ऐसी बानी बोलिए...

"सत्यं ब्रुयात, प्रियम् ब्रुयात, अप्रिय सत्यम न ब्रुयात" एक जनाब कल्बे कबीर साहब है जिनके पीछे आज एक समूह लोटा बाल्टी लेकर पिल पड़ा, कहने लगे कबीर ,तुम मर जाओ! क्युं मर जाये भाई? अगर जुबान से कुछ निकल गया जो सही हो या गलत, अलग मसला है, पर क्या, उसके लिए यमराज महोदय को भैंसा और डोरी लिए दौड़ा दोगे!बेचारे सफाई देते फिर रहे हैं। लेकिन कहावत है जिसको जितना मरो मरो  कहते हैं, उसकी आयु उतनी ही बढती जाती है। पर यहां मसला जबान या बोली से है , सभी अपनी मनपसंद बात सुनना चाहते हैं और कोई उल्टा बोला कि ट्राल शुरु। तो संभल कर बोलिए।मेरे गांव मे बड़े बुजुर्ग कहते हैं ये जो जीभ है न, ये सम्मान भी दिलाता है और पिटवाता भी है, जिसने अपनी जबान और स्वाद पाने की इच्छा पर कंट्रोल कर लिया ,वह सफल रहेगा। अब हम देखते हैं ना बड़बड़िया और भरभरिया लोगो को! क्या पता कब, कहां और क्या बोल जाये! यही जबान है जिसने मौनी बाबा से देश पर शासन करवाया। वो बोलते ही नही थे  तो अच्छा क्या होगा या बुरा क्या? सब खुश! किसी को बुरी लगने वाली कोई बात ही कभी नही बोली। दस.साल शासन किया। लोग थक गये तो बहुत ही बोलने वाले को ले आये! ये बहुत ही बोलते है,देश मे बोलते हैं, विदेश मे बोलते है, लालकिले से बोलते है महीने मे एक बार " मन की बात" के बहाने बोलते हैं, काम क्या हो रहा है, भगवान जाने! जुबान ऐसी चीज है जो कंट्रोल मे न रखोगे तो फिसल जाएगी। ऐसे फिसलने वाले दिग्गी, गिरिराज, और बलिया वाले सिंह की कमी नही है! यह जबान ही है जो पति को विलेन तो अनजान सी गृहिणी पत्नी को नेत्री बना देती है!नरसिंहाराव ने भी इसी को हथियार बनाकर शासन किया। वाजपेयी  जी के वाक् चातुर्य से हम भली भांति वाकिफ हैं।कहते हैं गोयबल्स की बोली ने हिटलर को वह मुकाम दिला दी जो करोड़ो की ख्वाहिश होती है ,पर ऐसी जबान किस काम की जिसके चलते मौत का खतरा हो। ऐसी स्थिति मे मौन ही बेहतर है।  मैने कहीं एक कहानी पढी थी।"एक मल्लाह अपना काँटा डाले किसी तालाब के किनारे बैठा था। काफी समय बाद भी जब कोई मछली उसके काँटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने काँटा गलत जगह डाला हो और यहाँ कोई मछली ही न हो।उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके काँटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं।
उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँस क्यों नहीं रही है जबकि काँटे में चारा भी लगा है।वो सोचने लगा कि इसका क्या कारण हो सकता है ? वह सोच ही रहा था कि  वहां से गुजरते एक यात्री ने उससे कहा "लगता है आप यहाँ पर बहुत दिनों के बाद आए हो।अब इस तालाब की मछलियाँ काँटे में नहीं फँसती। इस पर उसने हैरानी से पूछा - क्यों, ऐसा क्या हुआ है यहाँ?यात्री बोला  कुछ दिनों पहले तालाब के किनारे एक बहुत बड़े सन्त आकर ठहरे थे। उन्होने यहाँ "मौन के महत्व" पर प्रवचन दिया था।उनकी वाणी  इतनी प्रभावशाली थी कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ उसे बड़े ध्यान से सुनतीं थीऔर तबसे जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए काँटा डालकर बैठता है तो ये "मौन' धारण कर लेती हैं।जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो काँटे में फँसेगी कैसे?  आप कहीं और जाकर काँटा डालो। उसकी बात मल्लाह की समझ में आ गई और वह वहाँ से चला गया।सन्त ने कितनी सही बात कही  कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे ..?यह बात मछलियों की तरह उन व्यक्तियों को भी समझ लेनी चाहिए, जो अपनी बकबक करने की आदत के चलते स्थान और समय का ध्यान रखे बिना अपना मुँह खोलकर औरों को भी मुसीबत में डालते हैं और खुद भी मुसीबत में फँस जाते हैं। कम बोलने का तात्पर्य है मीठा बोलिये! ऐसी बानी बोलिये मन का आपा खोय, औरो को शीतल करे आप हूं शीतल होय ! पर बरखा दत और अर्णव को कौन समझाये, यह तो उनकी कमाई का जरिया है, कुछ उल्टा पुल्टा बोलेंगे तो टीआरपी बढेगी और आमदनी भी। जितना लोग गाली देते हैं ,उतनी शक्ति बढती है काली जबान वालों की! जबान फिसलना और जानबूझकर फिसलाना अलग है। विवादित बोल बोलना आजकल शगल है।सिर्फ राजनेता ही नही अभिनेता भी, अपनी हरेक फिल्म के प्रीमियर से पहले कुछ ऐसा बोलेंगे कि माऊथ पब्लिसिटी मिल जाती है पर यह दांव कभी कभी उल्टा भी पड़ जाता है। न्यायाधीश काटजू भी पीछे नही हैं। लोगो ने अपनी जबान को राजनीति और धर्म मे रंग दिया है, तो धार वैसी ही निकलेगी ना!बयानबाजी ने ही कश्मीर का मसला उलझाया है तो नेपाल के साथ संबंध बिगाड़े हैं।बोली न हो गयी जैसे लागत करेजवा मे तीर!  कहते है" बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम तो हुआ न! तो बदनामी पाने के लिए  भी उलटबांसी बोलते है! जाते थे जापान पहुंच गये चीन! क्या बोला, खुद समझ मे नही आता। शोभा डे आउटडेटेड हो रही थी तो ओलंपिक पर बोल दिया, अब छा गयी सुर्खियों मे! राजा दिग्गी तो इस विधा के दिग्गज खिलाड़ी हैं।ज्यादा बोलने पर फंसने के ज्यादा चांसेज रहते है, कम बोलने पर आपका व्यक्तित्व भी रहस्यमय बना रहता हैं क्योंकि जितना ज्यादा बोलोगे ,लोगो के सामने खुलोगे। मध्यम मार्ग हमेशा श्रेष्ठ होता है।ना अधिक ना कम।" 

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