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Showing posts from 2018

पुस्तकें जो मैने इस साल पढी हैं

किताबों के पढने के दृष्टिकोण से यह वर्ष मेरे लिए अविस्मरणीय रहा है। हिंदी किताबों के प्रकाशन और बिक्री के नजरिए से  इसे पुनर्जागरण काल भी कह सकते हैं जिसमें एक तरफ प्रेम  कहानियों पर आश्रित" नयी वाली हिंदी " टैग का महत्वपूर्ण योगदान है तो दूसरी ओर विषयों को विविधता का दौर भी है।हिंदी किताबों की जबरदस्त बिक्री हो रही है, यह आक्रामक मार्केटिंग का दौर है।सबसे पहले जिसकी चर्चा जरूरी समझता हूँ वह भगवंत अनमोल की" जिंदगी फिफ्टी फिफ्टी"  है, जो थर्ड सेक्स की जिंदगी और समस्याओं को सामने लाने वाली बेहतरीन पुस्तक है और इसे काफी अच्छे तरीके रचा और संजोया गया है। विवाहेतर जिंदगी की कथाओं को अपने मे समाहित किए हुए" विजयश्री तनवीर की" अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" बेहतरीन और विशिष्ट कहानियों को पाठकों के समक्ष लाता है। पुस्तक की अंतिम कहानी तो संकलन का सरताज बनकर उभरती है। कहानियों मे वनलाईनर की भरमार है जैसे पति- पत्नी संवाद-" हम आपस मे इतना क्यों लड़ते हैं?  क्योंकि दूसरों से ना लड़ें।" त्रिलोक नाथ पांडेय की " प्रेमलहरी" ऐतिहासिक गद्य और गल्प पर

प्रेमलहरी पुस्तक समीक्षा

इतिहास के अनछुए पहलुओं को उजागर करती कृति" प्रेम लहरी"।लेखक " त्रिलोक नाथ पांडेय "की यह पुस्तक  इतिहास होने का दावा नही करती और न लेखक द्वारा इतिहास लेखन का बल्कि एक प्रेम कहानी को केंद्र  मे रखकर लिखी गई पुस्तक है। ऐतिहासिक तानेबाने मे बुनी प्रेम कहानी लोक संस्कृति और जमीन से जुड़े लोगों की कहानी भी कहती है तो दूसरी ओर शाही रहन सहन का अंतर्विरोध भी दिखाती है।लेखक की यह पहली रचना है पर मंझे हुए रचनाकार के समान बनारस, मेवाड़, दिल्ली, आगरा से लेकर कूचबिहार तक के घटनाओं को अपनी कूंची से रंगते हैं। संस्कृत का झंडा फहराने वाले पंडित जगन्नाथ जब लवंगी के साथ प्रेम का झंडा लहराने लगते हैं तो मुगलिया सल्तनत के शहंशाह भी अपनी जान मुमताजमहल से किए वादे को निभाने के लिए नियम तोड़कर शहजादी को पंडित के साथ चले जाने की आज्ञा दे देते हैं।  पूरी कहानी मे दाराशिकोह और जहांआरा का चरित्र और निखर कर सामने आता है। शाहजहां का चरित्र ताजमहल और लालकिला के चलते विख्यात है पर उसका दूसरा पहलु  औरतखोर, रंगीला, अय्याश बादशाह भी सामने आता है। मुगल हरम की अय्याशियों पर और गुप्तचरी विद्या पर लेखक ने व

हम छुपाते रहे इश्क है.......पुस्तक समीक्षा ..यूं ही

यूं ही कोई शायर या कवि नहीं बनता । कहते हैं" वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान! लेकिन अपवाद भी होते हैं। यूं तो गीत गजल कविताओं का शौक पहले से हैं पर मैं इसके आयोजन- सम्मेलनों मे जाने से कतराता हूँ। मुझे इसतरह के पार्टी फंक्शनो मे कुछ असहजता सी महसूस होती है पर आज की शाम कुछ अलग थी। हालांकि गया था ये सोच कर कि मेरे जिलाधिकारी की पुस्तक का और उनके गीतों पर बने अलबम का विमोचन है, इसलिए मुझे जाना चाहिए, दूसरे जिस रिजार्ट मे यह आयोजन था, शायद उसको अंदर से देखने की ललक थी। लेकिन यहां तो माहौल मेरे सोच से परे था। उनके पुस्तक की रचनाओं को सुनकर यह समीक्षा लिखने को विवश हो गया।  डा. अखिलेश मिश्र, जिलाधिकारी पीलीभीत की कविताओं को अलबम के रुप मे इतने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया कि मै झूम गया। नाम तो उनका कवि के रुप मे बहुत सुना था पर वाकई मे इतने अच्छे कवि हैं ये आज जान सका।बकौल शायर डा. कलीम कैसर " अगर उन्होंने जिद न ठानी होती तो यह पुस्तक रुप मे कभी न आ पाती क्योंकि फक्कड़ाना अंदाज और अलमस्त जिंदगी जीनेवाले डा. साहब के लिए अपने नज्मो को संजोकर माला मे पिरोना संभव नही थ

