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Showing posts from July, 2018

प्रिपरेशन

बिहारी कक्का आज पूरे फार्म मे थे। जैसे लाठी सोंटा लेकर सरकारे पर पिल पड़े हों। "ऐसे ही हाल रहा तो कोई सरकारी नौकरी का नाम नही लेगा। अरे! काहे को इसके पीछे बिहारी, बंगाली और पुरबिया लोग पागल रहते हैं? जाब सिक्योरिटी? काहे को सिक्योरिटी ,पचास साल के बाद खोज खोज कर स्क्रीनिंग कर रहे हैं और जबरदस्ती रिटायरमेंट! अब तो ऊ कांसेप्ट ही तेल लेने चला गया कि केतनो बिगाड़े तो ज्यादा से ज्यादा क्या करोगे.. सस्पेंड? ऊ  से क्या होता है? घूम फिरकर आयेंगे और बहाल हो जायेंगे, लेकिन  ले लाठी! ई तो टर्मिनेट होने लगा! जबर्दस्ती रिटायरमेंट देने के लिए स्क्रीनिंग कर रहे हैं!" " काहे एतना फायर हो रहे हैं? सरकार तो चाह रही है कि ई जो सरकारी लालफीताशाही है ऊ समाप्त हो और सबमे एक्टिवनेस आ जाय! आखिरकार निजी कंपनियों से लोहा जो लेना है। कैसे वहां टारगेट ओरियंटेड काम लिया है, उसी तरह यहां हो। ऐसे मे अक्षम लोगो की स्क्रीनिंग जरूरी है न!" " तुम हमेशा बुड़बक ही रहोगे! सरकार नौकरियों मे लोगों को आने से हतोत्साहित कर रही है। अब देखो न! इतना ही नही, अब तो इहां भी काम करना पड़ता है! सुबह नौ बजे बायो

एडमिनगीरी

डिस्कलेमर का शुरू मे ही लिख देना ,इसलिए उचित है क्योंकि बाद मे लोग ये कहते हैं कि हम तो लाठी डंडा लेकर बस आपके पीछे दौड़ने ही वाले थे कि आपने डिस्कलेमर लिखकर हमपर सौ मन पानी डाल दिया। तो हय परे होशोहवास मे डिस्कलेमर लिखते हैं कि " आगे लिखे मे ( जो पता नही क्या है क्योंकि व्यंग्य लिखने आता नही और कथा इसे कह सकते नही, बस ये तो लंतरानी टाइप का कुछ है) किसी सज्जन के नाम से पात्र के नाम का मिलना एक दुखद संयोग है और मात्र इसी से आप रायल्टी पाने के हकदार नही हो जाते , और खुशफहमी के शिकार भी मत होईयेगा क्योकि जो हमारे परम श्रद्धेय शास्त्री जी महाराज आगे इसमे करने जा रहे हैं, उससे व्युत्पन्न प्रसिद्धि मे आपको रंचमात्र भी हिस्सा प्राप्त होने की गुंजाइश नही है। तो हमारे श्री श्री राजाराम शास्त्री जी ने बहुत दिनों के गहन मंथन पश्चात यह निर्णय लिया कि वह भी एक फेसबुक ग्रुप बनायेंगे।श्रीमान जुकरबर्ग जी ने इतना बड़ा प्लेटफार्म उपलब्ध करा दिया है तो कोई न कोई ट्रेन उस पर दौड़ानी ही चाहिए, भले ही वह " नेपलिया ट्रेन " ही क्यों न हो!  पांच साल रगड़ रगड़कर    " पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन" प

साहब हमहूँ सस्पेंड होईबे

निलंबित होना ऐसी दुर्घटना है जो प्राय सतर प्रतिशत कर्मचारियों के लिए सुकुन देनेवाला है। साहब ! काम काज तो हम वैसे ही नही करते पर ई जो सबदिन आफिस आने का जुलुम जो हम ढाह रहे हो ,अच्छा नही है। हमारी बद्दुआ देगी, कीड़े पड़ेंगे यदि अब जो अबसेंट लगाया! उपर से ई जो अंगुठा चेंपने वाला मशीन लगाकर तो हाइट कर दिए। अब कैसे सब दिन समय से आकर बायोमेट्रिक करेंगे। इससे आसान है सस्पेंड हो जाना। तो हो लिए ! कौन सा कठिन बात है और कौन काम पर फर्क पड़नेवाला है! " बने रहो पगला, काम करेगा अगला!" ऐसे सौभाग्यशाली सरकारी विभागों मे पाये जाते हैं जो "निलंबन" का उपयोग भी मौज के लिए कर लेते हैं। सरकारी सिस्टम मे कहा जाता है कि " सस्पेंशन इज नाट अ पनिशमेंट"! और यह होता भी नही है बल्कि यह इसलिए किया जाता है की पद पर रहते हुए वो कर्मचारी अपने विरुद्ध चल रहे जांच को प्रभावित न कर सके। यदि जांच पूरी हो जाने के बाद वह दोषी नही पाया जाता तो सवेतन और समस्त सुविधाओं सहित बहाल हो जाता है ।बस यहीं पर मौज है। सूरज भाई जी को अपना घर बनवाना था, अब इतने लंबे समय तक छुट्टी तो मिल नही पाती तो उन्होंने