खेलोगे कूदोगे होगे खराब....

पढुआ भैया आजकल तेजी से गिटपिटाने लगे हैं।सांझ होते ही स्टार स्पोर्ट्स के दो से लेकर पांच चैनल को रिमोट से उलटा पुलटी करने लगे हैं, शायद किसी पर पोडियम के पीछे भारतीय झंडा लहराते और जन गण मन की धुन बजते सुनाई दिखाई पड़ जाये। आज नौ दिन हो गया आंखे और कान तरस गये। बड़की भौजी कहते है आपके भैया ओलंपिया कर पगला गये हैं। हम कहे " भऊजी! ये नही कई और पढाकू, बुद्दिजीवी, मेहरारू पत्रकार भी अरना महीस की तरह भन्नाये फिर रहे है, जहां कोई लाल कपड़ा दिखा की दौड़ा लेते है। आप ही बताईए जिस देश मे" खेलोगे कूदोगे होगे खराब ,पढोगे लिखोगे बनोगे नबाब" सूत्र वाक्य हो वहां पर यदि कोई मेडल वेडल नही आये तो भुनभुनाने से क्या लाभ! पर कुछ लोग जो हमेशा गिटिर पिटिर करते रहते हैं उनके तो जैसे छाती पर मूंग दल रही हो। पढुआ भैया ! आप  भी जब स्कूल से बंक मारके खेलने चले जाते थे तो घर आके कितनी थूरईया होता था भूल गये क्या? आपके बाबूजी कहते " अरे अभागल कुछ पढ लिख लो ,नही तो घास छीलते रह जाओगे।!  मास्टर साहब बोलते" नवीन फुटबाल बड़ा अच्छा खेलता है, स्कूल की टीम की ओर से  पटना जाने दीजिए, मोईनुलहक स्टेडियम मे सेलेक्शन हो रहा है"। बाबूजी झाड़ कर कहते " देखिए मास्साब! मेरे बेटे को बिगाड़िए मत! फुटबाल खेलकर कौन पेले का चेला बनना है! मेरा दिमाग मत खराब करिए ,जाईये यहां से! और आप पेले का चेला बनते बनते  रह गये थे। आपने भी तो मुन्नू को बैडमिंटन का स्टेट टूर्नामेंट खेलने से रोक दिया था। कहे ! आइ आइ टी का एक्जाम सर पर है और नबाब साहब स्टेट खेलने बंगलोर जायेंगे! बैठो चुपचाप घर पर और तैयारी करो! खेलने के लिए सारी उमर पड़ी है। तो जब पढुआ  भैया नही खेले और न अपने बेटे को खेलने दिये तो क्या रघुआ और दिनेशवा का बेटा गोल्ड जीत के आयेगा? आपका बेटा डाक्टर इंजीनियर, आइ ई एस बने पर बाकी का बेटा बेटी मेडल लाने जाये!भगत सिंह पैदा हो पर दूसरे के घर मे। वो तो भला हो हरियाणवियो का जो मेडल पैदा करने के लिए लगातार अपने बेटे- बेटियो को झोंके जा रहे हैं।मेडल की चिन्ता सबसे ज्यादा उन्हे सताये जा रही है जो खेलो को एक मिनट समय, परिवार का सदस्य, खेल संघो को समर्थन, खिलाड़ियो को प्रोत्साहन नही दिया होगा। चिल्लायेंगे " सवा सौ करोड़ मे एक भी मेडल नही, जबकि केन्या ,जमायका ने ले लिया। एक अकेला फेलेप्स पूरे राष्ट्र के बराबर गोल्ड ले लिया"! देश का नाक कट गया । अरे देश की इतनी ही चिंता है तो कसम खाओ न! कि 2028 के ओलंपिक मे हमारे परिवार से गोल्ड आएगा।कसम खाओ और पिल जाओ। देश के लिए कुछ कर दिखाओ! कहावत है" घर भूजी भांग न  और ओझा खैताह चूड़ा" करने को कुछ नही और सिर्फ चिल्लाना!  पहले अपनी सोच और समाज की सोच बदलिए पढुआ भैया! तभी ख्वाब देखिए। अगर मुन्नू को आपने उस दिन स्टेट खेलने जाने दिया होता ,तो हो सकता था, आज वो सायना नेहवाल और किदांबी श्रीकांत के साथ देशके लिए खेल रहा होता। उसके स्थान आई आई टी खड़कपूर मे तो कोई भी पढ़ लेता। कोई और टीसी एस मे उसकी जगह साफ्टवेयर इंजीनियर होता ,जगह खाली नही रहती परंतू बैडमिंटन टीम मे उसकी जगह खाली है और रहेगी। मेडल जीतने की प्रतिभा को जब इंजीनियरिंग और मेडिकल कालेजो मे वेस्ट करोगे तो मेडल कौन लायेगा ? चीन मे जबरदस्ती खेल इंडस्ट्री मे लोगो का इन्वेस्ट किया जाता है जबकि पश्चिमी देशो मे प्रतिभा के अनुसार फील्ड चुनने की स्वतंत्रता! हमारे जबरदस्ती गदहे को घोड़ा बनाया जाता है।बच्चे का भविष्य हम आप तय करते हैं पढुआ भैया तो मेडल कैसे आएगा?हमारी सोच, व्यवहार से बाजार चलता है तभी तो क्रिकेट को स्पोंसर मिलते है एथलीट को नही। देश के सम्मान के लिए निवेश की जरूरत है पर आप सब होने कहां देते हैं सारी सब्सिडी तो उच्च शिक्षण  संस्थाओं मे भेज देते हो तो खेल प्राधिकरण क्या भूसा चाटेगा? उपर से सारे खेल संघो मे आपने राजनेताओं को बैठा रखा है जिनकी दिलचस्पी अपने चहेतो को लेकर विदेश भ्रमण के अलावा कुछ नही होता। पढुआ भैया !आप और आपके वुद्दिजीवी संवर्ग को सिर्फ टंगखिचलऊ छोड़कर मेडलोन्मुखी  परिदृश्य के निर्माण हेतु अलख जगाना चाहिए ,वरन इस विधवा प्रलाप का कोई मतलब नही है।शकील भाई सही कह रहे थे उस दिन" अरे आप लोग आरक्षण आरक्षण चिल्लाते हो! इसमे कौन सा आरक्षण है के गोल्ड नही ले आते! खाली नौकरिये करिएगा सभे तो देश का मान सम्मान कौन बढाएगा!" हमने कहा असल मे हमे हरेक चार साल पर यह सब याद आता है, फिर सब भूल कर वही रमा खटोला चालू हो जाता है। अरे जितना लोग फेसबूक और सोशल मीडिया मे देशभक्ति देशभक्ति चिल्लाता है ,उसका आधा भी खेले मे डिवोटेड हो जाएगा तो मेडलो की भरमार हो जाएगी।पढुआ भैया बोले" ठीक कहते हो, जिस दिन समाज मे मां बाप बच्चो के पढुआ भैया, पढुआ दीदी, पढाकू चाचा की जगह खेलाड़ी भैया या दीदी कहलाने मे गर्व महसूस करने लगेंगे, देश मे मेडलो का अकाल नही पडेगा, बल्कि इतनी बरसात हो जाएगी की हमारी झोली कम पड़ जाएगी"। पर वो दिन कब आएगा.,सोचते सोचते नींद आ गयी।

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