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Showing posts from August, 2021

दलित लोकदेवता सलहेस

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भारत ग्रामों का देश है और हरेक ग्राम मे ग्राम देवता और लोक देवता हैं। जातियों - पंथों के अपने अपने देवता और नायक हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री " एम एन श्रीनिवासन " ने समाज के संस्कृतिकरण मे इस पर विस्तृत रूप से लिखा है कि किस तरह समाज के निम्न तबके की जातियां अपने उत्थान के लिए उच्च जातियों की संस्कृति अपना लेती है। वस्तुतः निम्न जातियों के लोकदेवता कभी भी मुख्य धारा के सांस्कृतिक इतिहास के पात्र नही रहे। ये तो सबलटर्न इतिहास लेखन ने उन्हें स्थान दिया है। इन लोक देवताओं और नायकों ने हमेशा उच्च जातीय सत्ता को चुनौती दी है। ऐसे ही लोकनायक या लोकदेवता हैं राजा सलहेस। इनकी कथा का मुख्य स्रोत दलित लोक गायन परंपरा है।            उत्तर बिहार और नेपाल की तराई के इलाक़े में दुसाध जाति सलहेस देवता की पूजा करती है। कुछ विद्वानों का अनुमान है कि सलहेस दरअसल शैलेश का अपभ्रंश है, जिसका सम्प्रदाय पांचवीं-छठी सदी में भी मौजूद था।इन्हें श्रद्धा और आदर से "राजा जी "भी कहा जाता है। गांव एवं छोटे शहर में बट अथवा पीपल के वृक्ष तले इनका स्थल  गहबर (पूजा स्थल) या गुहार लगाने का स

अघोरी

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अंग्रेज इतिहासकारों ने भारत को संपेरों, भूत प्रेतो और तंत्र मंत्र का देश कहा था। असल मे यह सब अंधविश्वास से जुड़ा मसला है। जाहिर है अशिक्षा के कारण अंधविश्वास और तंत्र मंत्र हावी होता है। इसका लाभ तांत्रिक मांत्रिक उठाते रहे हैं। वास्तविक अघोरी या तांत्रिक धन संपत्ति की लालच नही करते। जो इसके नामपर लोगों को उल्लू बनाते हैं, वो गांव घर मे लोगों को सब्जबाग दिखाकर ठगते हैं और कुकर्म करते हैं, वो ठग होते हैं। एक गांव मे जमीन के नीचे दबे सोने निकाल कर देने के लालच में किशोरी की बलि देने में उसके माता-पिता  को भ्रमित कर एक तांत्रिक ने  पिता के सामने पूजा-पाठ के नाम पर तांत्रिक ने किशोरी को न केवल नग्न किया बल्कि खेत में ले जाकर बलात्कार भी किया और फिर उसकी गला दबाकर हत्या कर दी। वास्तविक अघोरी ऐसे नही होते। वो जिंदगी का सत्य जानने को इच्छुक होते हैं।  अघोरियों के बारे मे कहा जाता है कि इन्होंने प्रेतात्मा को अपने वश मे किया होता है जिससे वो अपना काम कराते हैं। बहुत हदतक जैसे जिन्न से अपने काम कराया जाता हो। एकबार की घटना है जब गांव मे एक तांत्रिक बाबा आये थे। वो जब शाम मे बैठकर जम

फोर्टिफाइड राइस और कुपोषण

नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार देश के करीब 65 प्रतिशत लोग भोजन में चावल का उपयोग करते हैं। चावल की खपत वाले देशों की आबादी में सामान्यतः: विटामिन ए की कमी, प्रोटीन तथा ऊर्जा आधारित कुपोषण, जन्म के समय बच्चों का कम वज़न, शिशु मृत्यु दर की अधिकता देखने को मिलती है। भारत में 6 माह - 5 साल के 59 फीसद बच्चे, 15 - 50 साल की 53 फीसद महिलाएं और इसी आयु वर्ग के 22 फीसद पुरुषों में आयरन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2020 में भारत विश्व के 107 देशों में 94 वें स्थान पर रहा है। इस कुपोषण से लड़ाई के लिए सरकार ने फोर्टिफाइड राइस वितरण करने की योजना बनाई है। इस योजना के कार्यान्वयन से  क्रोनिक कुपोषण को कम करने में सहायता मिलेगी। कुपोषण से समाज के निम्न तबके के लिए यह भोजन के साथ दवा का भी काम करेगा। फोर्टिफाइड चावल का वितरण 'सार्वजनिक वितरण प्रणाली, 'समेकित बाल विकास सेवा'(आंगनबाड़ी) और 'मिड-डे मील' कार्यक्रमों के तहत किया जाएगा। क्रोनिक कुपोषण आमतौर पर गरीब, सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, कमज़ोर मातृ स्वास्थ्य और पोषण से जुड़ा होता है। भारत ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोष

सुल्ताना डाकू

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चंबल के बीहड़ो मे डाकूओं का प्रसिद्ध ठिकाना है, जहाँ एक से एक कुख्यात और दुर्दांत डाकू रहते थे । परंतु  बीसवीं सदी के पूर्वाद्ध में नजीबाबाद-कोटद्वार क्षेत्र में इसी प्रकार सुल्ताना डाकू का खौफ था। चंबल के डाकू बागी थे तो सुल्ताना देसी राबिनहुड, जिसने अंग्रेजी सरकार को अपने तेज तर्रार कारनामों से पानी पिला दिया था। उतराखंड के कोटद्वार से लेकर उतरप्रदेश के बिजनौर तक उसका राज चलता था। सुल्ताना डाकू के संबंध मे लिखित अभिलेख कम उपलब्ध है। उतरप्रदेश सरकार के गृह विभाग के गोपनीय अभिलेखों मे उसका उल्लेख एक दुर्दांत डाकू के रुप मे है। प्रख्यात शिकारी जिम कॉर्बेट ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘माय इंडिया’ के अध्याय ‘सुल्ताना: इंडियाज़ रॉबिन हुड’ लिखा है। लेखक नवाराम शर्मा ने " गरीबों का प्यारा" नाम से सुल्ताना डाकू पर किताब लिखा।सुल्ताना के बारे मे ज्यादातर किंवदंतियां, गांवों मे प्रचलित कहानियां हैं और बड़े बुजुर्गों की यादों मे अंकित घटनाएं हैं। कहा जाता है कि वह इतना साहसी था कि डाका डालने  से पहले अपने आने की सूचना दे देता था, उसके बाद लूटने आता था।  सुल्ताना ने कभी किसी ग़रीब