मंगरूआ की हिन्दी



मंगरुआ सबेरे सबरे गुरुजी को साइकिल पर भागते देख बोला" का हुआ गुरुजी आज कौन  छब्बीस जनवरी या पंद्रह अगस्त है कि इतना सबेरे प्रभात फेरी लगाना है या झंडा फहराना है"! गुरुजी बोले तुमको पता नही आज हिन्दी दिवस है और स्कूल मे गोष्ठी आयोजित किया गया है, उसी की तैयारी करनी है।
" इ हिन्दी दिवस क्या होता है? अपने देश मे न जाने कौन कौन दिवस मना लेते है  आपलोग? क्या होता है इसमे! हम तो रोजे हिन्दी बोलते हैं, लिखते हैं तो एक दिन काहे मनाये। हमलोगो के लिये तो हिंदी वर्ष और हिंदी जिंदगी है! ए सब आपलोग जैसे पढे लिखे लोगो के चोंचले है! हां! आपलोगो को हाकिम का आर्डर होगा, क्या करेंगे साहब लोगो का हुकुम मानना पड़ता है ना! फोटु वोटु खिचा कर भेजना होगा, है ना!  

गुरु जी बोले" काहे का तुम मेरा टाइम खराब कर रहे हो, तुम नही समझोगे! आज  के दिन हम लोग हिंदी भाषा बोलने, लिखने ,पढने का संकल्प लेते है, याद करते है अच्छे साहित्य को!" 
लेकिन गुरुजी हम याद तो उसको करते हैं ,जो मर जाता है।  जैसे हम अपने बाबू और बाबा का बरखी हरेक साल मनाते हैं या पितर पक्ष मे पिंडदान करते हैं तो  क्या हिंदी मर गयी है? काहे जिंदा चीज को मारने का पाप अपने सिर पर ले रहे हैं" मंगरूआ बोला। 
गुरुजी बोले" दिमाग का दही मत बनाओ तुम! तुम मेरे साथ स्कूल मे चलो और जो कहना है उसी गोष्ठी मे कहना"! 

मंगरुआ उर्फ मंगेश तिवारी हाईस्कूल पास नौजवान है,जो पैसे के अभाव मे आगे पढाई नही कर पाया और गांव मे ही खाद बीज का दुकान चलाता था। गुरुजी के निमंत्रण को वह ठुकरा नही सका और वहां क्या होता है यह जानने की ललक भी थी उसमे। 
बोला कितने बजे से है? 
गुरुजी " दस बजे", कहते तेजी से पाइडिल चलाते निकल लिए। जल्दी जल्दी दूकान खोलकर और राजू को कांऊटर पर बैठा कर दस बजे से पहले स्कूल पहूंच गया। यही  प्राइमरी सह मिडिल स्कूल था ,जहां से मंगेश ने पढाई की थी। यहीं पहली बार पांचवी क्लास मे ए, बी,सी डी पढना शुरु किया था,नही तो उससे पहले पहला क्लास मे कबिर काने क,  कानु न का ,हिरसे कि, दीरघुन की, पढना शुरू किया  था, पढते क्या थे ,सभी बच्चे चिल्लाते हुए सुर मे गान करते थे। वन ,टू, थ्री भी बाद मे ही पढा नही तो सभी दिन प्राइमरी मे छुट्टी से पहले वाले पीरियड मे, दूक्का दू, दू दूनी चार का पहाड़ा का उद् घोष करते  रहते थे और दूर खडे मास्टर साहब  खैनी चुनाते   मिनमिनाते रहते थे!। अब सुनते हैं एडमीशन के समय से ही ए, बी सी ,डी और ,वन टू थ्री पढाने लगते हैं। गुरुजी कहते हैं घर पर और क्लास मे अंग्रेजी मे बोलो,तभी अंग्रेजी की प्रैक्टिस होगी। उनको भी गुरुजी या मास्साब कहा जाना अच्छा नही लगता। सर, टीचर ,गुड मार्निंग, एटेंडेंस, लीव एप्लीकेशन  शब्दो  का प्रचलन बढ गया है।
 खैर! गोष्ठी का मंच और कुर्सियां सज चुकी थी। मंच पर प्रिसिपल साहब के साथ साथ दिव्यांशु शलभ, प्रतीक गौरव,पार्थ अच्युत सदृश भारी भरकम नामवाले महान साहित्यिक विभूतियां विराजमान थी ,जो एरिया के प्रकांड कवि  और, साहित्यकार माने जाते थे। माल्यार्पण और दीप प्रज्जवलन के पश्चात कार्यक्रम शुरु हुआ। कई वक्ताओं के पश्चात गुरुजी के कहने पर उद् घोषक महोदय ने मंगेश को बुला लिया कि इन्होने हिन्दी दिवस के औचित्य पर प्रश्न उठाया है, जरा इनको भी सुनिए। हिचकिचाते हुए मंगेश उठा और बोला
" देखिए साहब ! आपलोग प्रचंड विद्वान और मै निरा निपट मूर्ख! मुझे तो बस इतना जानना है कि पश्चिमी फैशन पर बर्थ डे, डूम्स डे, वेलेंटाइन डे, मदर, फादर,, सिस्टर, चिल्ड्रेन, डाटर आदि का डे मनाते तो सुना है पर क्या कभी अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच डे या  किसी देशी भाषा को ही पंजाबी, बंगाली, तमिल डे मनाते सुना है ? तो फिर हिन्दी दिवस क्यों? 
दिव्यांशु  जी बोले" आप नही जानते, हिन्दी संकट मे है, कोई बोलना नही चाहता, कोई पढना नही चाहता, कोई लिखना नही चाहता, हिन्दी मे मूल किताबें लिखनी कम हो गई है"!" 

