गोद उठाई

तो उन्हे बुढापे मे भी गोद चढाई का शौक चर्राया है,कहते है इस स्थिति मे बचपन लौट आता है। माननीय  को अपने सिपाहियो को गोद मे देखकर क्लिक करने वाले की बाछें खिल गयी, अब तो लाटरी लगी समझो। इस क्लिक की इतनी जबरदस्त डिमांड है कि प्रत्येक चैनल, पेपर, मैगजीन वालो ने छापने के लिए और दिखाने के लिए स्टोरी तैयार कर ली। चार पांच पार्टी के बेरोजगार प्रवक्ताओं को तो ऐसे ही रोजगारोन्मुखी दृश्यो की तलाश रहती है।उन्हे तो बस फुरफुरिया चैनलो का एडवांस बुलावा आया ही रहता है। जल्दी जल्दी पावडर, स्नो लगाकर, जीट-जाट के साथ "गोद उठाई" प्रकरण पर व्याख्यान देने उपस्थित हो गये।धड़ाधड स्टोरी, क्लिपिंग, हिस्ट्री, तैयार हो रही है। एक चैनल ने तो उस महान फोटोग्राफर को समाज सेवा के लिए मैगसेसे अवार्ड देने की सिफारिश कर डाली जो सत्ता के सामंतवादी चेहरो को बेनकाब कर रहा था ।यह एक फोटीय क्रांति है जिसके द्वारा सत्ता के दुरुपयोग और अधीनस्थ कर्मचारियो के शोषण की दास्तान लिखी जाने वाली थी। बंगालियो ने कहा नही शिवजी बारात  के दुल्हे की तरह बाढावलोकन कर रहे हैं और जिस तरह दुल्हे को गोद मे उठाकर चलते हैं उसी तरह महाराज पानी मे जा रहे है'" हमर शिवजी चलला बिआहे हे"। भक्तिरस मे डूबे भक्तो का विश्लेषण अतुलनीय और ऐतिहासिक हो गया।इधर प्राइम टाइम सभी राजनेताओं की पोल खोलने पर आमादा है कि कैसे बहनजी ने अपने अधीनस्थो को कुर्सी से नीचे बिठाया, कैसै एक आफिसर ने जुते का फीता बंधवाया,  कैसे छतीसगढ के एक आई ई एस ने अपने अर्दली से सैंडिल उठवाया, कैसे एक अधिकारी ने नेताजी के लिए खैनी बनाकर दिया, कैसे एक अधिकारी ने लेटे हुए नेताजी के चरण के पास बैठकर बातें की, कैसे बड़े बड़े आफिसर नेताओं की चरण वंदना कर रहे हैं। वुद्धिजीवी जो हमेशा उतर आधुनिकतावादी दृष्टिकोण से मनोरम दृश्य पैदा करते हैं वो कहते है" पी पी और सी सी अर्थात पांव प्रक्षालण एवं चरण चूमना ,नौकरशाही के प्रचलित शब्द हैं जिसका शब्द संक्षेपण कर मोडर्नाइज्ड कर दिया गया है", बिना इसके उन्नति और प्रगति संभव नही है। यह सरकारी बाध्यता है।एक पक्ष थोड़ा विशिष्ट वस्तुवादी है कि हो सकता है इसके पीछे यह उद्देश्य न रहा हो और मुख्यमंत्री जैसे वी वी आई पी को जल प्रवाह से बचाना उद्देश्य रहा हो पर " कुछ तो लोग कहेंगे, लोगो का काम है कहना"!तो  क्या मामा का हवाई भ्रमण की जगह पैदल भ्रमण उनपर भारी पर गया।उनकी मंशा के बजाय उनकी करनी प्रबल हो गयी। जो दिखता है वो बिकता है। तो जो भी मन आये वो करो पर फोटो खिंचवाने से बचो। बस यहीं चूक गये चौहान! तो झेलो फजीहत। पत्रकार बंधुओं का रिसर्च जारी है ,अभी अभी तो भूटान के राजा के बाढ भ्रमण की तस्वीर गूगल किया है, पता नही केन्या, फिजी, ग्वाटेमाला और आइ एस आई एस तक पहुंच जायें।एक पत्रकार बंधू तो "पाकीजा" के राजकुमार के डायलाग ले आये है" महाराज आके पांव एलीट किस्म के हैं ,इन्हे जमीन पर मत उतारिये ,मैलै हो जायेंगे"! कुछ तो इनके फोटो की फोटोशाप करके " शिवराज विसर्जन " का कैप्सन भी लगा दिया है। बेचारे मामा की कौन मति मारी गयी थी की गोद मे चढ़ने का शौक चर्रा गया। लोगो को इससे क्या कि उनके पैर मे स्टील की राड पड़ी है, इससे क्या कि तीन टर्म जनता ने उन्हे चुना है और 18 घंटे वो काम करते है!उन्होने गलती किया उन्हे हवाई सर्वेक्षण या विडियो मंगवा कर देख लेना चाहिए था। फिर भी हमारी सोच सामंतवादी और वर्चस्व वादी है, जो अधीनस्थो को नौकर समान ट्रीट करते हैं। यह नही मानते की इस लोकतंत्र मे सभी संविधान के नीचे काम करते और जनता की सेवा करने के लिए है। यह आदर्शवादी सोच लागू हो जाये तो सभी मंत्री, सांसदो, विधायको, अधिकारियो के घर बेगार खट रहे कर्मचारी बंधुआ मजदूरी से मुक्त हो जायें।पीपी, सी सी, गणेश परिक्रमा, चारण शैली, लल्लो चप्पो सब समाप्त हो जाय।

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