मिसिर जी का देशप्रेम

तो जगतु मिसर के दुनिया मे इंट्री मारते ही रोने की आवाज सोइरी घर से बाहर आई और बूढे मिसर ने फैसला सुनाया " पंडित के घर का चिराग है ,पंडित ही बनेगा, बाप की तरह गोली बंदूक नही चलायेगा"! कहते रह गये कि पंडित का काम पढाई लिखाई करना है पर इसके बाप ने चोर डकैतो के पीछे भागते रहने वाली नौकरी कर ली, पर इसे नही करने दूंगा! छोटे मिसर बोले!" बाबूजी! मै चोर डकैत के पीछे नही भागता! सेना मे हूं! देश के लिए लड़ता हूं! बड़े मिसर बोले!" बात एक्के है!छोटे मिसर ने बाप का विरोध सहकर भी सेना ज्वाइन कर लिया था जो उनके अनुसार क्षत्रियों का काम था! तो इधर जगतु पैदा हुए उधर चाइना ने हिन्दू- चीनी भाई -भाई के नारे को लतियाते हुए रणभेरी बजा दी। वो उन्ही का परताप था की बौने चीनी हिमालय के उतुंग शिखर को फान्द न सके और गुदड़ी के लाल ने इज्जत बचा ली। खैर सोंइड़ी घर मे थे तभी छोटे मिसर को नेफा जाना पड़ा, फ्रंट पर लड़ने के लिए। पंडित जी ने कहा ,पिता पर ग्रह है, अठईसा के बाद मुखड़ा देखेंगे, वो दिन था और आज का दिन दोनो एक दूसरे को देख नही पाये। पता चला पिताजी बार्डर पार कर लिए थे और फिर लौटे ही नही। खैर! जगतु मिसर उर्फ जगतनारायण मिश्र ने अपने दादा की भविष्यवाणी सही की और संस्कृत के प्रकांड विद्वान  बन गये पर रगो मे जो सैनिक का खून बह रहा था वो बार बार हिलोरे मारता रहता था, ,उसे कैसे भुलाते? तो बार बार गांव छोड़कर सेना मे भर्ती होने भाग जाते, पर रास्ते मे दादा का वचन और भविष्यवाणी  जोर मारती और वापस लौट आते।खुद तो सेना मे भरती न हो पाये पर गांव घर के बच्चों की जमघटगी लगाकर अपने पिताजी के शौर्य के किस्से जरूर सुनाते रहते थे।कैसे बाबूजी ने नेफा मे चार चीनियों को एकसाथ पकड़ कर मार डाला और बाकी दो के पीछे भागते उस पार चले गये। कहते कहते उनकी भुजायें फड़फड़ाने लगती थी। दादा वचन देकर उनको बांध दिया था। बेटा खो चुका हुं, तुम्ही हमारे और मां के बूढापे का सरारा हो, कहीं मत जाना। हमारी यजमानी बड़ी है, कोई दिक्कत नही होगी। पर दिक्कत यजमानी से नही , फौजी के खून से था। जब जब पाकिस्तान की बात आती, धोती से बाहर हो जाते थे। उनका बस चलता तो दोनो शरीफ का टेंटूआ पकड़ के दबा देते ! बोलते" अच्छा किया अमरीका ने कि रातोंरात ओबामा का आपरेशन कर दिया! मोदिया भी जरुर एकदिन हाफिज वा और मसुदवा को वहीं टीप देगा, देख लेना। वो जो दाऊद तो न जाने गुम्म हो गया है, शायद सर्जिकल स्ट्राइक से डर गया है। अगर कोई गलती से कह देता " कहां मिसिर जी! आप भी लड़ाई वड़ाई की बात करते हो! विद्वान आदमी कहीं युद्ध की बात करता है, उनका पारा चढ़ जाता ! कहते"हर मनुष्य युद्ध में ही जन्मता और मरता है। रोज लड़ते हैं हम हजारों तरह की बीमारियों से, समस्याओं से, भूख से, बेरोजगारी से, भ्रष्टाचार से और जिंदा है इसका मतलब ही है कि हम जीत रहे हैं और मौत हार रही है।आप खाना खाते समय भूख से लड़ रहे होते हैं। बस, ट्रेन में जल्दी जल्दी चढ़ते हैं उस समय आप भीड़ से लड़ रहे होते हैं... बस यही तो है युद्ध।" तो क्या आप भी फ्रंट पर लड़ने जायेंगे? मिसिर जी का खून खौल उठता है! भले ही हमने चींटी तक न मारी हो। पर हमारे रगो मे एक फौजी का खून दौड़ता है! लोग भले ही मजाक उड़ाये कि पंडित लोग मंत्र मारकर पाकिस्तानी सेना को भष्म कर देंगे पर जब मौका लगेगा तो दिखा देंगे कि हम क्या कर सकते हैं! मिसिर जी काफी पढ लिए थे। लोग उसको थोडा  खिसका हुआ मानते थे!इसी कारण बच्चे मजाक भी उड़ाते रहते थे। कुछ बच्चे हमेशा उन्हे चिढ़ाते" हे मिसिर , तोरा कथी के दुख... फौज मे न गई ले  तही के दुख!"संस्कृत के विद्वान होने के वावजूद कहीं नौकरी नही लग पायी क्योंकि सबसे झगड़ जाते थे। फौज मे दादा और पंडिताई ने न जाने दिया और नौकरी मे खिसियाहट ने! बस गांव मे पंडिताई करते रह गये।।लेकिन देशप्रेम तो कूट कूट कर भरा था उनमें।देशभक्ति पागलपन के हद तक थी।वे चौराहे पर खड़े होकर बकने लगते "चार्ल्स डार्विन ने अपनी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक 'सरवाइवल आफ दि फिटेस्ट' में लिखा है ' हर जीवधारियों में जीवन के लिए संघर्ष होता है और वही जाति जिंदा रहती है जो इस संघर्ष में विजयी होती है'। जो लड़ेगा वही सफल होगा!हम लड़ेंगे तो सफल होंगे। गीता मे भी भगवान कृष्ण ने कहा" युद्ध कर"! यदि पड़ोसी हमे शान्ति से नही रहने देगा तो उसे भी शांति से रहने का कोई हक नही। तभी बच्चों का एक झुंड चिल्लाते हुए आया" खौरहवा .....मिसिर मांगे चूड़ा दही केला!" मिसिर जी डंडा लेकर ओके दौड़ा लिए!

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