"महाराज ऐसी बातें मत करिए! अभी उसी दिन चौराहे  पर कामेसर बाबू का लड़का जो दिल्ली रिटर्न है, बतिया रहा था कि कई लेखक अब  अच्छा लिख  रहे है  पर उनके पीछे आप लोग हुक्का पानी लेकर पड़ जाते हो कि ये क्या लिखा? अंग्रेजी शब्दो का उपयोग किया, शुद्ध हिन्दी नही लिख रहा है, गंवई भाषा मे लिख रहा है! अरे! भाषा तो वो ही है न जो बोली जाती है! क्या दिक्कत है जो वो आम बोलचाल की भाषा मे लिखता है! आज गांव गांव और शहरो मे भी किसी को बात करते देखिए, एक चौथाई शब्द गैर हिन्दी होता है, तो क्या वो गलत हो गया" । सही मे साहब लकीर का फकीर होना अच्छी बात थोड़े ही है! समय के साथ बदलना  चाहिए!, आम लोगो का एक्सेप्टेंस जरुरी है"! 
गौरव जी ने कहा" सही मे आज  जयशंकर प्रसाद,निराला जी,महादेवी वर्मा, पंतसाहब,दिनकर जी को कौन पढना चाहता है, ये लाइब्रेरी और शोध छात्रो के काम की चीज रह गयी है क्योंकि भाषायी क्लिष्टता बाधक है।
अभी एक साहब इसपर लड़ गये कि हिन्दी को हिंदी लिख दिया! अब ये तो छिद्रांवेष्ण ही तो है ,इससे भाषा को हानि हो रही है!  
मंगरुआ अक्का मंगेश तिवारी बोला" साहिब! आप सब बताओ ! कितने लोग अपने घरो मे मम्मी डैडी की जगह मां- बाबूजी  सुनना चाहते हो! " चंदा मामा दूर के पुआ पकावे गुड़ के"  की जगह "ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार  और जानी जानी यस पापा "पसंद करते है!आफिस और कालेज मे हिंदी बोलेगे तो गंवार कहलाने का डर लगता है!  अरे उस भाषा का क्या भविष्य होगा जिसके देश मे कई राज्यो मे अंग्रेजी मे बात करना पडे"! साहिब! कितना भी दिवस‌‌‌‌- विवस मना लो , जबतक ये मानसिकता नही बदलेगी , कुच्छो नही होगा!"  हमे देर हो रही है! दुकान पर गाहकी आयी होगी! आपलोग बेचिये हिंदी को , हम चले खादबीज बेचने । प्रणाम! 
 कहकर मंगरूआ चल दिया !  सारी गोष्ठी की ऐसी की तैसी हो गयी! एक हाईस्कूल पास आदमी बडे बडे विद्वानो को आईना दिखा गया!

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