बलूची तीर निशाने पर ...

""संयोगस्य ही भारतीयनाम् सर्व कार्यम भवति "" ये संस्कृहिन्दी (हिंगलिश का भांति) का जुगाडू श्लोक है!तो क्या ये संयोग ही है कि उधर भारत की ना-पाक संतान अपनी आजादी की वर्षगांठ कश्मीर  की आजादी के नाम करते है तो  इधर वैध उतराधिकारी रेड फोर्ट से "फिर बनायेंगे बलोचिस्तान "का नारा बुलंद करते  हैं। इस के बहाने पाक पर अटैक और उससे जन्मी देशभक्ति का भाव  सेंसेक्स (बुलियन) की तरह उपर की ओर  भाग रहा है। "जो भरा नही है भावो से बहती जिसमे रसधार नही ,वह हृदय नही वह पत्थर है, जिसमे स्वदेश का प्यार नही।" राष्ट्रवाद सोने की दाम के तरह लगातार भागा जा रहा है, राजनीति की तरह विदेशी बाजारो का प्रभाव  है।  पहले कोई भी घटना मे  दबे छुपे विदेशी हाथ कहा जाता था, अब नया परिदृश्य है, जो कहते है सीना ठोक कर ! बलोच के बहाने कश्मीर ,चीन और विपक्षी दलो पर अटैक है। जब इंदिरा गांधी बंगलादेश बनवा सकती है तो मै बलोचिस्तान क्यो नही?   साठ साल को सात साल मे पाना है !हम क्या किसी से कम है ? अपनी इमेज तो" एक के बदले दस सिर काटने वाली "रही है वो तो विश्व नेता बनने के लिए शांति का हाव भाव दिखाना पड़ता है, कहीं नोबल- वोवल का स्कोप बाद मे बन जाये! प्नयास करने मे क्या हर्ज है पर ये जो जनता है न! शांति की भाषा समझती ही नही! मिंया भी फंसे है हम भी फंसे! उधर भूट्टो का बेटा  पाक अधिकृत कश्मीर मे बोला" जो है मोदी का यार ,वो है देश का गद्दार"। तो नवाज के सुर बदल गये। आतंकवादियों की भाषा बोलने लगे तो  इधर से भी जबाव दिया जाना लाजिमी है।.दक्षिणी सागर मे अमेरिकी ट्रैप मे फंसे चीन के सुर भी बदले है, पहली बार "पाक प्रशासित कश्मीर की जगह " पाक अधिकृत कश्मीर " बोला है, संदेशा पहुंच गया शायद। तुम संभल जाओ ,दक्षिणी चीन सागर बचाओ या ग्वादर बंदरगाह।? तुम पी ओ के मे हस्तक्षेप करोगे तो ग्वादर भी जाएगा और अपने एरिया  में फजीहत होगी सो अलग।  दो विकल्प है पाक के पास, उनका अस्तित्व ही भारत विरोध पर टिका है, पटीदारी का मसला है, पहले लड़ झगड़ कर बंटबारा तो हो गया पर आरी -डरेर का मसला फंसा ही है, जितना मिला उससे संतोष नही था तो और हथियाने के लिए धावा बोल दिया, बस कुछ और जगह पूरब से टूट कर अलग हो गया। छटपटाहट वहीं की है, । सेना हावी है, जब जब जनता आक्रोशित होती है कश्मीर की लोरी गाकर सुला देते है" चंदा मामा दूर के ,कश्मीर लायेंगे तुड़ के, आप खाये ख्याली मे, हाफिज खाये प्याली मे, ख्वाब गया टूट, जेकेएल एफ गया रूठ""। रोज रात मे कश्मीर दिखाकर सुलाते है भाईजान। उधर चीन चले थे छब्बे बनने की,ना तो एन एस जी मिलेगी और ना पोक,संदेशा है साउथ ब्लाक का! हां साऊथ सी की तरफ देखना भी मत। पर पोक मे तिरंगा फहराने की हवा से रंग बेरंग हो गया। बलूच का तेल और भारत को अपने पड़ोस मे उलझाये रहने की साजिश नाकाम हुई लगती हे। पोक पर दावा तो ठीक, पर बलूचियों को आजादी का ख्वाब दिखाना कैसे जस्टिफाई करूंगे। "लड़के लेंगे आजादी, हमे चाहिए आजादी", को कैसे गलत ठहरायेंगे? विश्व नेता बनने की ख्वाहिश के रास्ते कश्मीर या बलोच होकर नही जाते।अपनी उग्र छवि के दायरे मे फंसे सरकार को न उगलते बन रहा है न निगलते। क्या करें?आपसी धींगा मुश्ती प्रायोजित कार्यक्रम नही कह सकते तो उसी इमेज को जीवंत रखने का प्रयास भर है, आखिर चुनावी दौर मे उतरना भी तो है? सच है कि पिछले दो सालों मे विश्व भर मे इज्जत ,प्रतिष्ठा बनी है और योजनाओ और विकास को एक नयी दिशा मिली है पर हम देशवासी चमत्कार की कल्पना मे विश्वास करते हैं । कभी संतुष्ट नही होते। राष्ट्रवाद के नाम पर चुने गये सितारे से अपेक्षाएं असीम है।अंतिम तीन साल मे मन की बात और लाल किले से अभी और रसधार बहेगी। मनोज कुमार की फिल्मो का दौर लौट सकता है या " भारत कुमार का जन्म हो सकता है।सहिष्णुता, राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता, क्षेत्रवाद को और गति और सपोर्ट मिलने की संभावना है।बलूची तीर भले ही निशाने पर लगा हो और पाक  व "सहिष्णु"?? लोगो की तिलमिलाहट दिख रही है पर हमारा बलूची अच्छा और तेरा कश्मीरी जायज नही ""कैसै? पुरानी राजनीति है कि कोई मेरे फटे मे टांग अड़ा रहा  हो तो उसके फटे मे टांग अड़ा दो! वह अपनी बचाने मे लगा रहेगा। चीन की नीति भी POK को लेकर यही नीति है,अमेरिका का साऊथ चाइना सी को लेकर रही है, भारत भी वही करने की कोशिश मे है पर यह उसकी छवि के अनुरूप नही  माना जा रहा है पर रेड फोर्ट से बोलने वाली की इमेज के अनुरूप अवश्य है।वह चाहकर भी अपनी उस इमेज को तोड़ नही सकते, क्योंकि ऐसा किया तो वहां से अगले पंचवर्षीय योजना मे दिखाई नही देंगे। देखते हैं बलूची तीर कहां पर रुकती है??

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