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Showing posts from May, 2016

वामपंथी विचारधारा

ये वामपंथी विचारधारा के अस्तित्व की लडाई है! दक्षिणपंथ तथा वामपंथ के मध्य विचारो की लडाई पुरानी है और इन दोनो की लडाई के मध्य कांग्रेस का लगातार सता पर हावी रही! वामपंथ लगातार इतिहासकारो व विचारको के रुप मे देशवासियो की मनोदशा गढते रहे है!हमने जो अपने विचार बनाये है और इतिहास पढा है वह अधिकांश् वामपंथी इतिहासकारो द्वारा रचित है ! जाहिर है ये उंनकी सोच को प्रतिबिम्बित करता है! अब जब् दक्षिणपंथी सोच से प्रेरित इतिहास की पुनर्रचना का प्रयास किया जा रहा है तो ये उन्हे भला  कैसे बरदाश्त हो सकता है ? कांग्रेस ने हमेशा दलितो ,अगडो और मुसल्मानो की राज्नीति की जो उसकी हाथो से निकल कर क्षेत्रीय दलो और भाजपा के हाथो मे जा चुकी है! भारतीय राजनीति मे वामपंथी हमेशा से महत्वहीन रहे, बस बडे बडे विश्वविद्यालयो तथा काफी हाउसो मे सिमटे रहे! मूलत हिंदु काफी सहिष्णु होते है, तभी तो यहाँ सर्वधर्म समभाव और धर्मनिरपेक्ष सम्विधान है!परंतु आज जब हिंदुवादी सोच अपना अस्तित्व ग्रहण कर रही है तथा उसी सोच से इतिहास को देखने का प्रयास कर रही है तो इनके अस्तित्व पर खतरा महसुस हो रहा है! सरकार को विकासवादी सोच से भटका

ममता बडी या कानून ?

ममता बडी या कानून ?  ममतामयी मां किसी भी परिस्थिति मे अपने बच्चे को अपने से अलग होने देना नहीं चाहती, भले वह संतान स्वयं उसके कोख से जन्मी ना हो, उसने अपनी छाती का दूध तो पिलाया है ना।कल ऐसी ही एक मां से साक्षात्कार हो गया ,जो स्वयं की जनी तीन बच्चों के बाबजूद सडक पर पडी एक अनजान बच्ची को अपने सीने से चिपका ली थी।दो साल तक उसे पाला पोसा,दूध पिलाया, गू-मूत किया, हंसी-ठिठोली की,ऊंगलिया पकड कर चलना सिखाया।अचानक किसी को उसकी खुशी रास न आ ई और पुलिस को भेज दिया।हाय रे बेदर्दी कानून, उसे मां की ममता, बच्ची की खिलखिलाहट न दिखाई दी और उसे मां के आंचल से छीनकर बालगृह मे रख दिया।जिसका कोई नही उसका सरकार है परंतु उस बच्ची को तो ईश्वर ने एक मां दे दिया था ,फिर ये जुल्म क्यों? कहते है कानून अंधा होता है उसे प्यार, हमदर्दी जैसी भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं।अब बेचारी मां उसको पाने के लिए सरकारी दफ्तरों, लालफीताशाही, न्यायालयो के चक्कर काट रही है।जिला प्रोबेशन अधिकारी का कहना है, गोद लेने(adoption) का नियम है,40000 रु caution money जमा करो तब 2 साल के लिए बच्ची मिलेगी और गठित कमिटी मासिक रुप से निरी

विधायिका के अहं पर चोट

बिहार विधान सभा के अध्यक्ष श्री विजय चौधरी ने लोक सभा अध्यक्ष श्री मती सुमित्रा महाजन को पत्र लिख कर विधायिका के अधिकार क्षेत्र मे पुनः न्यायपालिका के हस्तक्षेप का मुद्दा  उठाया है।उन्होंने हाल के उतराखंड विवाद मे विधान सभा मे बहुमत परीक्षण का कार्य माननीय उच्चतम न्यायालय के नामित प्रशासनिक अधिकारी के निरीक्षण मे कराये जाने पर सवाल उठाते हुए लिखा है कि इससे विधायिका की गरिमा और प्रतिष्ठा का हनन हुआ है।वास्तव मे उनकी वेदना जनप्रतिनिधियों की अहं को दर्शाता है कि वे सर्वश्रेष्ठ हैं और उन पर कोई नियंत्रण नहीं कर सकता।उससे भी ज्यादा चोट इस बात से लगी है कि एक बाबू(आइ ए एस को शासन मे बाबू कहते हैं) ने उनके बहुमत परीक्षण का पर्यवेक्षण किया, यह सीधे सीधे मर्मस्थल पर आघात है, परंतु वो भूल रहे है कि संविधान सर्वोपरि है और न्यायालय उसका संरक्षक है।विधायिका की गरिमा स्वयं उसके सदस्यों ने गिराई है।वाकई मे भारतीय जनता कभी कभी उनके व्यवहार, सोच और सदनों मे वक्तवव्यो और कृत्यों को देखकर हतप्रभ रह जाती होगी कि क्या हमी ने इन्हे चुना है? सदन मे गाली-गलौज, मार-पीट, कुर्सी-टेबल आदि फेंकना, मोबाइल पर अश्ली

