लाजबाब मिथिला

विदेह राजा जनक के संतान मैथिल लोग न, सबेरे सबेरे स्नान-ध्यान पूजा, चंदन-टीका लगाके, जोर जोर से शंख फूंक के उठते हैं , चौक-चौराहा पर पहुँच के कल्ला मे पान दबा के जोर से डकार मारते हुए पेट हसोरते हुए ,बोलेंगे आज पिंकिया के माय बहुत खिया देलकई!।भात  मांछ इनका प्रिय  भोजन है! कहते है भात खाने से पेट भारी होता है और दिमाग concentrate  करता है! शायद इसी से दिमाग काफी तेज होता है!भले ही काम धाम कुच्छो न  हो, भर दुपहरी दनान पर बैठकी लगाके ताश खेलना और हाहा-हीही चालू।दुनिया भर की बाते, अमेरिका से लेकर झुमरी तलैया तक!सब कुछ इन्हे पता है! पेपर रोजाना पढते है और ,बीबीसी  सुनते है! अब तो घर घर मे डिश एंटिना लगवाकर   एनडी टीवी से लेकर टाइम्स नाउ तक देखते है!एक से एक राजनीति पर चर्चा होती रहती है! बडे वुद्धिजीवी है ये, खुब मछली मांस खाते है और मस्त रहते है!कहते है" मिथिला के कि पहचान , मछली ,दही, पान मखान!,  घर पर रहने वाले  भी खेती नही करेंगे , कहते  कि यदि ब्राह्मण हल का मुठ पकड लेगा तो अकाल आ जायेगा! बडे ही धार्मिक होते  है,बिना पुजा पाठ के पेट मे अन्न नही डालते! वो तो नितिसवा ने गाव गाव शराब का भट्ठी खुलवा कर नस्ल बिगाड दिया था! वो भी अब बन्द हो गया! लेकिन ये अपने बच्चों को खूब पढाते हैं,और कॉई विकल्प भी नही है, चाहे घर-दुआर ही क्यों न बेचना पडे और पढायेंगे भी तो दिल्लीये मे, थोडा रिपुटेशन बढ जाता है न समाज मे! फलनवां के बेटा दिल्ली आइएएस बनने गया है।घटक-वर्तुहार के लाइन लग जाता है, इ टैग लगने से!  और चुनाते भी खुब है आई एएस मे! गांव गांव मे अफसर मिलेंगे! एक कहानी चलती है उधर कि एक बार एक महिला डीएम किसी गांव से होकर जा रही थी, अचानक उनकी कार एक गड्ढे मे फंस गई तो उन्होने अपना अर्दली भेजकर पास ही मडैया मे ताश खेल रहे लोगो को बुला लाने को कहा! मडैया मे 5-6 लोग गंजी और धोती पहने और पान चबाते ताश खेल रहे थे,उन्होने कहा मैडम को आने के लिये बोलो,आदमी बेज कर कार  निकलवा देते है!  मैम ने जब सुना वे ग्रामीण उनको कोई वैल्यु नही दे रहे है तो तमतमायी हुई आयी! एक अधेड ने कहा मैडम गुस्सा थूक दीजिये  और आराम से बैठिये! हमलोग भी सीनियर आईएएस ही है! कोई आंध्रप्रदेश तो कोई केरल तो कोई तमिलनाडु मे  सचिव है! डीएम साहिबा पानी पानी हो गयी! एसेहै मैथिल गांव के किस्से! खैर और कोई धंधा पानी तो है नहीं तो सब नोकरिये मे जायेंगे, नही तो और क्या करेंगे ?।  वैसे सभे नौकरी मे इ प्रजाति के जीव आपको मिल जायेंगे ! देश विदेश मे इनका जलवा है!  पुरे विश्व मे कही भी यदि छठ के समय डाला, चंगेरा,और बरसाइत मे बांस का बेना लिये कोई मिल जाये तो समझो उसी प्रजाति का है!चाहे कही भी रहेंगे छठ मे गांव जरूर जायेंगे, चाहे ट्रेनो मे कितना धक्का खाना पडे!अब तो समुद्र को भी नही छोडा है, वहा भी धुनी रमा दिये है!खैर मंडल कमीशन ने जब से सरकारी नौकरी मे घुसने का आप्शन कम कर दिया तो मीडिया क्षेत्र मे घुसपैठ शुरू हो गई। जो एकबार तैयारी के लिए दिल्ली गया फिर लौटा नहीं, भले ही उसे पहले साल मुखर्जीनगर,दूसरे साल नेहरू विहार, तीसरे साल गांधी विहार होते हुए अंत मे गोपालपूर जेजे कालोनी तक शिफ्ट होना पडे ,रहेंगे वहीं! फिर या तो कडकडडुमा कोर्ट मे काला कोट पहिने मिलेंगे या हाथ मे कलम लिए न्युजडेस्क पर या माइक लिए बाइट लेते हुए फुरफुरिया चैनल पर। बहुत से बंधू तो फ्रस्टेट भी हो गए क्योंकि गये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास! फिर भी ये लोग मीडिया हाऊस,पोलिटिकल पार्टी, फिल्में, या कोचिंग संस्थान, सब जगह अपनी उपस्थिति बनाए है।विद्वता मे कोई कमी नहीं पर मोंछ कटा के नचनिया बनने वालों की भी कमी नहीं।कुछ जो लौटके बुद्धू घर को आये वो सिर्फ गाली देंगे, सिस्टम को, आयोग को, बिहार को, मैथिली को मैथिल को ।बाते ओबामा से कम की नही करेंगे !जो कभी स्वयं शुद्ध अंग्रेजी बोलने की असफल कोशिश करने मे रैपिडेक्स रटते और ट्युटोरियल मे चप्पल घिसते रहे, दुसरो के अंग्रेजी न बोलने पर आलोचना करते मिलेंगे।अब अचानक उन्हें मिथिला, मैथिली और पाग के स्वपन आने लगे हैं,पोलिटिकल स्कोप जो दिखाई दे रहा है इसमे ! बहुत लोग हारे को हरि नाम रटते हुये 'नाम' फिल्म के गाने'अपने घर मे भी है रोटी' की मजबूरी वाली तडप सुनकर गांव खलिहान मे लौट आते हैं,पर कबिलैती जोघुटनों मे पडी है, वो नही जाती।अइन छांटने मे इनका जबाब नहीं।मुखिया चुनाव मे हिस्सेदारी और बकैती के किस्से कभी और सही पर मैथिल तो वाकई लाजवाब कौम हैं,सारी दुनिया जानती है!जय मिथिला।

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल