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Showing posts from April, 2017

लव लेटर

 टिफिन टाइम मे सब बच्चे फील्ड मे खेल रहे थे ,वो क्लास मे पढाई कर रहा था। अचानक उसने देखा के शंकर आया और चुपके आशा के बस्ते को खोलकर उसमे एक चिट डालकर चला गया। क्या रख रहे हो? कुछ नहीं यार! लव लेटर है!  नाम नही लिखा है!  पर कोई पूछे तो मेरा नाम नही बताना!  वरना बहुत मारूंगा! शंकर के जाने के बाद समीर का मन भी पढाई मे नही लग रहा था।  जाने क्या लिखा होगा साले ने?  आशा कैसे रियेक्ट करेगी?  या चुपचाप पढकर रख लेगी?   क्लास मे वही अकेला बैठा था, कहीं उसी पर आशा को शक हो गया तो? उसकी तो इज्जत की वाट लग जाएगी। इसी डर से वह भी क्लास से बाहर निकल आया और पानी पीने चला गया। थोड़ी देर मे घंटी बजी और सभी क्लास मे लौट पड़े। वह अभी क्लास मे घुसा ही था कि शोर गुल रोना धोना शुरु हो गया।  आशा के नैनो से गंगा जमुना धुआं धार बह रहे थे और अन्य लड़कियाँ आग बबूला और गुस्से से फायर थी। सभी एकसाथ उस सबूत-ए-वारदात के साथ हेडमास्टर साहब के पास पहुँच गये। जैसा की समीर को अंदेशा था,वारदात के चश्मदीद गवाह के रुप मे बुलाये जाने का फरमान लेकर सोनफी राम आ गया। जाते वक्त समीर ने चोर नजरों से शंकर की ओर देखा लेकिन वह

जबरन कंठीधारी

थोड़ा बेपटरी की बातें करें तो माइंड बोगलिंग हो जाता है कि नवरात्रि मे मांस मछली की दुकानें बंद क्यों हो जाती है? क्या मुस्लिम, सिख्ख, ईसाई भी नौ दिन मांसाहार त्याग कर देते हैं?लोग कहेंगे हिन्दू बहुसंख्यक हैं, जब वे नही खाते तो बिक्री बंद हो जाती है। ".शायद नवरात्रि का सपोर्ट करते हुएवे भी कहते है " वी आर विद हिन्दूज"। हिन्दू भाई नही खायेंगे तो हम नही खायेंगे! दुकानदार बोलते हैं" भईया! जब बिक्री ही नही होगी तो दुकान क्यों लगायें या बकरा क्यों काटे!"नवरात्रि के अगले दिन तो जैसे बांध ही टूट जाता है। मांसाहार पर " उपवासक" ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे नौ दिनों के भूखे शेर के सामने बकरी!"और कहते हैं पशुओं के कटने के पीछे कोई और जिम्मेदार है। कहीं न कही यहाँ हिप्पोक्रेसी हैं जो अंदर कुछ और बाहर कुछ और!  हम लोग तो मैथिली ब्राह्मण हैं जो जगजाहिर मांस भक्षी हैं।माछ मांस के बिना तो कोई काजे संपन्न नही होता वो चाहे किसी का श्राद्ध हो, विवाह हो, या उपनयन हो। छागर की बलि अनिवार्य है, देवी प्रसन्न नही होगी।यहाँ तक कि इतनी श्रद्धा से मनाया जानेवाला " छठ पूजा"

मांगे थे कट्टा मिल गया एटमबम

"आज मोहन बाबू के पोते का मुंडन है ना! अरे! चंदर के बेटे का!बहुत मनौती से तो उसका जनम हुआ है।" बिहारी काका काफी खुश थे और धड़फड़ाये हजमा टोली मे जारहे थे। ई जो कमेसरा का बेटा है न! अब तो सैलुन खोल लिया है! बड़का हज्जाम का लंगड़ी बनता है। कल्हे से तीन बार समाध दे दिया पर आने का नामे नही ले रहा है। हां! बाप का जीवन तो खेते खेते  अगंव मांगते बीत गया और इसका भैलू बढ़ गया है!" " का करेंगे ! काका! पहिले का समय अब नही न रहा! सब का स्टैंडर्ड बढ़ गया है। और आब इतना धूमधाम से मुंडन और जनेऊ कौन कराता है? नवका लड़का लोगन के नजर मे इसका कोनो भैलू है? काहे इतना पैसा बर्बाद करते हैं आपलोग!"उपर से गांव मे हजाम, लोहार, बढई, पंडित ,ढोल पीपही वला के आगे पीछे घुमते रहिए! " कैसे आपको हमेशा छुट्टी मिल जाता है? सुने है नयका सरकार तो एकदम्मे टाइट कर दिया है। सबका हालत खराब है। उहां उन लोगों से बात होती रहती है जो साथे कंपटीशन की तैयारी दिल्ली मे करते थे।वो तो कह रहे है" मांगने गये थे कट्टा मिल गया एटम बम!' " देखो बबुआ! हमरा जेनरेशन तो ये धरम निभायेगा ही! तुम लोग भले ह