रोहू माछ का मूंड़ा
"का हो भैयारी! कहाँ से भोरे भोरे लपक लिए! एतना सबेरे कौआ भी टहकार न मारा होगा और आप रोहू धर लिए!" सोनफी झा कान से जनेऊ उतारते हुए बोले! कमलेश ठाकुर के हाथ मे लपलपाता रोहू माछ देख के लघुशंका भी अटक गई । " हें.. हें..हें.. सोनफी बाबू आप भी न मजाक करते रहते हैं। ऊ तो हम सबेरे सबेरे मारनिंग वाक पर जग रहे थे ,तो देखा कि भिखनू मांझी का बेटा साइकिल पर एक तसला मांछ भरे कहीं देहात से आ रहा था। अब मांछ को देखकर जानते ही हैं आप कि न! हमारा मोन प्रफुल्लित हो जाता है। मैने रोका तो सार... के नाती रुकबे नही किया। मै भी दौड़ा तेजी से और गट्टा पकड़ के ऐंठा तो सार.. रिरियाने लगा। ऊ...बरम स्थान वाले मेले के दिन सौ रुपया टान के ले गया था। हिसाब चुकता करना था। दू रोहू तसला से निकाल लिया! " दू गो! लेकिन हाथ मे तो एक्के गो दिखाई पड़ रहा है!" "अरे ! का करें। बड़की माय को भी आज ही रास्ते मे मिलना था। बोली" लाल बऊआ ! सबेरे मांछ देखना शुभ होता है, दिन बढिया हो गया! अब मतबल तो मै समझ ही गया। का करें.. लाजे पाखे एक रोहू उनको दे दिया!" सोनफी झा भी हंस कर बोले" दिन त