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Showing posts from August, 2016

ऐसी बानी बोलिए...

"सत्यं ब्रुयात, प्रियम् ब्रुयात, अप्रिय सत्यम न ब्रुयात" एक जनाब कल्बे कबीर साहब है जिनके पीछे आज एक समूह लोटा बाल्टी लेकर पिल पड़ा, कहने लगे कबीर ,तुम मर जाओ! क्युं मर जाये भाई? अगर जुबान से कुछ निकल गया जो सही हो या गलत, अलग मसला है, पर क्या, उसके लिए यमराज महोदय को भैंसा और डोरी लिए दौड़ा दोगे!बेचारे सफाई देते फिर रहे हैं। लेकिन कहावत है जिसको जितना मरो मरो  कहते हैं, उसकी आयु उतनी ही बढती जाती है। पर यहां मसला जबान या बोली से है , सभी अपनी मनपसंद बात सुनना चाहते हैं और कोई उल्टा बोला कि ट्राल शुरु। तो संभल कर बोलिए।मेरे गांव मे बड़े बुजुर्ग कहते हैं ये जो जीभ है न, ये सम्मान भी दिलाता है और पिटवाता भी है, जिसने अपनी जबान और स्वाद पाने की इच्छा पर कंट्रोल कर लिया ,वह सफल रहेगा। अब हम देखते हैं ना बड़बड़िया और भरभरिया लोगो को! क्या पता कब, कहां और क्या बोल जाये! यही जबान है जिसने मौनी बाबा से देश पर शासन करवाया। वो बोलते ही नही थे  तो अच्छा क्या होगा या बुरा क्या? सब खुश! किसी को बुरी लगने वाली कोई बात ही कभी नही बोली। दस.साल शासन किया। लोग थक गये तो बहुत ही बोलने वाले को ले आये

दाना मांझी के बहाने..

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कल जबसे दाना मांझी को अपने कंधे पर अपनी पत्नी की लाश लादकर पैदल चलते दिखाया गया है तबसे मानवीय संवेदनाओं के पतन तथा सरकारी तंत्र के ध्वस्त हो जाने का क्लिप, वीडियो, परिचर्चा, लेख लगातार मीडिया मे छाया हुआ है! प्रश्न यह है कि दाना मांझी क्या पहला शख्स है जिसके साथ ऐसा हुआ? क्या सरकारी तंत्र की विफलता का तांडव इससे पूर्व चर्चा मे नही रहा है? क्या इससे पूर्व मानवीय संवेदनाओं पर प्रश्नचिन्ह नही उठाया गया है? क्या करेगा शासन प्रशासन ,उस जिम्मेदार पटल सहायक, कंपाउंडर का निलंबन और अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक के विरुद्ध, चार्जशीट? दो - चार दिन मीडिया मे बहस ,हो -हल्ला, सतारुढ दल को गाली, लोकल विधायक मंत्री को कला झंडा और घेराव, और कुछ दिन बाद सब शांत! इससे क्या होगा? क्या फिर से ऐसी घटना नही घटेगी?क्या हम सिर्फ तात्कालिक रियेक्शनरी बन गये हैं, घटना के तह तक जाने और उसका समूल निराकरण मे विश्वास नही करते?क्या कोई यह जानने की कोशिश कर रहा है कि दाना मांझी की गुहार किसी सरकारी कर्मचारी, अधिकारी ने क्यों नही सुनी?क्या किसी ने जानने की कोशिश की कि उस एम्बुलेंस की आखिरी सर्विसिंग कब हुई थी? उस ऐम्ब

कृष्ण-- एक महान गुरु

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"यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।" कृष्ण एक महान विश्व गुरु के रुप मे स्थापित हैं जिन्होने सिर्फ अवतार नही लिया बल्कि अपने प्रत्येक लीला, कर्म, ज्ञान, चमत्कार, उपदेश, दर्शन , अपनी कूटनीति और राजनीति से संपूर्ण मानव समाज को शिक्षा प्रदान किया है। जब-जब पृथ्वी पर पाप और अधर्म का बोझ बढ़ जाता है, तब तब ईश्वर विभिन्न अवतारो के रुप मे जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।उस काल मे दुष्ट राक्षस जब राजाओं के रूप में पैदा होने लगे, प्रजा का शोषण करने लगे, भोगवासना-विषयवासना से ग्रस्त होकर दूसरों का शोषण करके भी इन्द्रिय-सुख और अहंकार के पोषण में जब उन राक्षसों का चित्त रम गया, तब उन आसुरी प्रकृति के अमानुषों को हटाने के लिए तथा सात्त्विक भक्तों को आनंद देने के लिए कृष्ण का अवतार हुआ।जब जब समाज में अव्यवस्था फैलने लगती है, सज्जन लोग पेट भरने में भी कठिनाइयों का सामना करते हैं ।दुष्ट बढ़ जाते है और निर्दोष अधिक सताये जाते हैं तब उन सताये जाने वालों की संकल

