हाकिम का बंगला
अखबारों मे उजड़ते बंगलों के बारे मे सुना तो बस हाकिमों के बंगलों की याद हो गई जो हमेशा इन दुर्दशाओं से गुजरती है। ट्रांसफर सीजन शुरू होते ही " मैनेजमेंट गुरुओं" का जी धड़कने लगता है कि पता नही इस बार कितने का चुना लगे।इसलिए नही कि नये हाकिम के साथ काम मे सामंजस्य बार बार बनाना पड़ता है बल्कि हाकिम के बंगले मे गाय के जौ- चुन्नी से लेकर किचेन के हल्दी-नमक की व्यवस्था उन्हे ही करनी पड़ती है। पुराने साहब गये तो बंगला खंडहर बन जाता है, जहाँ सिर्फ दरो- दीवार होती है, एक बल्ब भी नही। पर्दा-.बेड से लेकर फ्रीज और किचनवेयर सब साफ।एक बेचारे तो हरेक साल एसी लगवाते -लगवाते परेशान थे, साहब हरेक कमरे मे एसी लगवाते , ऐसे जैसे " आइसलैण्ड " मे पैदा हुए हों और भारत की गर्मी मे झुलस जायेंगे। इनके अपने घर पर जाकर देखिए तो वहां भी किसी मरदूद का उठाया हुआ ही लगा होगा। अपने पैसे से तो शायद हहाथ का पंखा भी न खरीदे हों। ट्रांसफर हुआ की खिड़की सहित ऐसी गायब।कई तो सी एफ एल तक खोल ले जाते थे। नये हाकिम को 71 इंच का एच डी टीवी चाहिए था" बाप के नाम घास पात, बेटा के नाम परोर!" कभी बाप जिंदगी