धरती के भगवान की चोखो कमाई

 " करीब बीस साल पहले की बात है जब मै अपने रुम पार्टनर के बिमार पिताजी को लेकर पहली बार एम्स गया था, इतनी भीड़ देखी की लगा" दुनिया मे कितना गम है ,मेरा गम कितना कम है!" डाक्टरों ने कहा किडनी फेल है डायलिसिस करानी होगी, यहाँ जगह नही है कहीं और करालो!" राजनेताओं और अफसरों की पैरवी थी नही तो उन्हें लेकर गंगाराम हास्पीटल गये। वहाँ एक दिन का खर्च उस समय लगभग पांच हजार बताया गया। बेचारे पांडेय जी ज्यादा सक्षम नही थे और दस दिन मे ही हिम्मत हार गये ,पिताजी को लेकर गांव वापस चले गये, उनके मरने का इंतजार करने के लिए।बड़ा या छोटा हास्पीटल ,सभी आपकी पाकेट की मोटाई की ओर देखता है। गर पाकेट मे है दम तो रख इधर वरना कचरे की तरह बाहर फेंक देते हैं, यहाँ मानवीयता मतलब कुछ नही।यह सही है कि  व्यवस्था में भ्रष्टाचार दीमक के समान देश की नींव को खोखला कर रहा है लेकिन सबसे बड़ी चिन्ता का विषय है कि जिन्दगी की जानलेवा बिमारियों से रक्षा करने वाले जब मौत का सौदागर बन जायेंगे ,तो क्या होगा?  धरती पर भगवान का दुसरा अवतार माने जाने वाले डाक्टर जब मरीजों को सिर्फ अपनी कमाई का जरिया मानने लगेंगे तो

शराब बंदी के साइड इफेक्ट

शराबबंदी के साइड इफेक्ट :-- बिहार मे शराबबंदी  जहाँ एक ओर बिगडती नस्ल को बर्बाद होने से बचा लेगा, वहीं दुसरी ओर अपराधों पर लगाम लगेगा,परंतु साइड इफेक्ट नीतीश सरकार को वोट बैंक की क्षति के रुप मे झेलना पडेगा।शराब व्यवसाय मे लगे लाखों कर्मचारी, सेल्स मैन, डीलरों के सामने रोजी रोटी की समस्या आ गई है तो राज्य सरकार के समक्ष आबकारी राजस्व की क्षतिपूर्ति हेतु वैकल्पिक स्रोत तलाशने की समस्या है।नेपाल, उतरप्रदेश, झारखंड एवं पश्चिम बंगाल से तस्करी बढ सकती है।अभी तो माफियाओं ने शराब का स्टाक जमा नही किया बल्कि जमीन के नीचे दबाकर रखा है।प्रवर्तन कार्य सख्ती से करने के बावजूद पंचायत चुनाव के दौर मे पाऊच, ताडी, स्प्रिट, भांग, नशे की गोली, गांजा,पेन किलर इंजेक्शन, कोरेक्स सीरप इत्यादि चुपके चुपके चल ही रहा है।अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहाँ करोडो लोग नशा का सेवन प्रतिदिन करते रहे हों, वहाँ शराबबंदी पश्चात मात्र कुछेक हजार लोग नशा मुक्ति केन्द्र मे भर्ती हुए हैं।निश्चित रुप से शराब के लती लोगों का एवं इस व्यवसाय से जुडे लोगों के बेरोजगार हो जाने से राज्य से पलायन का प्रतिशत बढेगा।वैसे इस शरा

सड़कें बन रही है जायंट किलर

 अचानक बगल मे चल रही ट्रक लहरायी और हमारे कार के साइड वाले पिछले हिस्से मे टकराई। कार नाइन्टी डिग्री पर घूम गई और सीधे ट्रक के आगे चली आई। ट्रक वाले ने ब्रेक मारने की कोशिश की फिर भी कार उसके साथ घसीटती लगभग पचास मीटर तक चली गई। उफ! वो क्या मंजर था! हम अपने सामने खुद को ट्रक के नीचे कुचलने जाते देख रहे थे। अब कार पलटी तो अब पलटी और ट्रक उस पर चढ जाएगी। जब ट्रक रुकी तो थोड़ी देर हम समझ ही नही पाये कि हम बच गये। गेट खोला तो वो खुल गया, गाड़ी अमित चला रहा था, मुझे लगा कि उसका पैर टूट गया होगा क्योंकि ट्रक के आगे की राड कार मे घुस चुकी थी। पीछे सुभाष बैठे थे। सभी बाहर निकल गये। मेरे देखते देखते ट्रक से एक लड़का निकल कर भाग गया वो ड्राइवर था जाहिर है उसे ट्रक चलाने नही आती थी। लेकिन सभी हमारी तरह खुश किस्मत नही होते! कार की जो हालत थी उसे देखकर कोई विश्वास नही कर सकता था कि इसमें कोई बचा होगा।आज काल का दूसरा नाम है सड़क दुर्घटना! सड़को के विस्तार एवं तेज रफ्तार की जिन्दगी मे पल-प्रतिपल मौत तीव्र गति से जिन्दगी से आगे निकल जा रही है।अंधाधुंध रफ्तार के साइड इफेक्ट मे प्रतिदिन जाने-अनजाने लोग लगात