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विस्थापित होने का भय

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   अपनी जन्मभूमि या अपने घरों से विस्थापित कर दिये जाने का दर्द भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों से ज्यादा कौन जान सकता है? देश विभाजन काल  से लेकर आज तक मास स्केल पर अपने घरो से बलपूर्वक विस्थापन काश्मीरी हिंदुओंं ने भी देखा है। विकास के क्रम मे नदियों पर बांधों के निर्माण के क्रम मे उसकी  पेटी के अंदर आनेवाले गांवों का विस्थापन लगभग सभी  नदियों के साथ हुआ है। लेकिन हम यहाँ एक ऐसे गांव के विस्थापन के संबंध मे बात कर रहे हैं जो वनभूमि पर बसे होने के कारण अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर जूझ रहा है।            ललई की उम्र लगभग पैंसठ वर्ष है। वह जनपद पीलीभीत से सटे उतराखंड के गांव बग्घा चौवन मै रहते हैं। यह गांव पीलीभीत टाइगर रिजर्व  के बार्डर पर स्थित है।वह इस गांव मे लगभग बीस वर्ष की आयु मे आया था। उसने यहाँ बंजर पड़ी वनभूमि को अपनी मेहनत से उपजाऊ बनाया । जहाँ चालीस पैंतालीस साल पहले सिर्फ बड़ी बड़ी झाड़ियाँ ही मात्र थी, आज वहाँ लहलहाती गेंहूँ की फसल है।वह बताते हैं कि उनके खेतों मे धान, गन्ना से लेकर सभी प्रकार की सब्जियां और मसाले तक उपज रहे हैं। परंतु वो चिंतित हैं क्योंकि सरकार उन्हें अपने गांव