लूट सके सो लूट..

बहुत पहले की बात है, एक स्मगलर विदेशी कपड़ों से भरे जीप के साथ रात मे भागते हुए एक पुल पर एक्सीडेंट कर गया और मर गया। सुबह होते ही उस गांव मे उस विदेशी कपड़े की लूट मच गई ,जबतक पुलिस आती तबक सारे कपड़े वहाँ से गायब हो गये ,यहाँ तक कि उस स्मगलर की घड़ी, बटुआ आदि भी। पुलिस जब तलाशी लेने लगी तो किसी किसी घर मे जमीन के नीचे वो कपड़े गड़े मिले ,जिसके उपर गोसांई, भगवती स्थापित कर पूजा की जाने लगी थी।ये है हमारी मानसिकता ,जिसमे हम  सड़क पर पड़े सामान की लूट मचाने लगते हैं।  क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी आंदोलन, प्रदर्शन, धरना, हड़ताल मे हम सभी सरकारी संपत्तियों  की तोड़फोड़, आगजनी, लूटपाट तथा नुकसान पहुंचाने का काम करते हैं? बसों और ट्रेनो मे लिखा होता है " सरकारी संपत्ति आपकी संपत्ति है और आप स्वयं इसकी सुरक्षा करें"। हम दूसरी लाइन नही पढते और उसे अपनी संपत्ति समझकर अपने घर ले आते है या नष्ट कर देते हैं पर यदि हम उसे अपनी संपत्ति भी समझते तो इस कदर नुकसान नही करते। आम जनता मे ही है वो लोग जो सरकारी धन की भी लूट अपना समझ कर ही करते हैँ।चोर पे मोर लगे हैं और लूटमलूट लगी है,जिसको जहाँ मौका मिले लूट रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व.श्री राजीव गांधी कहा करते थे कि मै जब एक रुपया जनता की भलाई के लिए दिल्ली से भेजता हूं तो वो आम जनता तक पहुंचते पहुंचते पंद्रह पैसे रह जाती है। लालफीताशाही मे बीच के लोग पच्चासी पैसे खा लेते है।सरकारी धन को सभी अपना माल समझते हैं तथा उसके अमानत का ख्यानत करना अपना हक समझता है। राम नाम की लूट मची है लूट सके सो लूट।चोरी रोकने के लिए जितने पहरेदार लगाए जाते हैं, वो अपना हिस्सा लेने के लिए ही आता है। एक कहानी, जो इस मानसिकता, लालफीताशाही और सिस्मेटिक लूट से संबंधित है कि एक राजा को मलाई रबड़ी खाने का बहुत शौक था और उसे सोने से पहले मलाई रबड़ी खाए बिना नींद नहीं आती थी । उसके लिए खजांची ने एक नौकर को रोजाना चार आने की मलाई लाने के लिए कहा।कुछ समय बाद खजाँची को शक हुआ कि कहीं नौकर गड़बड़ी तो नही कर रहा है, उसने उसपर नजर रखनी शुरू कर दी। पता चला नौकर केवल तीन आने की मलाई लाता है और एक आना बचा लेता है। चोरी पकड़ी जाने पर नौकर ने खजाँची को एक आने की रिश्वत देना शुरू कर दिया । अब राजा को दो आने की मलाई रबड़ी मिलने लगा।राजा को शक हुआ कि मलाई की मात्रा में कमी हो रही है तो राजा ने अपने मंत्री को पर्यवेक्षण मे लगाया।खजाँची ने एक आने की रिश्वत मंत्री को भी दे दिया। अब केवल एक आने की मलाई रबड़ी राजा के लिए ली जाने लगी।  इधर हलवाई जिसकी दुकान से रोजाना मलाई रबड़ी जाती थी ,उसे सन्देह हुआ कि पहले चार आने की मलाई जाती थी अब घटते घटते एक आने की रह गई।उसने नौकर से राजा को बतलाने की धमकी दी । नौकर ने पूरी बात खजाँची को बतलाई और खजाँची ने मंत्री को । बस क्या था,शेष एक आना हलवाई को भी दे दिया गया।