मन के हारे हार, मन के जीते जीत....

कहते हैं जब आप किसी चीज की इच्छा करते है तो आपके चारो ओर एक वाइब्रेशन या तरंग निकलती है जो समान फ्रिक्वेंसी या इच्छित क्रिया या वस्तु से कनेक्ट कर आपकी इच्छा पूर्ति करती है। फिल्म"ओम शांति ओम "में नायक ओम कहता है" जब आप सच्चे दिल से किसी को चाहते हैं तो पूरी कायनात आपको उससे मिलाने की साजिश करता है"। यही बात पाऊलो कोएलो ने अपनी किताब "दि अल्केमिस्ट" मे भी  कही है। कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान स्वंय के अंदर एक कल्पवृक्ष छुपाये फिर रहा है और उसे मालूम नही। वह मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारा और गिरिजाघरो मे भटक रहा है।"कस्तुरी कुंडली बसै मृग ढूंढे बन माही!"आप जो चाह लोगे, ठान लोगे वो पूरा होगा। नेपोलियन बोनापार्ट, सिकंदर, महात्मा गांधी आदि जीवट वालो ने जो चाहा,.वो अंतत: पाकर के ही छोड़ा। सबकुछ हमारे अंदर है, खुशी, भय, हास्य, इच्छा, जैसा हम उसका उपयोग करें।एक धार्मिक ग्रंथ मे एक कहानी पढी थी  कि एक घने जंगल में एक वृक्ष था जिसके नीचे बैठ कर किसी भी चीज की इच्छा करने से वह तुरंत पूरी हो जाती थी।एक बार एक थका  हारा  इंसान उस वृक्ष के नीचे आराम करने के लिए बैठ गया और उसे पता ही नहीं चला कि कब उसकी नींद लग गई ,जब वह जागा तो उसे बहुत भूख लग रही थी ।उसने आस पास देखकर कहा ' काश कुछ खाने को मिल जाए ! तत्काल स्वादिष्ट पकवानों से भरी थाली हवा में तैरती हुई उसके सामने आ गई।उसने भरपेट भोजन किया और भूख शांत होने के बाद सोचने लगा,काश कुछ पीने को मिल जाए।तत्काल उसके सामने हवा में तैरते हुए कई तरह के शरबत आ गए। शरबत पीने के बाद वह आराम से बैठ कर सोचने लगा 'क्या यह चमत्कार है या कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा हूँ। कहीं हवा में से भोजन और पानी प्रकट होता है? ऐसा पहले कभी नहीं देखा न ही सुना था।अवश्य इस पेड़ पर कोई भूत  प्रेत रहता है जो मुझे खिला पिला कर बाद में मुझे खा लेगा,  ऐसा सोचते ही उसके सामने एक भूत आया और उसे मार दिया। जो सब उसने सोचा वो पूरा हो गया। स्वाभाविक है हम अच्छा बुरा दोनो सोचते हैं ।यह प्रसंग हमे शिक्षा देता है कि हमारा मस्तिष्क एक कल्प वृक्ष है और हम जिस चीज की प्रबल कामना करेंगे , वह हमको अवश्य मिलेगी।अधिकांश लोगों को जीवन में बुरी चीजें इसलिए मिलती हैं,क्योंकि वे बुरी चीजों की ही कामना करते हैं।हम भय से हार या कष्ट की कामना करते हैं तो रिजल्ट भी वही आता है। फिल्म" सुल्तान" मे डायलाग है "कोई तुम्हे तबतक नही हरा सकता, जबतक तुम खुद से न हार जाओ!" "हम  मन मे भय से बाजी हार जाते है , तो हमारी आधी शक्ति वैसे ही खत्म हो जाती है। बाली -सुग्रीव की कथा सबको ज्ञात है। बाली को देखते ही भय से सामने वाले की आधी शक्ति कम हो जाती थी ।इंसान ज्यादातर समय  नेगेटिव सोचता है, तो परिणाम भी नेगेटिव ही होते है। इसीलिए कहा जाता है" बी पाजिटिव"। हम सोचेंगे कहीं बारिश में भीगने से मै बीमार न हों जाऊं और  घर आते ही छींकने लगता है, बीमार हो जाता हैं। इंसान सोचता है ' कहीं मुझे व्यापार में घाटा न हों जाए और  यह दिमाग मे रखकर भय की आशंका मे गलतियां करता है,उसे घाटा हो जाता है।