चरण स्पर्श पर विमर्श

अहमदाबाद के दर्शकों से खचाखच भरे नरेंद्र मोदी क्रिकेट स्टेडियम में आइपीएल फाइनल मैच के बाद क्रिकेटर रविन्द्र जडेजा की विधायक पत्नी रिबावा जडेजा ने भरे मैदान में उपस्थित हजारों और करोड़ों लाइव दर्शकों के बीच अपने पति का चरण स्पर्श क्या कर लिया, मानो पूरे देश में एक बहस सी छिड़ गई। बहस के बीच कई बातें निकल कर सामने आयी है जिसमें सबके अपने अपने पक्ष हैं। कोई इसे भारतीय परंपरा और संस्कृति का प्रतीक मानते हैं तो कोई स्त्री समानता के विरुद्ध। कोई इसे पितृसत्तात्मक परंपरा का नाम दे रहे हैं तो कोई इसे राजनीतिक दिखावे के तौर पर देख रहा है। 

               वस्तुत: पैर छूना, जिसे कुछ संस्कृतियों में "चरण स्पर्श" के रूप में जाना जाता है, पारंपरिक रूप से सम्मान और विनम्रता का प्रदर्शन माना जाता है। जब हम किसी का सम्मान करते हैं तो उनके पैर छूते हैं। इसे संस्कारों से जोड़ कर देखा जाता है, इसलिए छोटे अपने बड़ों के पैर छूते हैं। भारतीय परंपरा में बड़ों का पैर छूकर छोटे आशीर्वाद लेते हैं। अब इसमें स्त्री पुरुष के लिए मायने अलग हो जाते हैं जैसे हम अपने माता-पिता का या बेटियां भी मम्मी पापा का या जो घर में श्रेष्ठ है या गुरु है उनका पांव छूकर  सम्मान करते हैं। यहां बहस का मुद्दा यह बना है कि पत्नी को  पति का पांव छूना  चाहिए या नहीं ।  हालांकि ज्यादातर केस में पति हमेशा  पत्नी से उम्र में बड़ा होता है तो वह बड़े उम्र का होने के लिहाज से उसका सम्मान करने के लिए पांव छू ले तो कोई हर्ज नहीं होना चाहिए लेकिन वह अर्धांगिनी मानी जाती है। शरीर का आधा अंग यानि वह अपने पति के समान स्थिति में है तो उस स्थिति में आदर सम्मान तो ठीक है परंतु पांव छूकर सम्मान प्रकट करना सही प्रतीत नहीं होता। यदि पांव छूये तो दोनों एक दूसरे का छू ले। पत्नी को छोटा मान करके उनके पति का आशीर्वाद ले रहा है तो कोई बात नहीं है लेकिन यदि जबरदस्ती हो रहा है, पत्नी की इच्छा के विरुद्ध सिर्फ परंपरा निर्वाह या पितृसत्तात्मक दृष्टि से जबरदस्ती किया जा रहा है तो ग़लत है। वैसे अनेक पति होंगे जो घर के अंदर  अपनी पत्नी का पांव दबाते होंगे पर वे इसे समाज के सामने थोड़े न करके दिखायेंगे क्योंकि समाज में  हमेशा पतियों की मूंछें ऊंची रखने का रिवाज है। हांलांकि समाज बदल रहा है। परंपराएं टूट रही है। स्त्री पुरुष की समानता का विमर्श खुलकर सामने आ रहा है। पत्नियां मुख्य हो रही है और उनसे रिवाज के नाम पर उनकी मंशा के विपरीत काम कराना अब आसान नहीं रह गया है। ऐसे में पतियों को भी चाहिए कि उन्हें सम्मान देते हुए कोई भी चीज पारस्परिक रूप से करें।

