अम्मा का गांव

सुरेन की अम्मा जब जब शहर  आती तब तब उनका पहले से ही बी पी हाई हो जाता था। बच्चो को पहले से ही दादी का इंतजार लगा रहता, पत्नी तैयारी मे लग जाती कि अम्मां को कोई तकलीफ न हो, बच्चो के कमरे मे अलग बेड लगवा देता, छोटा घर था, अलग कमरा तो था नही ,फिर भी इतने इंतजाम करते की अम्मां को कोई तकलीफ न हो पर अम्मां थी कि रूकने का नाम ही नही लेती।सुरेन भी इस समय का बेसब्री से इंतजार करता था। इकलौता बेटा था वह, और अम्मा को हमेशा साथ मे रखना चाहता था,बच्चे दादी के साथ रहकर संस्कार सीखते थे और बीबी अनुशासन। जबतक बाबूजी थे ,उसे अम्मा की फिकर कम रहती थी, पर अब वो अकेली है। इतने प्यार से उसने घर बनबाया था शहर मे।अब जितनी औकात थी  या जितना लोन उसको ,तनख्वाह के आधार बैंक वालो ने दी थी, उतनी बड़ी ही बनबाते ना!इससे बड़ा घर वो अफोर्ड नही कर सकता था। अम्मा पहले से ही कहती " वो जो शहरो मे कबूतरो के दड़बो की भांति जो अपार्टमेंट मे लोग रहते है ,वह नही लेना। जब कभी घर बनाना जमीन खरीदकर बनाना।अपार्टमेंट का क्या है? ना धरती अपनी ना आकाश अपनी। कमरे से बाहर निकले तो दूसरे का। बड़ी मुश्किल से एक जमीन के टुकड़े पर आशियाना बनाया, पर वो अम्मा को पसंद नही था। अम्मा कहती दड़बे मे रहते हो, संकरी गलियां है,आगे नालियां बजबजाती रहती है, हमेशा दुर्गंध आती रहती है! गांव मे इतना जमीन जायदाद है,इतना बडा़ मकान है, कोई रहने वाला नही है, दुसरे लोग जमीन कब्जा कर रहे हैं पर इनको तो शहर मे रहना है।गांव मे रहकर खेती बारी करते ,सब एकसाथ रहते।, तुम्हारे बाबूजी की आत्मा को भी शांति मिलती। पर तुम्हे और तुम्हारी बीबी  को तो शहरी जिंदगी अच्छी लगती है!"क्या करूं अम्मा नौकरी है, बच्चो को पढाना लिखाना है गांव मे क्या रखा है? अब सब तो शहर मे ही रहते हैं। यहां बिजली है, पानी है, अस्पताल है, बड़े बड़े बाजार है, सब सुविधा है। तुम भी बिमार रहती हो, गांव मे सही से इलाज नही हो पाता, यहां कितने अच्छे डाक्टर सब हैं। "देखो बेटा! हम गांव मे कितना स्वस्थ रहते हैं ! मै तो यहीं आकर बीमार पड़ जाती हूं। मुझे तो गांव मे ही अच्छा लगता है, वहां की आबो हवा कितनी अच्छी है,वो तो बच्चो के साथ रहने की इच्छा होती है तो चली आती हूं वरना कहां वो खुला खुला घर आंगन और कहां यह तुम्हारा तीन कमरों का दड़वा" ! सुरेन चिढ जाता था। अम्मां कहती "वहां सभी हमको तुम्हारे बाबूजी के नाम से पहचानते है, सब बड़की काकी, भौजी, दादी के नाम से पुकारते है पर यहां कौन जानता है। वहां सुबह शाम आने जाने वालो की भीड़ लगी रहती है, महिलाये जुट जाती है,बतियाते बतियाते तो दोपहर कट जाता है, शाम मे बच्चे खेलने चले आते है दालान पर तो उन्हे देखती रहती हूं।