अबूझ पहेली-जिंदगी

" मै पल दो पल का शायर हूं, पल दो पल मेरी जवानी है, पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है"मशहूर गायक मुकेश के ये गाने जब भी कानो मे पड़ते हैं, मन प्रफुल्लित हो जाता है ,साथ ही जीवन की क्षणभंगुरता भी दिख जाती है। ज़िंदगी बहुत  ही छोटी होती है। उसे यूं ही  जाया करना उचित नही है।मेरी समझ मे इक जिंदगी कम है इंसान के प्यार , दोस्ती, सद्भाव के लिए फिर इतनी छोटी जिंदगी मे नफरत और लड़ाई के लिए जगह कहां बचती है?इसलिए प्यार बांटते चलो! यह इक ऐसा पिटारा है जो बांटने से कभी कम नही होता बल्कि बढ़ता है । इस छोटे  से जीवन मे बहुत सारे काम करने होते हैं।इक दिन बिक जाएगा, माटी के मोल, जगमे रह जायेंगे ,प्यारे तेरे बोल। इंसान बच्चा से जवान होते हुए वृद्ध हो जाता है पर जीवन की डोर कब ,कैसै ,कहां टूट जाये कौन जानता है? जिंदगी का सफर है ये कैसा सफर, कोई समझा नही ,कोई जाना नही ! सभी इक अनजाने सफर मे चल पड़े है लेकिन हमसफर यदि मनोनुकूल हो तो रास्ता आसान और मनोरंजक हो जाता है।इसलिए अपने प्यार को पहचानिए। अपने जीवनसाथी के साथ दो पल तो बिताइये। जो अपने माँ बाप भाई बहन सगे संबंधी सब को छोड़ आप से रिश

गोद उठाई

तो उन्हे बुढापे मे भी गोद चढाई का शौक चर्राया है,कहते है इस स्थिति मे बचपन लौट आता है। माननीय  को अपने सिपाहियो को गोद मे देखकर क्लिक करने वाले की बाछें खिल गयी, अब तो लाटरी लगी समझो। इस क्लिक की इतनी जबरदस्त डिमांड है कि प्रत्येक चैनल, पेपर, मैगजीन वालो ने छापने के लिए और दिखाने के लिए स्टोरी तैयार कर ली। चार पांच पार्टी के बेरोजगार प्रवक्ताओं को तो ऐसे ही रोजगारोन्मुखी दृश्यो की तलाश रहती है।उन्हे तो बस फुरफुरिया चैनलो का एडवांस बुलावा आया ही रहता है। जल्दी जल्दी पावडर, स्नो लगाकर, जीट-जाट के साथ "गोद उठाई" प्रकरण पर व्याख्यान देने उपस्थित हो गये।धड़ाधड स्टोरी, क्लिपिंग, हिस्ट्री, तैयार हो रही है। एक चैनल ने तो उस महान फोटोग्राफर को समाज सेवा के लिए मैगसेसे अवार्ड देने की सिफारिश कर डाली जो सत्ता के सामंतवादी चेहरो को बेनकाब कर रहा था ।यह एक फोटीय क्रांति है जिसके द्वारा सत्ता के दुरुपयोग और अधीनस्थ कर्मचारियो के शोषण की दास्तान लिखी जाने वाली थी। बंगालियो ने कहा नही शिवजी बारात  के दुल्हे की तरह बाढावलोकन कर रहे हैं और जिस तरह दुल्हे को गोद मे उठाकर चलते हैं उसी तरह महाराज

बाल विवाह

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यदि सत्य है तो दु:खद है। क्या मनुष्य हैं हम ?वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि लगभग 30% लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की उम्र से पूर्व कर दिया जाता है जिसमे से लगभग 3% का विवाह 10 वर्ष से पूर्व हो जाता है। बडे़ ही शर्म की बात है ! यह समाज का कोढ़ है। इसके बावजूद यदि हमारे देश की बच्चियां देश का नाम रौशन करती है तो फख्र की बात है। हमे नाज होना चाहिए उनपर।सैकड़ो सालो से इस कुप्रथा के विरूद्ध लड़ाई लड़ी जा रही है। इस पुरुषवादी समाज मे महिलायें उपयोग की वस्तुयें है जिनका शादी मे इस्तेमाल किया जाता है। राजस्थान जैसे सामंतवादी समाज और  अन्य आदिवासी सदृश पिछड़े इलाको मे बाल विवाह धड़ल्ले से  किया जा रहा है।

बलूची तीर निशाने पर ...