जब इंसान सोचता है ' मेरी किस्मत ही खराब है तो उसका सब - कांसीयस माइंड (अवचेतन मस्तिष्क) उसे गलती करने पर मजबूर कर देता है। उसकी किस्मत सचमुच खराब हो जाती हैं । जब इंसान सोचता है  कि कहीं मेरा मालिक मुझे नौकरी से न निकाल दे और भय से गलतियां करता है जिससे मालिक उसे नौकरी से निकाल देता है।खेल या जिंदगी का एक ही तरह का नियम है। यह माइंड गेम है। दिमाग से जीत हार होती है। जो मन से चाह लिया जीत गया, वरना हार गया।"चक दे इंडिया "का फेवरिट लाईन है "  वार करना है तो सामने वाले के गोल पर नही, सामने वाले के दिमाग पर करो, गोल खुद ब खुद हो जाएगा"। जीत हार सब कांसियस माइंड मे होता है। इसको आप जैसी फीडिंग करते है, वो आउटपुट वैसा ही देता है। " इस तरह आप देखेंगे कि आपका अवचेतन मन कल्प वृक्ष की तरह आपकी इच्छाओं को ईमानदारी से पूर्ण करता है ।इसलिए आपको अपने मस्तिष्क में विचारों को सावधानी से प्रवेश करने की अनुमति देनी चाहिए क्योंकि अगर गलत विचार अंदर आ जाएगे तो गलत परिणाम मिलेंगे। हमारा मस्तिष्क एक कंप्युटर है। इसके CPU मे जो साफ्टवेयर डालेंगे, वैसा ही रिजल्ट आयेगा। मनोनुकूल परिणाम  के लिए उसी तरह की प्रोग्रामिंग भी करनी पड़ती है। विचारों पर नियंत्रण ही अपने जीवन पर नियंत्रण करने का रहस्य है।  विचारों से ही आपका जीवन या तो स्वर्ग बनता है या नरक उनकी बदौलत ही आपका जीवन सुखमय या दुख:मय बनता है ।विचार जादूगर की तरह होते है ,जिन्हें बदलकर हम आप अपना जीवन बदल सकते है, जिनकी इच्छा शक्ति दृढ़ होती हैं,वे सांसारिक दौलत के नुकसान की कभी शिकायत नहीं करते।आप कभी घर के बाहर बैठ जायें और आसमान पर बादलों को गौर से देखें । आप उसमे जिस किसी आकृति की कल्पना करेंगे थोड़ी देर मे वही दिखने लगता है। इतना ही नही यदि आप गोधुलि वेला मे किसी अनजान रास्ते से जा रहे हो, और आपके मन मे अदृश्य शक्तियों का भय समा गया तो दूर धुंधलके मे आपको विचित्र विचित्र दृश्य दिखाई पड़ने लगते हैं। असल मे ये सब हमारी सोच या दिमाग की उपज होते हैं। हमारा दिमाग जो हमें दिखाना चाहता है ,वही हमें दिखता है।मन या दिमाग की शक्ति अपरंपार है। जाम्वन्त जी यदि हनुमान जी को उनकी शक्ति याद न दिलाते तो वे समुद्र नही लांघ पाते, वैसे ही हमे अपनी छुपी शक्ति को पहचानने की जरूरत है, जो दिमाग या सोचने से ही हो सकती है।"टेलीपैथी" मे मन की वास्तविक शक्ति निहित है।परमहंस योगानंद जी ने पुस्तक" योगी कथामृत" मे मन की शक्ति के अनेको प्रसंग का वर्णन किया है कि किस तरह उनके गुरूदेव महाराज उनसे टेलीपैथी के माध्यम से अपने संदेश पहुंचाते थे।लेकिन मन की शक्ति को पहचानना सबके बस की बात नही। " मन की बात" करना अलग बात है, अपने मन की करना भी अलग चीज है पर "मन से करना" ,अपने आप मे शक्ति का आरोपण है।

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