अपने घर ले आते है या नष्ट कर देते हैं पर यदि हम उसे अपनी संपत्ति भी समझते तो इस कदर नुकसान नही करते। आम जनता मे ही है वो लोग जो सरकारी धन की भी लूट अपना समझ कर ही करते हैँ।चोर पे मोर लगे हैं और लूटमलूट लगी है,जिसको जहाँ मौका म

साहब और आफिस की पालिटिक्स..

तो मित्रो!जो भाग्य के सांढ थे वो आज दफ्तरों मे साहब बने पड़े है पर उनकी अफसरीयत तेल लाने चलीे जाती है जब सुपर क्लास बाबू अर्थात टाप क्लास के अफसर ,जो किसी दफ्तर या सरकारी आफिस को अपनी मिल्कियत समझते हुए वहाँ प्रवेश तो करते हैं पर  वहाँ राज नही कर पाते! बडे अरमान थे पर अरमानो का हश्र इस कदर जाया होगा, सोचा न होगा।भले ही मुगालते मे रहें कि मै इस आफिस का बास हूं जो " दिल को बहलाने के लिए तथा तबीयत बहलाने के लिए अच्छा भी है, वरना उस समाज को मुंह क्या दिखा पायेंगे ,जहाँ रौब गांठ कर आये हैं कि साला मै तो साहिब बन गया। क्या वो वहाँ बता पायेंगे कि टाप क्लास की परीक्षा को पास कर बने इस अफसर को उस आफिस का बाबू, सहायक और चपरासी चरा रहा है या यूँ कहे कि अपने हिसाब से काम करा लेता है।सरकारी आफिस एक ऐसी पवित्र संस्था है जिसने अपने शाश्वत स्वरूप को अक्षुण्ण रखते हुए मैंगो पीपुल का विश्वास क़ायम रखा है कि आम खाने को मिलता है तो खाओ पर गुठली न गिनो"! रेड टेपिज्म को अपना जीवन धर्म बनाये हुए कभी भी सीधे से कोई काम न करने की कसम खा रखी है। वैसे कार्यालय उसे कहते हैं जहाँ कार्य किया जाता है, पर यह