""संयोगस्य ही भारतीयनाम् सर्व कार्यम भवति "" ये संस्कृहिन्दी (हिंगलिश का भांति) का जुगाडू श्लोक है!तो क्या ये संयोग ही है कि उधर भारत की ना-पाक संतान अपनी आजादी की वर्षगांठ कश्मीर  की आजादी के नाम करते है तो  इधर वैध उतराधिकारी रेड फोर्ट से "फिर बनायेंगे बलोचिस्तान "का नारा बुलंद करते  हैं। इस के बहाने पाक पर अटैक और उससे जन्मी देशभक्ति का भाव  सेंसेक्स (बुलियन) की तरह उपर की ओर  भाग रहा है। "जो भरा नही है भावो से बहती जिसमे रसधार नही ,वह हृदय नही वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नही।" राष्ट्रवाद सोने की दाम के तरह लगातार भागा जा रहा है, राजनीति की तरह विदेशी बाजारो का प्रभाव  है।  पहले कोई भी घटना मे  दबे छुपे विदेशी हाथ कहा जाता था, अब नया परिदृश्य है, जो कहते है सीना ठोक कर ! बलोच के बहाने कश्मीर ,चीन और विपक्षी दलो पर अटैक है। जब इंदिरा गांधी बंगलादेश बनवा सकती है तो मै बलोचिस्तान क्यो नही?   साठ साल को सात साल मे पाना है !हम क्या किसी से कम है ? अपनी इमेज तो" एक के बदले दस सिर काटने वाली "रही है वो तो विश्व नेता बनने के लिए शांति

कैसी आजादी??

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सुबह सुबह जब तैयार होकर झंडारोहण के लिए आफिस की तरफकदम बढाया तो लाजो की अम्मां अपने छोटे बेटे को सीने से सटाये सीधे सरपट जा रही थी। मैने कहा" लाजो और बेचन तो स्कूल गये  होंगे? नही साहब आज छुट्टी थी ! लाजो तो घर का काम काज कर रही है और उसके बाद खेत मे साथ मे काम करने आ जाएगी!  बेचन सबेरे ही चौक पर वो झंडा, टोपी, पिन सब बेचने गया है, आज और 26 जनवरी को थोडी़ ज्यादा बिक्री हो जाती है।"क्यों " मैने कहा" स्कूल क्यों नही । आज स्वतंत्रता दिवस है। उन्हे झंडोतोलन मे शामिल होने जाना चाहिए! कहां साहब! बड़ी मुश्किल से तो पेट काटकर उसे पढा रहे हैं। एक दिन छुट्टी मिली है! हाथ बटा देगी तो मजूरी मिल जाएगी। कापी कलम का खर्चा निकल आएगा। वहां जाकर क्या करेगी?  बेचन काफी दिन से इसका इंतजार कर रहा था कि आज के कमाये पैसो से नयी शर्ट खरीदनी है। पुराना वाला फट गया है, स्कूल मे सभी चिढाते हैं।कहां की आजादी और कैसी आजादी साहब? हम सब तो वैसे ही हैं सब दिन। जिस दिन मजूरी न करें, पेट मे अन्न का दाना नही जाएगा! क्या आज फ्री मे खाना देती है सरकार ? मैने कहा" कैसी बातें करती हो लाजो की अम्मां

खेलोगे कूदोगे होगे खराब....

पढुआ भैया आजकल तेजी से गिटपिटाने लगे हैं।सांझ होते ही स्टार स्पोर्ट्स के दो से लेकर पांच चैनल को रिमोट से उलटा पुलटी करने लगे हैं, शायद किसी पर पोडियम के पीछे भारतीय झंडा लहराते और जन गण मन की धुन बजते सुनाई दिखाई पड़ जाये। आज नौ दिन हो गया आंखे और कान तरस गये। बड़की भौजी कहते है आपके भैया ओलंपिया कर पगला गये हैं। हम कहे " भऊजी! ये नही कई और पढाकू, बुद्दिजीवी, मेहरारू पत्रकार भी अरना महीस की तरह भन्नाये फिर रहे है, जहां कोई लाल कपड़ा दिखा की दौड़ा लेते है। आप ही बताईए जिस देश मे" खेलोगे कूदोगे होगे खराब ,पढोगे लिखोगे बनोगे नबाब" सूत्र वाक्य हो वहां पर यदि कोई मेडल वेडल नही आये तो भुनभुनाने से क्या लाभ! पर कुछ लोग जो हमेशा गिटिर पिटिर करते रहते हैं उनके तो जैसे छाती पर मूंग दल रही हो। पढुआ भैया ! आप  भी जब स्कूल से बंक मारके खेलने चले जाते थे तो घर आके कितनी थूरईया होता था भूल गये क्या? आपके बाबूजी कहते " अरे अभागल कुछ पढ लिख लो ,नही तो घास छीलते रह जाओगे।!  मास्टर साहब बोलते" नवीन फुटबाल बड़ा अच्छा खेलता है, स्कूल की टीम की ओर से  पटना जाने दीजिए, मोईनुलहक स्टेडियम