         मैथिलों की शादी में विवाह मंडप पर  होने वाला पति अपनी होने वाली पत्नी का पांव छूकर उससे  अनुमति लेता है कि क्या मैं आपसे शादी कर सकता हूं ? यह वैवाहिक कर्मकाण्ड का एक हिस्सा है। इसके पीछे मूल उद्देश्य यह है कि कन्या को देवी का स्वरूप माना जाता है और उसको छूने या वर्ण करने से पूर्व देवी की अनुमति आवश्यक मानी जाती है। हालांकि यह प्रथम और आखिरी बार ही होता है जब पति पत्नी के पांव छूता है।  बुंदेलखंड के कई जिलों में प्रायः:यह देखा जाता है कि कन्याओं से पुरुष पैर नहीं छुआते है, उल्टे कई वृद्ध पुरुष तक छोटी छोटी कन्याओं का पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं। वे उन्हें गौरी का रुप मानते हैं।  अभी कुछ दिन पहले एक वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें शादी के दौरान पति अचानक पत्नी का पांव छुए लेता है।हालांकि पत्नी कुछ सेकेण्ड में ही उछलकर पीछे हट जाती है। शायद उसे भी पता है कि ऐसा करना कितना बड़ा पाप है?भला एक पति कैसे अपनी पत्नी के पैर छू सकता है? वह पुरुष है, जिसका स्थान पत्नी से काफी उपर माना गया है। पति को परमेश्वर माना जाता है  और परमेश्वर की जगह चरणों में कैसे हो सकती है? समाज ही ऐसा है कि जिसमें पति को पत्नी से श्रेष्ठ माना जाता है।  तो पत्नी को पैर  छूना ही पड़ेगा वरना लोग उसे असंस्कारी बता देंगे। आपसे अपने बड़ों के पैर छूने की उम्मीद की जाती है। लेकिन महिलाओं को घर की लक्ष्मी के रूप में मानते हैं, तो लक्ष्मी के चरण छूने में क्या हर्ज है। अभिनेता और सांसद रविकिशन ने कहीं लिखा है कि प्रतिदिन वह सुबह उठकर अपनी पत्नी का पांव छूते हैं और उनको वह सम्मान देते हैं क्योंकि आज व जो भी हैं , अपनी पत्नी की बंदे ही हैं।

            पैर छूने के पीछे का विज्ञान यह है कि यह पैरों के तलवों पर दबाव बिंदुओं को उत्तेजित करने में मदद करता है, विश्राम और तंदुरूस्ती को बढ़ावा देता है। पैरों पर कई दबाव बिंदु होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का शरीर पर अलग प्रभाव पड़ता है। पैरों को छूने से परिसंचरण में सुधार और दर्द से राहत पाने में भी मदद मिल सकती है। पैर छूने से दिमाग में ऑक्सीटोसिन रिलीज होता है, जिसे 'लव हार्मोन' कहा जाता है। ऑक्सीटोसिन खुशी, प्यार और बंधन की भावनाओं के लिए जिम्मेदार है। सम्मान की निशानी के रूप में बच्चों द्वारा प्रतिदिन अपने माता-पिता और दादा-दादी के पैर छूना भी आम बात है। लेकिन पांव छूने की भी एक स्थिति है। आजकल लोग बड़े बुजुर्गो का पांव भी छुते है तो सिर्फ दिखावे के लिए। चरण स्पर्श में आपकी अंगुली का स्पर्श पांव की उंगलियों से होना चाहिए। इसमें आप पूरी तरह झूक जाते हैं। लेकिन आजकल लोग घुट्टी या अब तो घुटना ही छूने लगे हैं। एक किसी फिल्म में अक्षय कुमार पंकज त्रिपाठी का पांव लागि बोलकर दोनों जांघों के बीच ही छूता है। दोनों हाथों की जगह अब लोग एक साथ का प्रयोग करने लगे हैं जो ग़लत है। कुछ तो सिर्फ मुंह से "पांव लागी गुरुजी या महाराज या बाबा" बोलकर काम चला रहे हैं।

         पांव लग्गी आजकल फैशन बन गया है। चाहे कोई भी आफिस हो, राजनीतिक दल हो  या जिससे अपना काम निकालना है, जरिया बन गया है। किसी भी आफिस में जाइये तो वहां अधिकारी के पहुंचते ही आधा से ज्यादा कर्मचारी पांव लग्गी करने लग जाते हैं जो कर्मचारी आचरण संहिता के सर्वथा उल्लंघन है। अधिकारी भी चरण स्पर्श करवाने में अपनी वाहवाही समझते हैं। हालांकि उसमें कोई श्रद्धा या सम्मान के लिए चरण नहीं छूता बल्कि अपने को अधिकारी का कृपापात्र बनाये रखने के लिए ऐसा करता है। यही हाल राजनीति और अन्य व्यवसायों का है।सब अपना उल्लू सीधा करने के लिए पांव छूने को अपना हथियार बना रहे हैं। अंत मे पुनः: जडेजा फैमिली पर आते हैं तो यह बात उभरकर आती है कि पति द्वारा मैच के आखिरी दो गेंदों में जोरदार शाट लगाकर अपनी टीम को जीत दिलाने से प्रसन्न और उत्साहित पत्नी ने अपने पति के प्रति सम्मान और प्रेम दर्शाने का एक जरिया के रूप में पांव छूना बेहतर माना हालांकि रविंद्र जडेजा ने पहले भी उसे तुरंत उठाकर गले लगाया जो सम्मान का प्रतिउत्तर था।  अब क्या रिबावा जडेजा घर के अंदर भी रविन्द्र जडेजा के पांव छूकर सम्मान जताती है कि नहीं यह तो उनका निजी मामला है, जिसमें किसी को दखल देने का अधिकार नहीं है।

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