रैगिंग की दरकार है .....।

"बस एक रैगिंग चाहिए डिसिप्लिन के लिए।"आशिकी की धुन पर रैगिंग को प्यार करने वाले मानो गुनगुना रहे हों।  दिल पे आरियां चल जाती है जब ये नये नये लौंडे लौंडिया, अटक मटक कर चलती और  सामने से सर्र से गुजर जाते, न कोई दुआ न कोई सलाम। जैसे गोया हम इनके सीनियर न हुए, खानसामा हो गये, जो इनके लिए रोज खाने का सामान इकठ्ठा करते फिरते रहें। ऐसे बेअंदाजी और बेपरवाही से आफिस मे इंट्री मारते ,जैसे सारा जहाँ इनके बाप का खरीदुआ गुलाम हो। परीक्षा मे भले जुगाड़ लगाया हो पर सिलेक्ट तो हुए न! गोया आसमान के तारे तोड़ लाये। इनसे बड़ा विद्वान कोई नहीं।बातें तो इनसे करिए मत, शुरुआत ही पंचम तल से होती है, गोया मुख्यमंत्री के अब्बाहुजूर इनके अब्बा हुजूर के लंगोटिया यार रहे हों और पंचम तल पर रोज काफी ब्रेक इन्ही के भाईजान या चचाजान के साथ होता हो। " मै तो रोजाना लान टेनिस खेलने उनके साथ ही जाता हूं, घर आना जाना है, कहो तो बात कराऊं?" भैया हमलोग ठहरे मिडिल क्लास लोग ,कभी दूसरे तल से उपर जाने का सपना भी नही देखे। तुम अपनी कबिलैती अपने पास ही रखो"। यदि गलती से आपको काम निकल आया तो अर्दलियों से इनको जी हजूरी करते पाओगे या ऐसा साफगोई से बहाना बना देंगे कि चचाजान आज शहर मे  नही ,आते हैं तो मिलाते हैं"! काम मे एकदय काहिल! अफसर हैं भाई! कोई गया गुजरा थोड़े ही ना हैं जो बाबू का काम सीखेंगे! इन्हे तो बस किसी तरह जुगाड़ लगाकर मलाईदार पोस्टिंग चाहिए।तो बात मै अनुशासन की कर रहा था।हमने सिस्टम नही डेवलप किया, ना रैगिंग लिया ,ना प्रोपर ट्रेनिंग दिया तो ये सीखेंगे कहाँ? खुदा खैर करे! रैगिंग तो बड़ी अच्छी चीज इजाद किया था पश्चिम वालों ने लेकिन हमने प्रयोग करते करते उसकी रेंड़ मार दी। इतना दिमाग लगा दिया कि मजाक भी टार्चर हो गया। भई ! अंग्रेज़ी स्कूलों से पढकर निकले बच्चों को जब शुद्ध हिन्दी जबान मे वार्तालाप करने को बाध्य करोगे तो उनके लिए टार्चर से कम थोड़े ही है। फिल्म " चुपके चुपके" मे प्रोफेसर धर्मेन्द्र जब विशुद्ध हिन्दी मे वार्तालाप करते हैं तो ओमप्रकाश जी को नानी याद आ जाती है।ड्रेस कोड भी अनुशासन पालन करने का अंग है। सभी सरकारी विभागों मे भी यह लागू होना चाहिए। वैसे अनुशासन शब्द नव उदारवादियो के लिए सामंतवाद और पितृसतात्मक सत्ता का प्रतीक है। वो किसी भी प्रकार के बंधन को नकारते है। आदमी स्वतंत्र पैदा हुआ है और स्वतंत्र ही रहना चाहिए।लाहौल बिला कूवत हम भी गैर वाजिब बहस मे पड़ गये। अभी सभी जूनियर विद्रोह कर हमारा बायकाट कर देंगे कि हम उनकी स्वच्छंदता छीनना चाहते हैं।लोग लाबिइंग भी शुरू कर देंगे कि हमारा कैडर विरोधी है,इसको टारगेट करो।लेकिन भैया जी, बहन जी! आज आप जहां हो, वहाँ कल कोई और आयेगा, और हम जहाँ हैं वहाँ आप खड़े होगे। तभ शायद तुम्हे अखरेगा ,जब कोई तुम्हारा जूनियर तूमसे बेअंदाजी से बातें करेगा और तुमको ठेंगे पर रखेगा। तब तुम शायद यही कहोगे" इक अदद रैगिंग की जरुरत है इस विभाग को'! मुन्ना भाई एम बी बी एस फिल्म मे सभी ने मेडिकल कालेज मे रैगिंग होते देखा है। इसमे सीनियर छात्र छात्रा जूुनियरो का परिचय प्राप्त करते हैं मजाकिया लहजे मे, परंतु यह मजाक अब परंपरा के तौर पर छीटाकशी, उत्पीड़न, शारीरिक एसाल्ट,बेइज्जत करना, प्रताड़ित करने की हद तक जा चुका है जिस कारण कई लोग पागल हो गये, कईयों ने आत्महत्या कर लिया ,कईयों ने कालेज छोड़ दिया। आज रैगिंग कानूनी तौर पर बंद है, पर चोरी छूपे यह कालेजों, हास्टलो मे बदस्तूर जारी है। नये लोगों का परिचय प्राप्त करने और अनुशासन  सिखाने के हंसी मजाक वाले तरीके से प्रारंभ यह शब्द आज मानवाधिकार के नाम पर गाली बन गया है । इंस्टिट्यूटो मे एंटी रैगिंग सेल बन गये हैं। सत्र प्रारंभ होने के शुरुआती तीन चार महीनों मे रात्रिकालीन समय इसके लिए ज्यादा संवेदनशील है।लेकिन कभी कभी लगता है कि यह आवश्यक था क्योंकि इसके बिना जूनियर सीनियर का मान सम्मान करना नही सीखते। कालेज और स्कूल के अनुशासित जीवन से बेपरवाह परिंदो की भांति खुले आसमान मे विचरने के सपनो को सजोये आये इन बच्चों को अपनी सीमा मे बांधे रहने के लिए आवश्यक होता है। लेकिन रैगिंग के सकारात्मक पक्ष को ध्यान दें तो एक अनुशासित रैगिंग  सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं, विभागों मे भी अनिवार्य कर देना चाहिए जिससे लोगों मे सीनियर जूनियर की तमीज आ जाये। जेनरेशन गैप सभी संस्थाओं और विभागों मे भी होता है और सभी सीनियर लोग कहते मिलेंगे कि अरे! आजकल के लडके! तो बेअंदाज हो गये है।ना सीनियर जूनियर की तमीज और न लिहाज! भले ही जब वो स्वयं आये थे तो वैसे ही रहे हों। नये नये कालेज या विभाग मे आये लडके लडकियों को ,जो स्वयं को बड़ी तोप चीज मानते है, बड़े बाप की औलाद, बड़ी पैरवी वाले, वो भला दूसरों को अपने आगे क्या समझे। सब से बड़ा ज्ञाता, विद्वान ,कर्मठ, और चतुर अपने को समझते हैं। सावन के अंधे को सबकुछ हरा हरा ही दिखाई पड़ता है। उसने अभी जीवन मे उंच नीच तो देखा नही होता है तो सबसे बडा काबिल स्वयं को समझता है।अधजल गगरी छलकत जाये" व्यवहारिक ज्ञान तो अनुभव से ही होता है जो आते नही हो सकता। सीनियर रैगिंग के माध्यम से अपने अनुभव शेयर करता है और जूनियर सीखता है तहजीब और संस्कार।

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