चौरासी----- समीक्षा

यूं तो " चौरासी" को काफी पहले पढ़ लिया था लेकिन समीक्षा लिखने के उहापोह मे कई दिन बीत गये। " त्रासदी यह है कि प्रेम हर मजहब का एक अंग है जबकि इसको खुद ही एक मजहब होना चाहिए था" उपन्यास का थीम लाइन है। लेफ्टिनेंट जनरल के एस बराड के " आपरेशन ब्लू स्टार का सच" पढने के बाद सत्या व्यास की "  चौरासी "को पढ़ना, मानो कंटीन्यूटी मे पढ़ रहे हों। बहुत सारे सवालों के जबाव पहले ही मिल चुका था। पर यह उपन्यास है और पहलेवाला इतिहास! इसका नायक" ऋषि "गदर फिल्म के नायक के सदृश बनते -बनते रह जाता है जिसमे इतना साहस नही है कि सन्नी देवल की तरह हैंडपंप उखाड़कर और सबके सामने से छीनकर  ट्रेन से अपनी प्रेमिका मनु को मोगा पंजाब से वापस ले आये,तो उसने चोरी से  गंगा सागर से भगा लिया! कहानी बहुत हद  तक मणिरत्नम की" बाम्बे"जो मुंबई दंगों के साये मे पनपे हिंदू - मुस्लिम नायक नायिका के मध्य प्रेम के समान ही है। गदर, बांबे और चौरासी तीनों मे नायक हिंदू ही है, बस चरित्र थोड़ा थोड़ा अलग है। छाबड़ा साहब  नायिका के टिपिकल बाप के रोल मे है, लेकिन गदर के अमरीश पुरी की तरह

पंख होते तो उड़ आते रे

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नौकरी की जद्दोजहद मे उलझे और पर्व त्यौहार मे अपनो के साथ न रह पाने का मलाल

नक्सलाईट

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गांव मे बदलते परिवेश की कहानी

खेलोगे कूदोगे होगे खराब

"खेलोगे कूदोगे होगे खराब पढोगे लिखोगे बनोगे नबाव।" समाज की ये सोच अब पहले जैसी नही रह गई है फिर भी बहुत ज्यादा बदली नही है। वस्तुतः खेल को कैरियर के रुप मे अभी भी मान्यता नही मिली है।अंतरराष्ट्रीय इवेंट्स मे  मेडल जीतने पर भले ही सरकार या अन्य लोग पैसों की बरसात करने लगे पर  उससे पहले उन्हें कोई नही पूछता। कितनी कंपनियाँ अनजान खिलाड़ियों को स्पोंसरशिप दे देती है। उन्हें नामी गिरामी खिलाड़ी चाहिए जो उनका प्रोडक्ट बेचने मे उसका विज्ञापन कर सके। तब चीन से अपनी तुलना मत करिए, दुख होगा! वहाँ " खेल" को इंडस्ट्री की तरह मान्यता और ट्रीटमेंट है तो भला क्यों न वो विजेता होंगे। यहां तो किसी भी खिलाड़ी की जिंदगी उठाकर पढ़ लीजिए, पता चल जाएगा  कि वो कैसे वहाँ तक पहुंचे हैं  जहाँ वो आज है! मात्र अपने जज्बे और साहब के सहारे समाज और सरकार से लड़कर! सब चाहते हैं कि धोनी/ तेंदुलकर/ भूटिया/साइना / सिंधु उसके घर मे पैदा हो पर मध्यमवर्गीय मानसिकता किसी भी धोनी को रेलवे की नौकरी छोड़ने देना नही चाहती। संसाधन विहीन " बुधिया" गुमनामी के अंधेरे मे खो जाता है।" स्वपना" के ग

प्रिपरेशन

बिहारी कक्का आज पूरे फार्म मे थे। जैसे लाठी सोंटा लेकर सरकारे पर पिल पड़े हों। "ऐसे ही हाल रहा तो कोई सरकारी नौकरी का नाम नही लेगा। अरे! काहे को इसके पीछे बिहारी, बंगाली और पुरबिया लोग पागल रहते हैं? जाब सिक्योरिटी? काहे को सिक्योरिटी ,पचास साल के बाद खोज खोज कर स्क्रीनिंग कर रहे हैं और जबरदस्ती रिटायरमेंट! अब तो ऊ कांसेप्ट ही तेल लेने चला गया कि केतनो बिगाड़े तो ज्यादा से ज्यादा क्या करोगे.. सस्पेंड? ऊ  से क्या होता है? घूम फिरकर आयेंगे और बहाल हो जायेंगे, लेकिन  ले लाठी! ई तो टर्मिनेट होने लगा! जबर्दस्ती रिटायरमेंट देने के लिए स्क्रीनिंग कर रहे हैं!" " काहे एतना फायर हो रहे हैं? सरकार तो चाह रही है कि ई जो सरकारी लालफीताशाही है ऊ समाप्त हो और सबमे एक्टिवनेस आ जाय! आखिरकार निजी कंपनियों से लोहा जो लेना है। कैसे वहां टारगेट ओरियंटेड काम लिया है, उसी तरह यहां हो। ऐसे मे अक्षम लोगो की स्क्रीनिंग जरूरी है न!" " तुम हमेशा बुड़बक ही रहोगे! सरकार नौकरियों मे लोगों को आने से हतोत्साहित कर रही है। अब देखो न! इतना ही नही, अब तो इहां भी काम करना पड़ता है! सुबह नौ बजे बायो