उन्हे पानी देती हूं तो लगता है जैसे किशन और श्रुति को पानी पिला रही हूं। यहां किसके पास है मेरे से बात करने, दो पल मेरे साथ बैठने  की फुर्सत । मोहल्ले मे एक दुसरे कोई जानता नही, कोई एक दुसरे के घर जाता नही, पार्क मे सब घुमने जाते है पर सब अपने मे मस्त। किसी के पास दूसरे के लिए समय नही कोई एक दूसरे को नाम से नही बल्कि मकान नंबर से जानते हैं। सुरेन भी सच्चाई से मुंह नही मोड़ना चाहता था। वह जानता है कि जितना अकेलापन शहरो मे है उससे वह खुद ऊब चुका है।बच्चे भी एकाकी जीवन जीने लगे है।श्रुति और किशन स्कूल से आने के बाद सिर्फ टीवी पर नोमिता, डोरेमोन और छोटा भीम मे लगे रहते है या मोबाइल पर गेम मे।पत्नी भी दिनभर किचन या बच्चो मे लगी रहती थी। शाम थका हारा जब आफिस से आता तो दो पल पत्नी और बच्चो से बात करता फिर कंप्युटर बैठ जाता अगले दिन की आफिस का बचा काम करने को। वोतो अम्मां आ जाती थी थोड़ा चहल पहव बढ जाती थी और लोग उनका मन लगाने के लिए ज्यादा समय देने लगता ।  अम्मा कहती  ईश्वर करे मेरी मौत गांव मे ही हो, यहां तो मर जाऊं तो चार आदमी कंधा देने वाले भी ना मिलेंगे। अभी पिछली बार जब मै आयी थी 14/25 बी वाले मल्होत्रा जी के पापा का देहांत हुआथा। कितने लोग आये? आस पड़ोस मिलाकर 21 लोग! वो भी सिर्फ फार्मलिटी मे, लाश अर्थी पर नही "स्वर्ग विमान' मे गयी! न बाबा ना! यहां नही जलाना मुझे! मर भी जाऊं तो गांव ही ले चलना मुझे! तुम्हारे बाबूजी के पास मे ही जलाना! सुरेन रोने लगता" क्यो ऐसी बाते करती हो अम्मां! अभी तुम्हे बहुत दिन जीना है, अभी श्रुति और किशन की शादी देखनी है तुम्हे! कहते है परपोते को गोद मे बिठाकर खिलाने से स्वर्ग मिलता है!अम्मा लाड़ जताते कहती" रो मत पगले! सबको एक दिन जाना होता है और मै कहां अभी ही मरे जा रही हूं। पर मेरा दिल गांव मे ही बसता है। भले ही जब किशन और श्रुति का मुखड़ा देखने को तरस जाती हूं तो यहां दौड़ी चली आती हूं पर दस दिन मे शहर काटने को दौड़ता है"! सुरेन लाख समझाये कि अम्मां तुम जब यहां नही रहती तो हमेशा ध्यान तुम्हारा लगा रहता है, कुछ हो गया तो तुम्हे देखने वाला कौन है वहां? दूसरे सब लोग टान्ट भी करते है कि इसकी अम्मा बुढापे मे अकेले गांव मे रहती है, इसकी पत्नी से अम्मा की नही पटती, खर्चे के डर से अम्मां को साथ नही रखता, गांव मे भी सब खिल्ली उड़ाते है पर तुम मानने को तैयार नही। अब शहर को मै गांव तो बना नही सकता और ना ही बच्चो की पढाई लिखाई और अपनी नौकरी छोड़कर गांव आ सकता हूं, तुम अब गांव न जाओ ,यहीं रहो। अम्मां कहती" बेटा ! अभी मेरा हाथ पैर काम कर रहा है, जब लाचार हो जाऊंगी और कोई पानी भी देने वाला नही रहेगा तब तो मजबूरी है कि तुम्हारे साथ शहर मे रहूंगी ही,अभी गांव नही छोड़ूंगी।गांव मे मेरी आत्मा बसती है, तुम भले ही अपनी आत्मा मार चुके हो, मै नही मार सकती। सुरेन सोचने लग जाता क्या अपनी आत्मा को मार कर वो वाकई मे खुश है?

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