सूखते पौधे

 उस दिन पार्क मे बेंच पर एक  बुजुर्ग को अकेले बैठे देखा तो अनायास ही कदम उसकी ओर उठते चले गये!  पार्क मे कुछ बच्चे को कराटे सीख रहे थे! मै भी धीरे से उनके पास बेंच पर बैठ गया।उनकी आंखे शुन्य मे कुछ तलाश रही थी, चेहरा   मुर्झाया हुआ था! मैंने पूछा " अंकलजी किसके साथ आये है? कहाँ रहते है? उन्होने चेहरा घुमाया और बोला" 3/12 मे  "!  यहाँ आप लोग   किसी को नाम से नही ना जानते हैं, मकान नम्बर से जानते हो ! "अच्छा रावत जी के यहाँ आये है"मै बोला! "हाँ  किसलय रावत मेरा बेटा है!मै गांव मे रहता हूँ,एक सप्ताह हुए आये हुए! शहर मे तो मेरा जी घबराता है! जबतक पत्नी जीवित थी  ,शहर आने से मना करते रहे ! पर अब तो मजबूरी है ! कहाँ अकेले गांव मे पडे रहेंगे!कोई देखभाल करने वाला नही है। यहाँ अपने पोते के साथ आया हूँ! वो जो गोल मटोल सा लडका,कराटे सीख रहा है ,वो मेरा पोता है। वो लगातार बोलते ही चले गये जैसे वो किसी से बात करने को तरस रहे हो!बात करने का मौका तलाश रहे हो! आसपास कई लोग हमलोगो को देख रहे थे।"तुम कहाँ रहते हो बेटा, कबसे इस शहर मे हो ? कैसे तुमलोगो का मन यहाँ लगता है! मेरा तो तो इतने दिन मे ही मन आजीज आ गया है। यहाँ तो किसी को किसी से बात करने की फुर्सत तक नही है! किसलय सुबह ही निकल जाता है और देर शाम लौटता है।मुन्नु भी सुबह ही स्कूल चला जाता है! बहू को किचेन,टीवी सीरियल किटी पार्टी और  मार्केटिंग से फुर्सत नही है ! कोई कैसे इस शहर  मे अपना मन लगाये ?  बस शाम का इंतजार करता रहता हूँ की किसी तरह यहाँ पार्क मे आने का मौका मिले ! पर यहाँ भी किसी को किसी से मतलब नही है ! बस चेहरे दिखाई पड जाते है ! यहाँ तो अच्छा खासा आदमी बिमार पड जायेगा।  एक घटना सुनाऊं  "गांव मे   मेरी पत्नी ने घर के आगे कुछ गमले रखवा दिए थे!  जल्द ही कई गमलों में फूल खिल गए ,!एक दिन वो बांस पौधा वाले गमले  को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी।" यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है"।मै  बोला था " अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो। इसे किसी और पौधे के पास रख देने से क्या होगा?"बोली ये पौधा यहां अकेला है ,इसको साथी नही मिल रहा है, ये भी आपस मे बातें करती हैं, कोई न मिलने से मुरझा रहा है। इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। पौधे अकेले में सूख जाते हैं,उनको भी आपस मे बतियाने का मन करता है ! अपना सुख दुख भला किससे कहेगे? संसार में किसी को अकेलापन पसंद नहीं । मै एकटक अंकल जी को ही देखे जा रहा था। जैसे बंद किताब खुल गयी हो।कई दिनों से जमी हुई बातें उछलकर बाहर आ रही थी।" अरे!  तबसे मै ही लगातार बोले जा रहा हूँ! तुम भी कुछ बोलो!  मै बोला " अंकल जी! मै आप मे अपने डैडी के मनोभावो को देख रहा हूँ! वो भी इसी तरह फील करते होंगे, जब यहाँ आते रहे  होंगे।जिंदगी के फ्लैशबैक मे घूमते हुए देखने लगा कि किस तरह  मां की मौत के बाद पिताजी  एकदम से बूढ़े हो गए थे। बाकी जिंदगी उन्होने  उसी अंकल जी वाले बांस के सूखते हुए पौधे की तरह ही तो बिताया था। जिन्दगी बांस के ठूंठ की तरह बेरंग और चमकहीन हो गयी थी।  