जरा हम भी उन्हे याद कर लें...


गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः ।।        गुरूर्साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्री गुर्वे नमः ॥
                                                                    शिक्षक अर्थात गुरु की महत्ता का बखान जितना किया जाय ,वह कम है परंतु  क्यों आज सभी शिक्षको के प्रति वह आदर और स्नेह  नही है जो श्रावस्ती के एक शिक्षक  के प्रति बच्चो और उसके अभिभावको का है?उसने क्या ऐसा कर दिया कि जिससे जब उसका ट्रांसफर वहां से हुआ तो बच्चे ,सहयोगी, गार्जियन सब रोने लगे?क्या शिक्षको मे कमी है या सिस्टम मे? क्यों आज शिक्षकों से शिक्षण कार्य कम और अन्य कार्य ज्यादा करवाये जाते हैं।शंभूनाथ मास्टर सबेरे से इसी बात को लेकर परेशान है कि आज मेनू मे सब्जी और चावल बनाना है, पर मार्जिन मनी नही मिला है तो सब्जिया कहां से लायें। प्रधान जी एंटी बैठे हैं, तुरत शिकायत करेंगे ब्लाक मे!  वो पढाई खाक करायेंगे। ज्यादातर बच्चे पढाई करते करते किचन की तरफ मुंह किये रहते हैं कि आज क्या मिलेगा? मानो शिक्षक छात्र का संबंध अब खाना बनाने और खाने का रह गया है। क्या दुर्दिन आ गया है शिक्षको का? शिक्षक बच्चों का खाना बनबायेगा,ड्रेस सिलवायेगा, जनगणना करेगा, चुनाव करवायेगा, पोलियो का टीका लगवायेगा, वोटर लिस्ट बनबायेगा इत्यादि। वह बच्चों को कब पढायेगा, इसकी चिंता किसी को नही है। सरकारी स्कूल की इतनी हालत खराब है कि माननीय न्यायालयों को भी इसमे दखल देना पड़ा है। राजनारायण मास्टर दिनभर सदर विधायक की चमचागिरी मे लगा रहता है ताकि अगले एम एल सी चुनाव मे शिक्षक कोटा से उसे टिकट मिल जाय। वो क्या पढायेगा? ।शिक्षको को राजनीति करने की छुट दे दी गयी है फलत: पार्षद, विधायक और मंत्रियो के आगे पीछे घुम घूमकर अच्छी जगह पोस्टिंग करायेंगे और सेटिंग कर कभी एम डी एम कार्डिनेटर बन जाते हैं तो कहीं  प्रधानाध्यापक। कार्डिनेटर बनने से घुमने फिरने का लाइसेंस मिल जाता है और उपरी कमाई का जरिया भी। ।क्यों आज वो सम्मान, आदर और सेवा भाव के लिए नही जाना जाता बल्कि सिर्फ आजीविका निर्वहन का साधन हो गया है। याद है हमे अपना स्कूली जीवन ,शायद इस बहाने हमारे हम उम्रो को अपना स्कूली जीवन याद आ जाये।हमारे शिक्षको के छोटे छोटे प्रसंग उनकी निश्छलता, सादगी और छात्र एवं शिक्षा के प्रति उनके डेडिकेशन का जीवंत उदाहरण है। हमारे भविष्य और जीवन शैली के प्रति वो कितने सजग रहते थे।हम सब  हाईस्कूल तक हाफपैंट पहनकर जाते थे। हमारे स्कूल मे एक मास्टर साहब थे चंद्रशेखर सिंह। बडे़ मजेदार, अच्छी और देश विदेश की मजेदार कहानियां सुनाते थे । स्कूल मे इतिहास और भूगोल पढाते थे। वे कहते " ये मोटी मोटी जांघ पर हाफ पैंट पहन के आते हो, शरम नही आती।एक दिन सबके सामने बोल दिया ,अगले दिन घर मे धरना दे दिया की पैजामा नही दोगे तो स्कूल नही जाऊंगा। पैजामा और शर्ट पहन कर जब स्कूल गया तो मास्टर साहब बोले" हां अब लगते हो शरीफ घर के"!स्कूल मे लड़कियां भी पढ़ती है। कपड़ा लत्ता सही से पहना करो"। वो जब कोई सवाल नही पूछते और कोई जबाब नही देता तो ढोंढी(नाभि) पकड़ के घुमाते और दांत पीस कर बोलते" क्यों, पढाई मे मन नही लगता? कभी चुरकी(बाल) के झूलाते तो कभी अंगुली के बीच पेंसिल दबाकर मारते थे।उस मार का असर ऐसा था कि वो जो पढा देते फिर कभी कोई भूलता नही था।