कृष्ण-- एक महान गुरु

"यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।"
कृष्ण एक महान विश्व गुरु के रुप मे स्थापित हैं जिन्होने सिर्फ अवतार नही लिया बल्कि अपने प्रत्येक लीला, कर्म, ज्ञान, चमत्कार, उपदेश, दर्शन , अपनी कूटनीति और राजनीति से संपूर्ण मानव समाज को शिक्षा प्रदान किया है। जब-जब पृथ्वी पर पाप और अधर्म का बोझ बढ़ जाता है, तब तब ईश्वर विभिन्न अवतारो के रुप मे जन्म लेकर पृथ्वी पर अवतरित होते हैं।उस काल मे दुष्ट राक्षस जब राजाओं के रूप में पैदा होने लगे, प्रजा का शोषण करने लगे, भोगवासना-विषयवासना से ग्रस्त होकर दूसरों का शोषण करके भी इन्द्रिय-सुख और अहंकार के पोषण में जब उन राक्षसों का चित्त रम गया, तब उन आसुरी प्रकृति के अमानुषों को हटाने के लिए तथा सात्त्विक भक्तों को आनंद देने के लिए कृष्ण का अवतार हुआ।जब जब समाज में अव्यवस्था फैलने लगती है, सज्जन लोग पेट भरने में भी कठिनाइयों का सामना करते हैं ।दुष्ट बढ़ जाते है और निर्दोष अधिक सताये जाते हैं तब उन सताये जाने वालों की संकल्प शक्ति और भावना शक्ति उत्कट होती है और सताने वालों के दुष्कर्मों का फल देने के लिए भगवान का अवतार होता है।दशावतार मे कृष्ण का अवतार मानवीय लीलाओं का प्रकटीकरण है। यद्पि उन्हे हमेशा ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण और चमत्कार दिखलाते दर्शाया गया है पऱंतु उन्होने तात्कालिक समाज की अच्छाई और बुराईयो से स्वंय को अलग कभी नही दिखाया है। एक तरफ वो दार्शनिक हैं तो दूसरी ओर छल, कपट,अपहरण,योद्धा के साथ महान कूटनीतिज्ञ के रुप मे सामने आते है।कृष्ण के ब्रह्मसुख का प्राकट्य एक जगह पर होता है और उसका पोषण दूसरी जगह पर होता है। श्रीकृष्ण का प्राकट्य देवकी के यहाँ हुआ है परंतु पोषण यशोदा माँ के वहाँ होता है।कहते हैं सरोगेसी का सबसे बड़ा उदाहरण यह प्रकरण था। "रे कन्हैया! किसको कहेगा तु मैया। एक ने तुझको जन्म दिया रे , एक ने तुझको पाला"!यशोदा- कन्हैया का प्रेम पोषक मां के प्रेम का अद्भुत उदाहरण है। " यशोमती मैया से बोले नंदलाला, राधा क्युं गोरी, मैं क्यूं काला "! यह संवाद सहित गीत रोचक और बाल सुलभ कौहुलता का अप्रतिम उदाहरण है। भोले भाले बच्चो के द्वारा की गयी माखन चोरी , चोरी की श्रेणी मे नही आता।"मैया मोरी मैं नही माखन खायो, ग्वाल बाल सब वैर पड़े हैं बरबस मुख लपटायो", कितना भोला तर्क है। भगवान के अवतार के समय तो लोग लाभान्वित होते ही हैं किंतु भगवान का दिव्य विग्रह जब अन्तर्धान हो जाता है, उसके बाद भी भगवान के गुण, कर्म और लीलाओं का स्मरण करते-करते हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी मानव समाज लाभ उठाता रहता है.! कृष्ण और राधा की प्रेमलीला  मानवीय प्रेम और अफेयर को सांस्कृतिक और धार्मिक वैधता प्रदान करता प्रतीत होता है।" नदिया किनारे, मोहे नंदलाल छेड़ गयो रे"!विवाह पुर्व प्रेम और विवाह पश्चात पुर्व संबंधो को अपने वैवाहिक जीवन के मध्य न आने देना, उनकी समाज को सीख है।नारी मात्र के प्रति उनका सम्मान और द्रौपदी को दुष्ट दुशासन के बलात् चीरहरण से बचाना, हमेशा से नारियो के सम्मान रक्षा के प्रति सचेष्टता का दर्शाता है।कहते संपूर्ण महाभारत की प्लानिंग और उसे एक्जक्युट करना, उन्होने ही किया था और यह सब पृथ्वी को दुष्टो के भार मुक्त करने के लिए था।श्रीकृष्ण 'युग पुरुष' थे।कृष्ण उस युग मे इनोवेशन के प्रतीक थे, गोवर्धन पूजा प्रारंभ करवा कर डर के बजाय उपयोगिता को भक्ति का आधार बनाया, द्वारिका नगर बसाकर एंव खांडव प्रस्थ की जगह इंद्रप्रस्थ बसवाकर पौराणिक "स्टार्ट अप" कु शुरुआत की। अर्जुन को नये अस्त्रो की खोज मे भेजकर रिसर्च को प्रेरित किया साथ ही जब युद्ध मे हार रहे पांडवो को भीष्म पितामह के पास  भेजकर उनके द्वारा दिए गये "विजयी भव' का आशीर्वाद लौटाने को कहा तो स्वंय पितामह ने उन्हे विजय का रास्ता बताया।अज्ञातवास काल मे वेश परिवर्तन कर निवास कराया। उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न 'राजनीतिवेत्ता' ही नही, एक महान 'कर्मयोगी' और 'दार्शनिक' प्राप्त हुआ, जिसका 'गीता ' ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है । श्रीमद्भागवतगीता" विश्व मानव जाति के लिए अपूर्व दर्शन है जो आत्मा-परमात्मा-जीव- ईश्वर के अद्वीतीय संबंधो का विश्लेषण है।"जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान, ये है गीता का ज्ञान"! कर्म-फल सिद्धांत का अद्भुत प्रवचन और विश्लेषण! कृष्ण आज भी समसामयिक, सर्वग्राह्य, अनुकरणीय है।आज का विश्व भी दुष्टता, क्रुरता, अधर्म, चोरी, अपहरण, हत्या, बलात्कार,, डकैती, संप्रदायवाद, आतंकवाद, हिंसा, हाइजैक, लूटपाट,इत्यादि से पीड़ित होकर त्राहिमाम् त्राहिमाम् कर रहा है। लोक लाज बचाने के लिए कल्कि अवतार का इंतजार कर रहा है पर कृष्णावतार की आवश्यकता है, जो फिर से महाभारत  आयोजन करे, जो लोक लाज बचाने के लिए हमेशा उपलब्ध रहे, जो धर्म और न्याय के पक्ष मे खड़ा रहे, जो आवश्यकता पड़ने पड़ हाथो मे रथ का पहिया लेकर लड़ने निकल पड़े, जो एक तरफ शांति प्रस्ताव लेकर जाये तो दूसरी ओर युद्ध क्षेत्र मे मोहित और भ्रमित अर्जुन को दर्शन ज्ञान की शिक्षा भी दे! आज  भी उसी विश्व गुरु का इंतजार है!(जन्म दिवस पर विशेष याद)
"कहो कृष्ण कब आओगे? कब आकर इस पावन धरा को, पाप से मुक्ति दिलाओगे।त्रस्त हो गयी आर्यावर्त की संताने, अभिशप्त हो गयी हैं बहनें,,आकर मोक्ष दिलाओगे। कहो कृष्ण कब आओगे ?

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