डाक्टर बिटिया

खुशी के मारे खाना हलक से नीचे उतर नही पा रहा था, जल्दी जल्दी किसी तरह उसने दाल- भात को मूंह मे ठूंसा और साइकिल उठाकर दौड़ पडा़ शहर की ओर। आज उसके पैरो को जैसे पंख लग गए थे। वह जल्द से जल्द बैंक पहुंचना चाहता था। आज उसके वर्षो की तपस्या का फल जो मिला था, उसे यूं ही जाया नही होने देना चाहता था। बिटिया ने डाक्टरी का इंतहान जो पास कर लिया था।साइकिल चलाते चलाते, सबकुछ उसको आंखो के सामने नाचने लगा था, जब बिटिया  का जनम हुआ था। सुखिया की महतारी , सोइरी घर से निकल कर बोली" लछमी आई है राम औतार! अब नेग क्या मांगे, अगली बार देना! अगली बार बेटा ही होगा! उसके हाथ जेब मे जाते जाते रूक गये थे, वह खुश था, वह नेग देना चाहता था पर सभी उसे दिलासा दे रहे थे ,जैसे न जाने क्या अनहोनी हो गई थी।अरे ,वह उसकी पहली औलाद थी, वह खुशी से नाचना चाहता था पर उसकी पत्नी को तो अम्मा ताने सुनाये जा रही थी" एक बेटा तो जन नही सकती, क्या खाक करेगी? जो भी उससे मिला, उसने संवेदना ही जताया। औतार हिम्मत  मत हार! ईश्वर सहाय होंगे ,कुल का नाम रौशन करनेवाला जरुर तुम्हारे घर आएगा। पर उन नासमझो को क्या पता था कि कुल का दीपक तो जनम ले चुकी थी। मेरी बिटिया ! पूरे गांव मे पहला डाक्टर !वह फूले नही  समा रहा था। मिठाई आगे बढाया तो बैंक वाले मैनेजर साहब बोले"क्या राम अवतार! बडी तेजी मे आए हो! क्या बात है? तुम्हारी बेटी का रिजल्ट आया है क्या? हां साहिब इसीलिए तो आपके पास आया हूं।लोन लेना है! आपसे पहले भी बात किया था, अब तो घर दुआर बेचकर भी उसको डाक्टर बनाना है। मैनैजर साहब से फारम भरवाकर वह लौटा तो रास्ते मे सवा किलो लड्डू बरहम बाबा को भी चढाते हुए आया।काफी दिन से मनौती मांगे था। बचपन मे बिटिया जब स्कुल जाने लगी  थी तो जनेसर  भैया की अम्मा कहती" दूसरे घर की अमानत है ,क्यो पढा लिखा रहे हो? थोडा खाना पीना बनाना, लूर ढंग सीखा दो, बेड शीट पर फूल काढना मेरी बहू सीखा देगी। पढ कर क्या करेगी? इससे अच्छा है कि पैसा जमा कर के रखो शादी ब्याह के लिए!औतार कहता" काकी! यह बेटी नही मेरा बेटा है! और पूत कपूत का धन संचय, पूत सपूत का धन संचय! उसकी पत्नी जब भी उसको घर बुहारने, बरतन वासन साफ करने मे लगाती, औतार जोर से चिल्लातने लगता  था। बिटिया पढने मे काफी होशियार थी! मिडिल स्कूल मे जो क्लास मे अव्वल आना शुरु हुई तो पीछे मुड के नही देखा स्का्लरशिप मिलने के बाद औतार को लगने लगा की इक दिन वो जरुर कुछ कर के दिखायेगी।आज वो दिन आ गया था।जबसे फोन करके बिटिया ने उसे हास्टल से बताया,.पहले उसे विश्वास ही नही हुआ था! खुशी के मारे वह रोने लगा ! उसको पढाने के लिये गांव मे किसके सामने उसने हाथ नही फैलाये थे, कर्ज के बोझ तले  तो वह दबा हुआ था पर बिटिया को डाक्टर बनाने का जुनून लिए वह किस्मत से पंगा ले रहा था। बिटिया जब मैट्रिक मे फर्स्ट डिवीजन से पास हुई थी तो सतनारायन मास्टर ने दरवाजे पर आकर कहा था कि सलोनी के लिए बडा़ अच्छा रिश्ता है,लड़का अभी अभी फौज मे भर्ती हुआ है, दहेज भी वो लोग ज्यादा नही लेंगे और जवान बेटी कबतक बैठा कर रखोगे? ब्याह करके गंगा नहाओ! जवान बेटी छाती पर बोझ के समान होता है ,कहीं ऊंच नीच हो गया तो कहीं मूंह दिखाने लायक नही रहोगे! उसने साफ मनाकर दिया था! बिटिया को अभी आगे पढाऊंगा ,चाहे घर दुआर या खुद को गिरवी रखना पडे,पीछे नही हटूंगा।सब कहते थे पगला गया है औतार!बिटिया को शहर भेज रहा है पढने के लिए।  कोचिंग मे नाम लिखाने के लिए जब मलिकार के पास कर्जा लेने को गया तो बोले" औतार काहे बेटी के पीछे खुद को बर्बाद कर रहे हो! सब जमीन तो बिक ही गया है अब घरारी ही तो बचा है! कंतवा के बारे मे कुछ नही सोचते क्या! उसके लिए क्या छोड़ोगे? क्या वह औलाद नही है? उसको पढाओगे लिखाओगे तो तुम्हारे बुढापे का सहारा बनेगा! बिटिया का क्या है? बिआह के अपने ससुराल चली जाएगी।सारा खर्चा व्यर्थ जाएगा।  परंतु औतार तो बिटिया के खिलाफ तो एक शब्द भी सुनने को तैयार नही था।बोला' मलिकार देना है तो दीजिए ,नही तो दोसरा दरवाजे पर हाथ फैलाने जायें।अब ठान लिया है तो चाहे इसके लिए कुच्छो करना पड़े ,करूंगा पर बिटिया को आगे पढाने मे कोई कोर कसर नही छोडूंगा।रही बात किशनकांत की तो उसको भी पढा ही रहा हूं।बेटा बेटी मे कैसा फर्क  ? क्या सलोनी की अम्मां ने उसे नौ महीना अपने पेट मे नही रखा ? क्या वह हमारा कम ख्याल रखती है? मेरी मां और पत्नी भी तो किसी की बेटी ही थी! आज  वह मलिकार के सामने जाकर  बताना चाहता था कि उसकी उसी बिटिया ने पूरे गांव का नाम रौशन किया है! घर पहूंचकर देखा तो घर पर भीड़ जमा थी।सभी बधाई दे रहे थे और किस संघर्ष  और दृढ इच्छाशक्ति की बदौलत उसने बिटिया को पढाया था, सभी उसकी प्रशंसा कर रहे थे।उसका सीना गर्व से फूले नही समा रहा था।होता भी क्यो न भला! डाक्टर बिटिया का बाप जो था!

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल