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Showing posts from March, 2017

सेल्फ इनकम डिक्लेरेशन

होली तो धूम मचा कर चला गया और नये जोशखरोश के साथ नई रिजीम ने  अपना काम क्या करना शुरू की बहुतों की पैंट गीली होनी शुरू हो गई और हाजमा खराब हो गया। उनको तो विलीभे नही होता है कि ऐसा भी समय आ सकता है। " तुम्हें डर नही लग रहा है!इस तरह खुलेआम रिश्वत मांग रहे हो!" " क्या हुआ? कौन नही ले रहा है? किसका डर? अरे! कहीं भी जाओ, शिकायत करो , वो भी पैसा ही तो लेगा!" मृणाल बेफिक्री से बोला। " अरे! अब तो सुधर जाओ! सरकार सत्ता बदल गई है, यह वह सरकार है ,जहाँ भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस नीति है"! मैने उसे डराते हुए कहा। पर उस पर कोई असर मानो हो ही नही रहा था। " हु.ह.ह.. बड़ बड़ गेलन त गज्जू अएलन! तुमको क्या लगता है , ई जो पंद्रह साल से भूखायल लोग सत्ता का स्वाद चख रहा है, ऐसे ही बिना कमाये रह जाएगा! भूखा बंगाली खाली भात भात चिल्लाता है। उपर कुछ भी करे पर देखो न सेटिंग गेटिंग शुरू नही हो गया है"! "सही कहते ह़! उ जो भ्रष्टाचार है न! वो हमारे खुन मे फैल गया है। केतनो कोई प्रयास कर ले ,इसे समाप्त नही कर पायेगा. !"चोर चोरी से जाय हेराफेरी से न जाय&

होली है भई होली है

  "कक्का इस बार होली मे गांव नही गये क्या? बस मे बिहारी काका को बैठे देखकर मै आश्चर्य से बोला। " अरे! कहाँ गये इसबार! कल तो काउंटिंग ही खत्म हुई है। इसी मे लगे रहे।इसबार तो वैसे भी भगवा वालों की होली जमकर हो गई और बाकी सबकी मुहर्रम! इस साल यहीं देखा जाय।  और अब गांव हरेक होली मे जाना कहाँ हो पाता है।" गांव मे ही ही होली का मजा है, शहरी होली भी कोई होली है।कोई फाग गाता है? जानता भी नही! सब बनावटी हंसी लिए गले मिलते हैं ,न किसी को जानते ,पहचानते। होली के अगले दिन कहीं मिल जायें तो पहचानेंगे भी नही।  सब बनावटी है।"कहते हैं " होली के दिन दिल मिल जाते हैं"! पर यहाँ तो दिल मे ही मिलावट है ,क्या मिलेगा।    बोले" बेटा !होली तो बचपन की ही होती है बाकी तो बलजोरी होती है। एक दिन पहिले से लकड़ी ,गोड़हा, फूस का छप्पर खंभा चुराकर कर सम्मत(होलिका) जलाने के लिए जमा करना और रात मे बारह बजे के बाद सम्मत फूंक कर जलाना, काफी मजेदार था। रात भर वे लोग जगे होते थे जिनके दरवाजे पर जलावन के लिए गोबर को पाथकर " गोड़हा" बनाया गया होता था या फूस की छपड़ी या लकड़ी का "

गलतफहमी

" सर..र.रधुआ, मुंहझौंसा कहीं के, तोरा घर मे माय बहिन नै हय कि?" वह लगातार उसके सातों पुश्तों को अपने खुंखार और अश्रव्य गालियों से तारे जा रही थी।" अभिये सैंडिल उतार के मारेंगे तो होश ठिकाने आ जायेगा।बेटखौका के नाती बड़ा हीरो बनता है। लाइन मारता है। रुको! अभी तुम्हारा होश ठिकाने लगाती हूँ।" मनीष हक्का बक्का था कि हो क्या रहा है? ये लड़की उसे गाली क्यों दिए जा रही है? उसने तो कुछ कहा भी नही,कुछ किया भी नही! वो तो बस अपनी धुन मे गीत गाते और साइकिल पर हौले हौले पैडिल मारे घर की ओर लौट रहा था। " धीरे धीरे से मेरी जिंदगी मे आना, धीरे धीरे से दिल को चुराना"! आज मनीष जल्दी से घर पहुंचना चाहता था पर यहाँ तो ये दूसरा ही लफड़ा हो गया। उसे भूख लगी थी, आज सबेरे जल्दबाजी मे बिना कुछ खाये चला गया था। पर यह लड़की तो रास्ता घेर कर खड़ी हो गई थी और चिल्लाये जा रही थी। धीरे धीरे आस पास लोग इकठ्ठा हो रहे थे। " क्यों क्या हुआ? इसने कहीं छेड़ा तो नही? " ये मुझे देखकर गाना गाये जा रहा था और सीटी बजा रहा था!" अरे! नही नही! मैने तो इसको देखा भी नही ! बस मै गुनगुनाते हु

बोझ

" छुटकी तुम यहाँ बैठो! मै तुम्हारे लिए कुछ खाने को लेकर आता हूँ!" " ठीक है बाबू! थोड़ा जल्दी आना ! अकेले मे डर लगता है! छुटकी ने डबडबायीआंखो से अपने बाबू को देखते हुए कहा जो उसे मंदिर की सीढियों पर बैठाकर जा रहा था। " हां हां जल्दी आता हूँ ! घबराना नही!" घबराये कैसे नही वो नन्ही सी जान! आज पहली बार गांव से बाहर निकली है। बाबू ने कहा " चलो इसको शहर घुमा लाते हैं। पहले वह डरी क्योंकि अम्मा नही जा रही थी। पर बाबू ने कहा "नये कपड़े दिलायेंगे! छोटू के लिए खिलौने भी खरीद लायेंगे। बस क्या था बाबू की साइकिल के पीछे बैठ गई।शहर देखने की चाह और छोटू के लिए नये खिलौने लाने के उमंग मे वो अम्मा को बताना भी भूल गई कि वो शहर जा रही है। मंदिर की सीढियों पर बैठे बैठे उसे छोटू की किलकारी और छोटू के प्रति घर मे सबका प्यार याद आने लगा था। उसे तो घर मे अम्मा को छोड़ किसी ने प्यार नही किया। बड़की दाई तो हमेशा उसे बोझ ही कहती हैं।दाई हमेशा बिना बात के दुत्कारती रहती और मारती भी थी। वो उन्हें फूटी आंख नहीं सुहाती थी। बार बार वो  निहार रही थी,उस ओर जिधर उसके बापू छोडकर गये