प्रिपरेशन
बिहारी कक्का आज पूरे फार्म मे थे। जैसे लाठी सोंटा लेकर सरकारे पर पिल पड़े हों। "ऐसे ही हाल रहा तो कोई सरकारी नौकरी का नाम नही लेगा। अरे! काहे को इसके पीछे बिहारी, बंगाली और पुरबिया लोग पागल रहते हैं? जाब सिक्योरिटी? काहे को सिक्योरिटी ,पचास साल के बाद खोज खोज कर स्क्रीनिंग कर रहे हैं और जबरदस्ती रिटायरमेंट! अब तो ऊ कांसेप्ट ही तेल लेने चला गया कि केतनो बिगाड़े तो ज्यादा से ज्यादा क्या करोगे.. सस्पेंड? ऊ से क्या होता है? घूम फिरकर आयेंगे और बहाल हो जायेंगे, लेकिन ले लाठी! ई तो टर्मिनेट होने लगा! जबर्दस्ती रिटायरमेंट देने के लिए स्क्रीनिंग कर रहे हैं!" " काहे एतना फायर हो रहे हैं? सरकार तो चाह रही है कि ई जो सरकारी लालफीताशाही है ऊ समाप्त हो और सबमे एक्टिवनेस आ जाय! आखिरकार निजी कंपनियों से लोहा जो लेना है। कैसे वहां टारगेट ओरियंटेड काम लिया है, उसी तरह यहां हो। ऐसे मे अक्षम लोगो की स्क्रीनिंग जरूरी है न!" " तुम हमेशा बुड़बक ही रहोगे! सरकार नौकरियों मे लोगों को आने से हतोत्साहित कर रही है। अब देखो न! इतना ही नही, अब तो इहां भी काम करना पड़ता है! सुबह नौ बजे बायो