सभी उनका सम्मान करते थे और मार से रोने के बाद भी कभी कोई उनकी शिकायत नही करता था। आज यदि कोई टीचर उस तरह मार दे तो हम गार्जियन भी शिकायत लेकर स्कूल पहूंच जाय । प्राइमरी स्कुल मे वासदेव मास्टर साहब का आतंक था"! कौन सब नही आया है रे! मास्साब! रघुआ ,गणेशवा, मनोजवा और सुरेशवा नही आया है! बस मास्साब खोजवाने निकल जाते। कहीं भी वो सब मिलते हाथ पैर बांधकर स्कूल लाये जाते, फिर वो जमकर धुनाई होती कि उन्हे नानी याद आ जाती। पर वे सब भी थे एक नंबर के हेहर! केतनो मार खाते पर हर तीसरे चौथे दिन ताश खेलने के बहाने भाग जाते और स्कूल नही आते, फिर उनकी खोजाई शुरु होती। पर इतना मार खाने के बाद भी उनके बाबू और बाबा कुछ न बोलते। वासदेव मास्टर की जो इज्जत गांव मे आज भी है बड़े बड़ो को नही है।
स्कूल मे मारपीट , चाकूबाजी और छौंरीबाजी करने वाले लड़को की कमी नही आज है और पहले भी नही थी, पर उनकी भी मास्टर साहब से फटती थी। अरमान साहब हेडमास्टर थे ,जब वे हाथ मे छड़ी लिए निकलते तो सबका पेशाब सटक जाता था। उनसे टीचर भी डरते थे।इंगलिश फरार्टेदार बोलते और घोर अनुशासन प्रिय , क्या मजाल किसी की जो फील्ड मे निकल जाये। स्कूली परीक्षाओं मे भी चोरी और नकल के सख्त खिलाफ थे। इसी का नतीजा था कि इस स्कूल ने एक से एक होनहार और प्रतिभाशाली छात्रो को जन्म दिया पर आज के स्कूल मे वो बात कहां। मै जब एकबार बीपीएससी का मेन्स  पटना कालेज मे  दे रहा था तो वहां चोरी और नकल चल रही थी । ऐसे मे एक सख्त टीचर ने जब एक छात्र की नकल सामग्री पकड़ ली तो वह डरने के बजाय उनसे झगड़ गया" पढाने वक्त पढाये नही हैं और अब जब एक मौका लगा है कि कुछ करके नौकरी पा सकूं तो करने नही दे रहे हैं"। मै अवाक् था । किस तरह यह टीचर से बात कर रहा है और नकल को अपना अधिकार समझ कर उनसे लड़ रहा है। कई घटनाये सुनायी पड़ती है जिसमे टीचर के साथ बदतमीजी और मारपीट की जाती है। कुछ घटनाओं मे शिक्षक भी दोषी होते हैं, उन्होने भी शिक्षा को व्यवसाय बना लिया है,उन्हे प्रेम नही है। कई मामलो मे तो उन्होने गुरु शिष्य संबंधो को कलंकित भी किया है। अखबारों मे जब हम पढ़ते हैं या हम सुनते हैं कि एक शिक्षक ने छात्रा का यौन शोषण किया, शिक्षक के साथ छात्रा भाग गयी, उनका उत्पीड़न किया। यह शर्मनाक है।एक पवित्र रिश्ते पर दाग है।  शिक्षक दिवस के बहाने हम शिक्षको को याद कर लेते हैं, जिन्होने हमे आज की स्थिति तक पहूंचाया। आजीविका तो दिलाया ही एक अच्छा इंसान बनने मे सहयोग दिया। कहा जाता है" शिक्षा विहीन मानव पशु के समान है" तो हमे जानवर से इंसान भी शिक्षक ही बनाते है। आज अच्छे शिक्षको की कमी है। शिक्षा के व्यवसायीकरण ने इसकी गुणवत्ता को प्रभावित किया है।पर समय अवश्य बदलेगा और अच्छे और गुणी शिक्षक हमे अवश्य मिलेंगे।एक बेहतरीन कविता जो हमारे शिक्षको को समर्पित है---साभार।

पदचिन्हों के पीछे-पीछे,
आजीवन चलता जाऊँगा |
जो राह दिखाई है तुमने ,
मैं औरों को दिखलाऊंगा ||
सूखी डाली को हरियाली , बेजान को जीवनदान दिया |
काले अंधियारे जीवन को , सौ सूरज से धनवान किया ||
परोपकार, भाईचारा,
मानवता, हमको सिखलाई |
सच्चाई की है दी मिसाल ,
है सहानुभूति क्या दिखलाई ||
कान पकड़ उठक- बैठक , थी छड़ियों की बरसात हुयी
समझ न पाया उस क्षण मैं, अनुशासन की शुरुआतहुयी
मुखमंडल पर अंगार कभी ,
आँखों में निश्छल प्यार कभी|
अंतर में माँ की ममता थी,
सोनार कभी, लोहार कभी ||
जीवन को चलते रहना है , लौ इसकी झिलमिल जलती है।
जीवन के हर चौराहे पर, बस कमी तुम्हारी खलती है ||
जीवन की कठिन-सी राहों पर,
आशीष तुम्हारा चाहूँगा|
जो राह दिखाई है तुमने,
मैं औरों को दिखलाऊंगा ||

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