अब  मलाई कहाँ से आए और राजा को क्या बताया जाए।लेकिन शातिरो ने यहाँ भी उपाय निकाला और जब अगले दिन राजा को मलाई की प्रतीक्षा करते नींद आ गयी ,तो मंत्री ने राजा की मूँछों पर चूना का लेप लगा दिया।सुबह राजा ने पूछा -कल मलाई क्यों नही लाये?मंत्री बोला - हुजूर नौकर लाया था, आप सो गए थे इसलिए मैंने आपको सोते में ही खिला दी।देखिए अभी तक आपकी मूँछों में भी लगी है।आईना मे देखकर राजा को विश्वास भी हो गया। जिसतरह राजा बेवकूफ बना ,राजा रुपी जनता लगातार बेवकूफ बनती आ रही है।यहाँ आम जनता राजा है,मंत्री हमारे नेता, विधायक ,सांसद हैं और अधिकारीगण खजांची  हैं एवं हलवाई ठेकेदार हैं।पैसा भले कामों के लिए निकल रहा है और आम आदमी को चूना लगाकर सन्तुष्ट किया जा रहा है। मनरेगा, जवाहर रोजगार योजना और अन्य सांसद, विधायक निधि का ये हाल है कि एक ही काम को दस बार नाम बदल बदलकर भुगतान लिया जा रहा है और जनता की गाढी कमाई का पैसा इन बिचौलियों के पाकेट मे जा रहा है।एकबार एक तालाब खोदने का एस्टीमेट बनता है जिसकी मिट्टी उठाने का दूसरी बार बनता है।बड़े घोटाले हो गये पर जो पकड़ा गया वो चोर बाकी साध।यहाँ तक कि जांच एजेंसी भी लूट के हिस्से का बटबारा ही करती है। कहते है बिल्ली को दूध की रखवाली दी जाती है लेकिन दूध गरम नही है जिससे उनका मूंह जल जाये। सांसद और विधायक निधि के काम तो परसेंटेज बांधकर ही माननीयो द्वारा अपने शुभेच्छुओ को दिया जाता है। रोजाना लोकतंत्र के राजा को नींद मे चूना लगाया जाता है क्योंकि वो पांच साल के लिए सो जाती है।घपलों का यह आलम है कि सालभर सभी डिपार्टमेंट शांत पड़े रहेंगे और फरवरी मार्च मे बजट खत्म होने से पहले बजट एक्झास्ट करने की हड़कंप मचा दी जाती है। जल्दी जल्दी प्लान, इस्टीमेट और काम की शुरुआत की जाती है जिसके शुरू होते होते बरसात आ जाती है और बरसात मे सभु के अच्छे बुरे काम या यूं कहें पाप धुलकर बह जाते है। जनता तो बरसात के बाद वही ढाक के तीन पात।वस्तुतः जनता मे भी इनके प्रति कोई सेंसिविटी नही होती कि यह हमारे टैक्स के पैसों से बनाया जा रहा है ,इसका सही उपयोग हो।हम अपना काम दूसरों पर टालते हैं। जैसे चुनाव के समय टीवी देखते हुए और काफी हाऊसो मे बहस तो खूब करते हैं पर जब वोट देने की बारी आती है तो दूसरों पर टाल देते हैं।हमलोग मिलकर प्लान तो बनाते हैं पर जब धरातल पर करने की बारी आती है तो हम एक दूसरे को उत्साहित तो करते हैं लेकिन मन ही मन खुद के लिए सोचते हैं कि मेरे एक के शामिल न होने से क्या हो जायेगा। प्रत्येक व्यक्ति जब यह सोचता है कि एक उसके न जाने से क्या अंतर पड़ेगा? सब एक दूसरे पर टालते हैं और काम कुछ भी नही होता। यदि हरेक काम का सोशल आडिट होने लगे तो काफी हदतक इसपर रोक लगाई जा सकतीं है।

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