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Showing posts from November, 2018

हम छुपाते रहे इश्क है.......पुस्तक समीक्षा ..यूं ही

यूं ही कोई शायर या कवि नहीं बनता । कहते हैं" वियोगी होगा पहला कवि, आह से निकला होगा गान! लेकिन अपवाद भी होते हैं। यूं तो गीत गजल कविताओं का शौक पहले से हैं पर मैं इसके आयोजन- सम्मेलनों मे जाने से कतराता हूँ। मुझे इसतरह के पार्टी फंक्शनो मे कुछ असहजता सी महसूस होती है पर आज की शाम कुछ अलग थी। हालांकि गया था ये सोच कर कि मेरे जिलाधिकारी की पुस्तक का और उनके गीतों पर बने अलबम का विमोचन है, इसलिए मुझे जाना चाहिए, दूसरे जिस रिजार्ट मे यह आयोजन था, शायद उसको अंदर से देखने की ललक थी। लेकिन यहां तो माहौल मेरे सोच से परे था। उनके पुस्तक की रचनाओं को सुनकर यह समीक्षा लिखने को विवश हो गया।  डा. अखिलेश मिश्र, जिलाधिकारी पीलीभीत की कविताओं को अलबम के रुप मे इतने बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत किया गया कि मै झूम गया। नाम तो उनका कवि के रुप मे बहुत सुना था पर वाकई मे इतने अच्छे कवि हैं ये आज जान सका।बकौल शायर डा. कलीम कैसर " अगर उन्होंने जिद न ठानी होती तो यह पुस्तक रुप मे कभी न आ पाती क्योंकि फक्कड़ाना अंदाज और अलमस्त जिंदगी जीनेवाले डा. साहब के लिए अपने नज्मो को संजोकर माला मे पिरोना संभव नही थ

चौरासी----- समीक्षा

यूं तो " चौरासी" को काफी पहले पढ़ लिया था लेकिन समीक्षा लिखने के उहापोह मे कई दिन बीत गये। " त्रासदी यह है कि प्रेम हर मजहब का एक अंग है जबकि इसको खुद ही एक मजहब होना चाहिए था" उपन्यास का थीम लाइन है। लेफ्टिनेंट जनरल के एस बराड के " आपरेशन ब्लू स्टार का सच" पढने के बाद सत्या व्यास की "  चौरासी "को पढ़ना, मानो कंटीन्यूटी मे पढ़ रहे हों। बहुत सारे सवालों के जबाव पहले ही मिल चुका था। पर यह उपन्यास है और पहलेवाला इतिहास! इसका नायक" ऋषि "गदर फिल्म के नायक के सदृश बनते -बनते रह जाता है जिसमे इतना साहस नही है कि सन्नी देवल की तरह हैंडपंप उखाड़कर और सबके सामने से छीनकर  ट्रेन से अपनी प्रेमिका मनु को मोगा पंजाब से वापस ले आये,तो उसने चोरी से  गंगा सागर से भगा लिया! कहानी बहुत हद  तक मणिरत्नम की" बाम्बे"जो मुंबई दंगों के साये मे पनपे हिंदू - मुस्लिम नायक नायिका के मध्य प्रेम के समान ही है। गदर, बांबे और चौरासी तीनों मे नायक हिंदू ही है, बस चरित्र थोड़ा थोड़ा अलग है। छाबड़ा साहब  नायिका के टिपिकल बाप के रोल मे है, लेकिन गदर के अमरीश पुरी की तरह

पंख होते तो उड़ आते रे

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नौकरी की जद्दोजहद मे उलझे और पर्व त्यौहार मे अपनो के साथ न रह पाने का मलाल

नक्सलाईट

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गांव मे बदलते परिवेश की कहानी