कोई बात करने वाला भी नही था उनके साथ! बचपन मे हमलोग मां के ज्यादा नजदीक थे और डैडी से बात करने मे झिझक होती थी।लिहाज मे उनसे बातें कम होती थी। वो स्वयं भी बच्चों से डिस्टेंस  बनाये थे।बडे होने पर इस कमी का अहसास उनको भी हुआ और हमे भी। कभी खुलकर बात नही कर पाये हम।इसकारण जो आदमी इतना जिंदादिल था वो अचानक से गम्भीर हो गया था! हमने इसे उनके बढते उम्र का प्रभाव माना था पर वो था उनका  अकेलापन ।एक साथी की कमी जिससे अपने गम और खुशी को बांटा जा सके। मां के जाने के बाद  एकदम  खामोश से हो गए थे। अंकल जी मेरी आंखो मे कुछ तलाश रहे थे । आंखो की नमी और छलछलाते पलकों को महसूस कर बोले  "बेटे उदास मत हो !  यह अहसास तब होता है जब आप अपनो से दूर होते है।आपलोग जब हमारी अवस्था मे आओगे तब हमारी व्यथा का वास्तविक अहसास होगा। पौधा क्या मूक जीव जंतु भी अकेलेपन को पसंद नही करते ।नरसो ही देखो, मुन्नू ने जिद करके एक अक्वेरियम खरीदवा लिया पर उसमे एक ही मछ्ली थी।आज सबेरे उसको रोते देखा तो पता चला वो मछली मर गई। शायद उसमे कई मछलियां होती तो तो वो नही मरती।काल कोठरी की सजा अकेलेपन की सजा है।आदमी हो,जीव जंतु हो या पौधा, हर किसी को किसी न किसी के साथ की ज़रुरत होती है।।अकेलापन संसार में सबसे बड़ी सजा है। मै बोला " अंकल जी पहले जमाने मे  ज्वाइंट फैमिली होती थी तो हमेशा परिवार मे गहमगहमी बनी और चिल्ल-पों पों मची  रहती थी पर अकेलापन नही था! अकेलापन इस एकल परिवार व्यवस्था तथा स्वकेंद्रित समाज के चलते हुआ है ।जब बूढो को उनके बच्चो की जरुरत होती है ,उनके पास समय नही होता ।शहरो मे तो अकेलापन अपने हाइट पर है।इसी कारण तनाव,अवसाद और बिमारियो का अम्बार लगा है! " बेटे यह पत्थरो का जंगल है ! यहाँ आदमी नही मिलते , आदमी पशुओं के समान पेट की क्षुधा मिटाने की जद्दोजहद कर रहा है।कोई किसी को नही पहचानता और न किसी के पास दूसरे के बारे मे सोचने की फुर्सत है।यहाँ तो अपना सर टकरा कर पगला जाओगे!" तभी उनका पोता दौडते हुआ आया " दादाजी '! वो चहक उठे! उनके चेहरे की खिलखिलाहट देखते ही बन रही थी। कहा जाता है दादा की जान पोते मे होती है । कहते है मूल से ज्यादा सूद प्यारा होता है ।उन दोनों दादा पोते को आपस मे किलोल करते देख उनको  नमस्कार कर मै चल पडा  और सोचता रहा कि  आदमी को एक सामाजिक प्राणी कहा जाता है पर समाज अब रह कहाँ गया है ।अब  तो सिर्फ परिवार है वो भी पति,पत्नीऔर बच्चे,उनको भी आपस मे बात करने का मौका नही ,डिनर के टेबिल को छोडकर !भला समाज कहाँ से पनपेगा?!  बेचारे  ये बूढे कहाँ जाये ?इन सूखते पौधो मे पानी कहाँ से डाला जाये? इन सूखते पौधो को  जीवित रखने के लिये गार्डेन कहाँ से  बनाया जाये?जहाँ ये अपने साथी तलाश सके या ये बुढा बरगद बन सबको देख सके!

Comments

Popular posts from this blog

कोटा- सुसाइड फैक्टरी

पुस्तक समीक्षा - आहिल

कम गेंहूं खरीद से उपजे सवाल