पहाड़ों मे ट्रैफिक जाम
"हुस्न पहाड़ों का, क्या कहना कि बारहों महीने यहाँ मौसम जाड़ों का" ये फिल्मी गाने कभी हकीकत हुआ करते थे पर अब किस्से कहानियों का हिस्सा बनकर रह गये हैं।"आओगे जब तुम साजना, अंगना फूल खिलेंगे"! पहाड़ों मे लोग इसी तरह मैदानी लोगों का स्वागत करते थे, आज भी करते हैं क्योंकि उनकी आजीविका का साधन ही पर्यटन है। परंतु पहाडी सड़को पर ट्रैफिक जाम, होटलों ,गेस्टहाऊसों मे इकठ्ठी भीड़, मार्केट मे रश, ये जून के वीकेंड की तस्वीर है। शिमला मे प्रशासन को पानी की बढ़ती किल्लत के कारण आने से रोका है। नैनीताल मे इतनी भीड़ बढ़ गई कि गाड़ियों को काठगोदाम मे ही रोका जा रहा है। अभी पिछले सफर मे रास्ते मे कार की खिड़की खोलकर पहाड़ी ठंढी हवा का आनंद लेना चाहा तो एक जानी पहचानी दुर्गंध ,जो हमेशा दिल्ली, लखनऊ जैसे शहरी जिंदगी का हिस्सा बन गयी है, नथुनों से टकराई। झटपट कार की खिड़की बंद किया और एसी चालू किया। अब आप कहेंगे, पहाड़ो मे एसी ! जब एसी ही चलाना था तो पहाड़ मे क्यों गये थे? मुझे याद है 2013 मे मै शिमला गया था, वहां के होटलों मे पंखा नही लगा था, यहाँ तक कि पंखा को छत मे लगाने वाला हुक ही नही छोड़ा गया थ